‘सरकार’! तमिलनाडु के ‘हार्ड वर्कर्स’ की सुध लीजिए ना

‘सरकार’! तमिलनाडु के ‘हार्ड वर्कर्स’ की सुध लीजिए ना

पशुपति शर्मा

तमिलनाडु के किसानों का धरना प्रदर्शन पिछले 40 दिनों से जंतर-मंतर पर चल रहा है। कभी वो अर्धनग्न होकर नारे लगाने की वजह से सुर्खियों में आते हैं तो कभी सांभर-चावल बीच सड़क पर खाने की वजह से तस्वीरें न्यूज़ चैनलों पर दिखाई देती हैं। कभी अपने ही साथियों के कंकाल के साथ होने की वजह से वो चर्चा में आते हैं तो कभी सांप-चूहे दांतों में दबाने की बात सामने आती है। हद तो तब हो गई जब उन्हें मूत्र पीकर अपना विरोध जताना पड़ा। बावजूद इसके जंतर-मंतर से चंद किलोमीटर की परिधि में रहने वाले हुक्मरानों को न तो सिहरन हो रही है और न ही वो इस बात की जरूरत महसूस कर रहे हैं कि तमिलानाडु के किसानों की मांगों पर संजीदगी से विचार शुरू हो।

सोशल मीडिया को कई साथियों ने संग्राम का अड्डा बना रखा है, लेकिन ऐसे मुद्दों पर यही सोशल मीडिया साथियों को एकजुट करने में भी काफी कारगर रहा है। ऐसे मुझे जंतर मंतर पहुंचने के बाद लगा। मैं किसानों के धरना स्थल पर एक किनारे बैठा था। वहां धीरे-धीरे और लोग भी जुटते जा रहे थे। बीच में बिछी दरी पर अर्धनग्न किसान थे। उनके ईर्द-गिर्द जिंस-कुर्ते, पैंट-शर्ट और ऐसे ही साधारण लिबास में महानगरों के वो चंद लोग जुट रहे थे, जिनकी संवेदनाओं में गांवों के खेतों वाली नमी बाकी है। उनकी खुसफुसाहट में ये बातें थीं कि सोशल मीडिया पर मूत्र पीने की बातें सुनकर वो बेहद शर्मिंदा महसूस कर रहे हैं। वो इसलिए इन किसानों के साथ अपनी एकजुटता प्रदर्शित करने पहुंचे हैं। कई अपने मित्रों के बुलावों पर यहां आ जमे थे। ज्यादातर चेहरे ऐसे थे जो किसी संगठन से नहीं जुड़े थे।

तमिल भाषा में किसान नेता और दूसरे साथी संबोधित कर रहे थे। भाषायी अड़चन की वजह से मैं उनके कथ्य को समझ नहीं पा रहा था। लेकिन बीच-बीच में तालियों की ध्वनि, लोगों के चेहरे के बदलते भाव, उनका जोश, उनका गुस्सा सब महसूस कर रहा था। महज चंद घंटों पहले मूत्र पीकर अपना विरोध जतलाने वाले किसान, सुबह की इस बेला में उत्तेजित नहीं थे। वो अपनी मांगें, अपनी आवाज़ सरकार तक पहुंचाना चाहते थे लेकिन किसी किस्म की अराजकता फैलाने वाला उन्माद उनमें नहीं दिखा। गांधीवादी तरीके से अपनी बात कहने की इस तरह की कोशिशों का गांधी के देश में सम्मान तो होना ही चाहिए। इन्हीं सब के बीच चंपारण सत्याग्रह का झोला लिए एक साथी की ओर मेरी निगाहें बरबस टिक गईं। देश चंपारण सत्याग्रह का शताब्दी वर्ष जो मना रहा है।

इसी बीच किसानों का एक झुंड किसान एकता जिंदाबाद के नारे लगाता हुआ धरना स्थल की ओर बढ़ा। सारी निगाहें और मोबाइल कैमरे भी उनकी ओर मुड़ गए। फिर तो रूक-रूक कर नारों के साथ समूहों के आने का सिलसिला कुछ-कुछ अंतराल पर बदस्तूर जारी रहा। फेसबुक पर संघर्ष की बातें करने वाले कई साथी पहली बार जंतर-मंतर पर एक-दूसरे से रूबरू हो रहे थे। अपना परिचय दे रहे थे और इस लड़ाई में साझीदार बनने का संकल्प दोहरा रहे थे। मंच से इस बीच घोषणा हुई कि राजस्थान, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ से किसान नेता और प्रतिनिधि इस धरने में शरीक होने के लिए पहुंच गए हैं या पहुंच रहे हैं। एकजुट होकर संघर्ष का जो भाव और आनंद होता है, वो इन मुश्किल घड़ियों में भी महसूस कर रहा था। नारों के बीच-बीच में चेहरों पर मुस्कान आ जाती थी। कोई चुटीला तंज हुआ तो ये किसान अपनी हंसी भी नहीं रोक पा रहे थे।

सहज संवाद में भाषा की अड़चन बनी हुई थी।  तभी मेरे बाजू में बैठे एक साथी ने कहा- ”मेरे पिता की मौत खेतों में हुई थी। हम चाहें लखपति-करोड़पति हो जाएं, लेकिन अपनी माटी से अपना लगाव खत्म नहीं होना चाहिए। मैं तो अपनी उसी माटी को याद कर इस प्रदर्शन में शरीक होने आ गया हूं।” तब तक मंच से एक युवा साथी सोनू शर्मा ने हिंदी में अपनी बात रखनी शुरू की। उनकी कही बातों का तमिल में अनुवाद भी साथ-साथ चल रहा था। सोनू शर्मा ने बताया कि फेसबुक और सोशल मीडिया पर खुद सोनू और उनके साथियों ने एक मुहिम चला रखी है। उन्होंने कहा कि ‘हार्ड वर्ड’ की पैरवी करने वाले प्रधानमंत्री को तमिलनाडु के इन ‘हार्ड वर्कर्स’ की सुध लेनी चाहिए।

हिंद -पाक बॉर्डर पर फाजिल्का के एक गांव से आए किसान ने कहा कि ये वक्त कटाई का है, इसलिए ज्यादा तादाद में किसान जंतर-मंतर पर नहीं पहुंच पा रहे हैं। उन्होंने कहा कि कटाई के बाद सारे किसान तमिलनाडु के प्रदर्शनकारी किसानों के साथ खड़े रहेंगे। जब तक इन किसानों की मांगें नहीं मानी जाएंगी, वो अगली फसल की बुवाई नहीं करेंगे। बाद में आए वक्ताओं ने कहा कि ‘जय जवान’ का नारा दोहराने वाली ये सरकार भूल रही है कि अगर किसान अन्न नहीं उगाएंगे तो बॉर्डर पर लड़ने वाले जवानों के पेट भी नहीं भरे जा सकेंगे। ‘जय जवान’ के साथ ‘जय किसान’ का नारा लगाना ही होगा।

इस बीच पानी के पॉउच किसानों के बीच पहुंच गए थे। उन्हीं में से कुछ युवक धरना स्थल के ईर्द-गिर्द जमा पॉउच और दूसरे पेपर्स उठा कर साफ-सफाई का पूरा खयाल रख रहे थे। तभी दिल्ली के एक साथी ने कहा कि आज यहां सारे नेता एमसीडी चुनावों में मशगूल हैं। चुनावी राजनीति में मशरूफियात ऐसी है कि घंटे-दो घंटे का वक्त इन किसानों की सुध लेने का नहीं है।

तमिलनाडु में पिछले कुछ सालों से सूखे की मार की वजह से किसानों के खेत बंजर रह गए। वो फ़सल नहीं उगा सके। उनकी मांग है कि तमिलनाडु के किसानों के लिए राहत पैकेज की घोषणा की जाए। आरबीआई गवर्नर ने सरकार को नसीहत दी है कि किसानों का कर्ज माफ नहीं किया जाना चाहिए। इस पर नाराज किसान नेता ने कहा कि आरबीआई गवर्नर ये भूल रहे हैं कि अगर किसान अन्न नहीं उगाएगा तो उसके करदाता भी कमजोर हो जाएंगे। करदाता काम करने लायक नहीं रहेंगे तो आरबीआई तक टैक्स का पैसा भी नहीं पहुंचेगा। काम करने का स्टेमिना किसानों का उपजाया अन्न खाकर ही आता है।

नारे लगने लगे- देश को बचाना है तो किसानों को बचाना होगाकिसान का हाथ छोड़ा, तो मानो देश का हाथ छोड़ा। ऐसे ही नारों के बीच मुजफ्फरनगर के किसान नेता ने हुंकार भरी। कहा- ये लड़ाई किसान के मान सम्मान की है। तमिलनाडु के किसान घबराएं नहीं। पूरे देश का किसान एक है। अब किसान मल-मूत्र नहीं पीएगा, हुक्मरानों को मल-मूत्र का स्वाद चखना होगा।


india tv 2पशुपति शर्मा ।बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।

One thought on “‘सरकार’! तमिलनाडु के ‘हार्ड वर्कर्स’ की सुध लीजिए ना

  1. पत्रकारों के मध्य भी किसान नदारद है।किसान का दर्द हिंदुस्तान का दर्द कब बनाया जाएगा?या फिर वह केवल राजनीतिक जुमलेबाज़ी और वोट बैंक तक ही सीमित रह जाएगा।धन्यवाद पशुपति जी पीड़ा को महसूस करने के लिए…।

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