हम चलते गए, कारवां बनता गया…
साल 2015 बीत गया और साल 2016 के सूरज ने दस्तक दे दी। पुराने साल में पाठकों से बने
साल 2015 बीत गया और साल 2016 के सूरज ने दस्तक दे दी। पुराने साल में पाठकों से बने
एक वर्ष ने और विदा ली एक वर्ष आया फिर द्वार गए वर्ष को अंक लगाकर नये वर्ष की
पीके ख्याल नव वर्ष का सूरज, बीते बरस का अंधेरा मिटाएगा, मत हो उदास सुबह आकर सवेरा मुस्कुराएगा । ।
दिवाकर मुक्तिबोध 6 दिसंबर 2015, रविवार के दिन रायपुर टॉकीज का ”सरोकार का सिनेमा” देखने मन ललचा गया। आमतौर अब
सत्येंद्र कुमार यादव आज कुछ बच्चे हंस रहे थे, मुस्कुरा रहे थे। तालियां बजा कर उत्साह मना रहे थे। अपनी
कुमार सर्वेश यहां ‘धान का कटोरा’ है, प्राकृतिक सौंदर्य की वनदेवी है, खनिज संपदा के पहाड़ हैं, जड़ी-बूटियों के जंगल हैं,
दिवाकर मुक्तिबोध ‘श्रेय’ की राजनीति में निपट गया रायपुर साहित्य महोत्सव। कुछ तारीखें भुलाए नहीं भूलती। याद रहती हैं, किन्हीं
प्रतिभा ज्योति लोग अक्सर सोशल साइटस पर अपने आकर्षक और खूबसूरत तस्वीरें पोस्ट किया करते हैं। पोस्ट के बाद
सियासत उसके लिए किसी अबूझ पहेली से कम नहीं थी। चुनाव लड़ना तो दूर उसके बारे में सोचने की फिर
कीर्ति दीक्षित 24 घंटे नहीं बीते जुवेनाइल एक्ट को पास हुए कि एक और फिर खबर आई दिल्ली के कड़कड़डुमा