‘दिनकर विद्रोह और क्रांति की तेज के साथ प्रेम की कोमल अभिव्यक्ति के कवि’

‘दिनकर विद्रोह और क्रांति की तेज के साथ प्रेम की कोमल अभिव्यक्ति के कवि’


राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर हिंदी की छायावादोत्तर कवियों की पहली पीढ़ी के ऐसे कवि थे जिनकी कविताओ में जहां एक ओर, विद्रोह और क्रान्ति का तेज है तो दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी। उन्होंने कुरुक्षेत्र, हुंकार,रश्मिरथी, परशुराम की प्रतीक्षा जैसी काव्य रचनाओं में एक तरफ जहां सामाजिक-आर्थिक असमानता और शोषण के खिलाफ कई पौराणिक पात्रों और घटनाओं को आधुनिक संदर्भ और प्रखर शब्द देकर हमारे समय की विसंगतियों पर तीखा प्रहार किया तो दूसरी ओर ‘उर्वशी’ में स्वर्ग की परित्यक्ता एक अप्सरा की कहानी के बहाने मानवीय प्रेम, वासना और स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की बहुत गहरी पड़ताल की है।ये बातें नूतन साहित्यकार परिषद ,कांटी के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने राष्ट्र कवि दिनकर की जयंती समारोह। में कहीं।जयंती समारोह की शुरुआत साहित्य भवन ,कांटी में ‘जब नाश मनुज पर छाता है,पहले विवेक मर जाता है..,सिंहासन खाली करो की जनता आती है..,दो में से क्या तुम्हे चाहिए कलम या कि तलवार..,जो तटस्थ है समय लिखेगा उसका इतिहास..,कलम आज उनकी जय बोल..,श्वानों को मिलता दूध भात.. जैसी राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की बहु पठित कविताओं के पाठ से की गई। सर्वप्रथम दिनकर की तस्वीर पर माल्यार्पण कर श्रद्धांजलि अर्पित की गई। जयंती समारोह को संबोधित करते हुए परिषद के अध्यक्ष चंद्रभूषण सिंह चंद्र ने कहा कि अपनी ओजस्वी रचनाओं से राष्ट्रीयता का अलख जगाने वाले दिनकर के बिना हिन्दी साहित्य की परिकल्पना अधूरी है। जनकवि दिनकर ने आजादी की लड़ाई से लेकर आजादी मिलने तक के सफर को अपनी कविताओं के माध्यम से व्यक्त किया है। एक ओर जहां उनकी कविताएं वीर रस से भरी हुई हैं, वहीं दूसरी ओर कोमल श्रृंगारिक भावनाओं की अभिव्यक्ति भी है। चंद्र ने कहा कि दिनकर आग व राग के कवि हैं। सत्ता से नजदीक रहने के बाद भी दिनकर ने गरीबों, किसानों और देश की बदहाल स्थिति की को स्वर देना बंद नहीं किया। उनकी रचनाओं में प्रगतिवाद, जनपक्षधरता, व्यवहारिकता व मानवतावाद है।
स्वराजलाल ठाकुर ने कहा कि दिनकर ने शोषण व सामाजिक-आर्थिक असमानता के विरोध में भी कविताएं लिखी। संस्कृति के चार अध्याय के माध्यम से उन्होंने भारत के अनेकता में एकता का संदेश दिया है। परशुराम सिंह ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर विद्रोही कवि थे। जयंती समारोह में दिनकर के पुत्र केदारनाथ सिंह के निधन पर मौन रखकर श्रद्धांजलि दी गई। जयंती समारोह में वसंत शांडिल्य, दिलजीत गुप्ता आदि ने दिनकर की प्रमुख कविताओं का पाठ भी किया। धन्यवाद ज्ञापन पिनाकी झा ने किया। कार्यक्रम में नंदकिशोर सिंह,मनोज मिश्र,प्रकाश कुमार,महेश प्रसाद,रजनीश कुमार,गोविंद कुमार आदि उपस्थित थे।