खुद से खुद के द्वंद की प्रतिबिंब है महिला

खुद से खुद के द्वंद की प्रतिबिंब है महिला

खुद से खुद के द्वंद की प्रतिबिंब है महिला
कभी चार दिवारी में बंद 
तो कभी चीरती आकाश को है महिला
सबके लिए हंस कर कुर्बान
तो कभी खुद को दर्पण में निहारती है महिला
पता नहीं कब बेटी से बीवी, बहू, मां,और दादी नानी बन जाती है महिला
एक ही जन्म में सात जन्म जी जाती है महिला
प्यार जिसमें , उद् गार जिसमें, जिसमें समर्पण और अहंकार जिसमें
हे श्रृष्टि! वह जननी तुम्हारी…. और वही तो है महिला।।।

लेखिका: अलकानंदा मिश्रा, Canara Bank, Manager,  प्रतिनुक्ति पर: वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय, पटेल चौक, नई दिल्ली