रेलवे की ‘सुस्त’ रफ्तार और ‘बुलेट’ का हसीन सपना

रेलवे की ‘सुस्त’ रफ्तार और ‘बुलेट’ का हसीन सपना

पुष्यमित्र

पिछले दिनों बिहार में बाढ़ से भारी बर्बादी हुई, सड़क से लेकर रेल मार्ग तक बुरी तरह प्रभावित रहा । आम लोगों तक मदद पहुंचाने में सरकार से ज्यादा सामाजिक संगठन सक्रिय दिखे, लेकिन आम लोग सड़क और रेल मार्ग को हुए नुकसान के लिए मरम्मत तो कर नहीं सकते, लिहाजा इसे सरकार को ही करना है, लेकिन बुलेट ट्रेन के मुहाने पर खड़ा रेलवे को देश के सबसे काहिल विभाग में से एक कहा जाए तो गलत नहीं होगा है। यहां काम बहुत ही सुस्त गति से होता है। खास कर इंफ्रास्ट्रक्चर से संबंधित। मंत्री बदल गए, लेकिन रेलवे में कामकाज का ढर्रा नहीं बदला । रेल रूट के मरम्मत की ये तस्वीरें 29-30 अगस्त की है। वो भी उस रुट की जो सामरिक दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण है।

ये रेल रूट नार्थ ईस्ट को शेष भारत से जोड़ने वाला एक मात्र रेलवे मार्ग है। इस साल बाढ़ की वजह से 13 अगस्त को यह पटरी टूट गयी। इसके बाद इस रूट से गुजरने वाली 80 यात्री रेल गाड़ियों और 100 से अधिक मालगाड़ियों का परिचालन एक झटके में बंद हो गया। बन्द हुआ तो हुआ, किसी को बहुत टेंशन नहीं। काम अपनी सुस्त रफ्तार से होता रहा। एक टूटी पटरी को जोड़ने में रेलवे को 42 दिन लग गए। तब तक नार्थ ईस्ट का रेल सम्पर्क कटा रहा। 80 यात्री गाड़ियां कैंसल रहीं। अब जरा इस तस्वीर को देखिये। ट्रेन पर टैंक और बख्तरबंद ट्रक लदे हैं, सेना का साजो-सामान लदी यह ट्रेन 13 अगस्त से कटिहार स्टेशन पर रुकी थी। शायद आज भी रुकी हो। ये टैंक कहां और क्यों जा रहे थे, यह तो नहीं मालूम। मगर यह वही वक़्त था जब डोकलाम पर भारत चीन के फौजी भिड़े हुए थे। मगर रेल की सुस्त कार्यप्रणाली की वजह से इस फौजी गाड़ी को भी कम से कम 42 दिन तो जरूर खड़ा रहना पड़ा होगा। आज भी इस रूट पर परिचालन सामान्य नहीं हो पाया है।

यह सब इसलिये बता रहा हूँ, ताकि आप समझें कि बुलेट ट्रेन का सपना देखने वाले अपने देश में रेलवे की हकीकत क्यों ऐसी है कि तीन साल से शिकायत करने के बावजूद एल्फिंस्टन में फूट ओवरब्रिज नहीं बन पाता है। आए दिन ट्रेनें पटरी से उतरती रहती है, रलवे स्टेशनों पर जानलेवा हादसे होते रहते हैं, मानव रहित क्रॉसिंग पर तो हादसों की भरमार है, फिर भी हम बुलेट ट्रेन की आधारशिला रखने के गुमान में फूले नहीं समा रहे । मूलभूत ढांचे को मजबूत किए बिना अगर हम बुलेट ट्रेन दौड़ा भी लेंगे तो क्या हो जाएगा । क्या ऐसा ही किसी और सक्षम मुल्क में होता जब सामरिक रूप से महत्वपूर्ण रुट की पटरी टूट जाती तो उसे दुरुस्त करने में 42 दिन लग जाते? इस सवाल का जवाब कौन देगा?


PUSHYA PROFILE-1पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।