
20 साल में कॉलेज बदला …लेकिन सुरेंद्र सर वैसै ही हैं
अरुण यादव कंक्रीट के जंगल में रहते हुए 13 बरस 9 महीने हो चुके हैं। दिल्ली में कदम रखने के साथ ही तय किया था कि कुछ भी हो जाए…

जब्बार भाई की सांसें छीन लीं, उनका आशियाना बख्शेंगे हम?
सचिन कुमार जैन जब्बार भाई बात मुआफ़ी के लायक तो नहीं है, पर फिर भी कहना चाहता हूँ मुआफ़ कर दीजियेगा. हमने बहुत देर कर दी. यह तो नहीं ही…

कम फीस की कीमत तुम नहीं समझोगे साहब!
विभावरी के फेसबुक वॉल से साभार इलाहाबाद वि.वि. से एम.ए. करके आई एक निम्न मध्यवर्गीय लड़की के बतौर राजधानी के पॉश इलाके में स्थित इस जगह ने मुझे कभी भी…

‘अफ़सरी’ या ‘मास्टरी’, अखिलेश के मन में कोई दुविधा न रही!
सामाजिक सरोकारों पर अर्थतंत्र कब हावी हो गया, ये कोई समझ ही नहीं पाया। समाज में आपकी पहचान अब आपके व्यवहार से नहीं आपके पैसे से होती है। यानी आपका…

गांधीजी की कल्पना का भारत और हमारा गांव
तस्वीर- आशीष सागर दीक्षित के फेसबुक वॉल से साभार। सेवाग्राम में प्रार्थना सभा। ब्रह्मानंद ठाकुर महात्मा गांधी की कल्पना का भारत स्वशासी ग्रामीण इकाइयों का था, गांधी और अराजकवाद के…

नौकरी की तेरहवीं
पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार आज तेरहवीं हैकोई नहीं हैउसके साथवो अकेले सोच रहा हैअब क्या? उसनेनहीं रखाकोई'श्राद्ध भोज'! बची ही नहींकोई श्रद्धान ऊपरवाले परन साथ वालों परऔर…