आज फिर मखमली फूलों को

आज फिर मखमली फूलों को

आज फिर मखमली फूलों को
कैद किए हुए पन्नी की चादर में
किसी को लिए जाते देखा,
छिपा कर दुनिया की नज़रों से
अरमां कुछ अनकहे,
निःशब्द बयां करते देखा।

ना जाने कितने ख़्वाब,
ना जाने कितनी आरज़ू,
ना जाने दिलों की कौन सी गुफ्तगू,
छिपे बैठे थे
पन्नी की हर एक सिलवट में
बांधे रखा था जिसने
मखमली ख्वाबों की पंखुड़ियों को।

कुछ अनूठा सा था
दुनिया से जुदा वो अंदाज,
बात थी कुछ खास 
अवश्य ही उन फूलों के साथ।
यादें जुड़ी होंगी
बगीचे की धूप के साथ की,
या कॉलेज की कैंटीन के समोसे और चाय की,
सपने होंगे जो साथ देखे होंगे जागती आंखों ने,
या फिर होगी दोबारा मिलने की आस।

बातें कितनी समेटे इन मूक फूलों ने
बयां किया होगा कितने संदेश
भर आई होंगी आंखे शायद खुशी से,
या उछल पड़े होंगे कदम अकस्मात।
घूम गईं होगी शायद वो सुनहरी दुनिया आंखों के सामने।
और कटु सत्य को जीवन के मिल गया होगा विराम।

आलिंगन इन पुष्पों का फिर दे जायेंगी यादें
भविष्य में फिर एक पुष्प होगा इन मुलाकातों के नाम
नही, बिल्कुल नहीं!
लाल, गुलाबी या श्वेत..  नहीं थे इन फूलों के रंग
बल्कि वो थे बैंगनी गुलाब
समेटे पैगाम बहुत ही खास।।

लेखिका: अलकानंदा मिश्रा, Canara Bank, Manager,  प्रतिनुक्ति पर: वित्तीय सेवा विभाग, वित्त मंत्रालय, पटेल चौक, नई दिल्ली