स्वतंत्र पत्रकारिता के नए प्रयोग पर निकल पड़ा है पथिक पुष्यमित्र
फाइल फोटो
देश में चुनाव आने वाला है। सरकार अपना गुणगान करने में लगी है और विपक्ष सवाल उठाने में जुटा है । ऐसे में मीडिया का रोल अहम हो जाता है, लेकिन आज मीडिया ही सवालों के घेरे में है। सत्ता पक्ष और विपक्ष हर कोई मीडिया की निष्पक्षता पर सवाल उठा रहा है। पत्रकारों का एक धड़ा भी मीडिया की मौजूदा दशा और दिशा पर चिंता जता रहा है। आत्मालोचना की परंपरा पर यकीन करने वाले पत्रकारों की फेहरिस्त में एक नाम है वरिष्ठ पत्रकार पुष्यमित्र का। आप पिछले करीब 2 दशक से मीडिया में सक्रिय हैं और कई पुस्तकें भी लिख चुके हैं। पुष्यमित्र जनसरोकार से जुड़ी खबरों को प्राथमिकता देना पसंद करते हैं। पिछले हफ्ते उन्होंने प्रभात ख़बर, बिहार को अलविदा कह कर स्वतंत्र पत्रकारिता में कुछ प्रयोग करने की योजना बनाई है। पत्रकारिता से जुड़े इन तमाम पहलुओं पर पुष्यमित्र ने टीम बदलाव के साथी अरुण से खुलकर बात की और बेबाकी से अपनी राय रखी।
बदलाव-प्रभात खबर से आप लंबे वक्त से जुड़े रहे, ऐसे में क्या हुआ जो अचानक आपको नौकरी छोड़ने का फैसला करना पड़ा।
पुष्यमित्र- ऐसा नहीं है कि ये फैसला अचानक या फिर एक दिन में लिया गया, बल्कि इसके पीछे एक लंबी जद्दोजहद और आत्ममंथन है, जिसने मुझे स्वतंत्र पत्रकारिता की राह पर चलने के लिए प्रेरित किया। सरकार की ओर से मेरे ऊपर सीधा कोई दबाव नहीं था हां मेरी ख़बरों और विचारों पर कैंची चलने की कोशिश की जा रही थी, ये किसके दबाव में हो रहा था मुझे नहीं पता। मेरे लिए ग्राउंड रिपोर्टिंग के अवसर धीरे-धीरे कम होने लगे। कई लोगों को मेरी सोशल मीडिया पर सक्रियता भी अखड़ने लगी। ऐसे में पिछले 6 महीने से मन में बड़ी उथल-पुथल मची रही। आखिरकार मुझे लगा कि अगर अपने भीतर के पत्रकार को जिंदा रखना है तो मीडिया संस्थान को छोड़ना ही पड़ेगा और मैंने वही किया जो मेरे मन ने कहा। फिलहाल तो यही मन है, आगे की आगे देखेंगे।
बदलाव-पत्रकारिता तो ठीक है, लेकिन घर चलाने के लिए पैसा भी चाहिए, ऐसे में जब आपने नौकरी छोड़ने का फैसला किया तो घरवालों का क्या रिएक्शन रहा ।
पुष्यमित्र- मेरे काम करने का तरीका मेरे घर वालों को अच्छी तरह पता है, ऐसे में पिछले 6 महीने से जो कुछ मेरे भीतर चल रहा था उससे वो मानसिक रूप से ऐसे किसी भी हालात से निपटने के लिए तैयार हो चुके हैं। ऐसा मुझे लगता है।
बदलाव-आपने आगे का रास्ता किस रुप में तय करने का फैसला किया है ? क्या किसी मीडिया संस्थान से जुड़ने का इरादा है ?
पुष्यमित्र-देखिये, मैंने पत्रकारिता के लिए मीडिया संस्थान को छोड़ा है इसलिए एक बात तो साफ है कि पत्रकारिता करनी है, लेकिन किस रूप में करूंगा, कैसे करूंगा ये वक्त के साथ साफ हो पाएगा। फिलहाल अभी कोई खास तैयारी नहीं है ।
बदलाव- लोकसभा चुनाव आ चुका है, ऐसे में आप किस तरह पत्रकारिता के दायित्व को निभाएंगे ?
पुष्यमित्र-एक बात तो तय है कि लोकसभा चुनाव के दौरान बिहार के सभी संसदीय क्षेत्रों में घूमना है और जनता तक ग्राउंड की सच्चाई पहुंचानी है, जिस क्षेत्र में जनता का जो मिजाज होगा और उनके भीतर सरकार और विपक्ष को लेकर जो सोच होगी वो उसी रूप में जनता तक पहुंचाने की कोशिश करुंगा ।
बदलाव-पूरे बिहार में घूमने में काफी पैसा भी खर्च होगा और जो रिपोर्ट आप लेकर आएंगे उसको पब्लिश करने के लिए कोई ना कोई मीडिया प्लेटफॉर्म भी चाहिए, इसके लिए आपकी क्या तैयारी है ?
पुष्यमित्र-जब मैंने प्रभात ख़बर से इस्तीफा दिया और अपनी आगे की कार्ययोजना के बारे में सोशल मीडिया पर दोस्तों को बताया तो कई साथियों ने ना सिर्फ मेरे इस कदम की सराहना की बल्कि आर्थिक रूप से सहयोग देने का भी भरोसा दिया। रही बात मेरी रिपोर्ट की तो कुछ साथियों ने biharcoverez.com से एक वेबसाइट लॉन्च की है जिसपर मेरी सभी रिपोर्ट बिना काट-छांट के पब्लिश की जाएंगी। आपलोग भी अगर चाहें तो badalav.com पर मेरी रिपोर्ट प्रकाशित कर सकते हैं। मुझे खुशी होगी।
बदलाव- आपको फंडिंग करने वालों में क्या कोई राजनीतिक दल या फिर राजनेता भी शामिल हैं ।
पुष्यमित्र- पिछले दिनों एनडीए की पटना रैली में आम लोगों की उत्सुकता में कमी की सच्चाई जब मैंने सोशल मीडिया पर प्रसारित की तो कुछ लोग मेरे ऊपर इस तरह के आरोप लगाने लगे कि मुझे आरजेडी या फिर कांग्रेस से फंडिंग हुई है, लेकिन मैं ऐसे लोगों को बताना चाहता हूं कि चुनाव कवरेज के लिए मेरा खर्च उठाने वालों में कोई भी सियासी दल नहीं है बल्कि मेरे अपने मित्र बंधु हैं। खास बात ये है कि किसी ने गाड़ी का इंतजाम किया है तो किसी ने कैमरे का तो किसी ने गाड़ी में तेल का खर्च उठाने का फैसला किया। इतना ही नहीं कुछ लोगों ने रहने और खाने का जिम्मा उठाने की बात कही है। कुल करीब 5-7 दोस्त हैं जिनके सहयोग ने मेरा हौसला बढ़ाया है। खास बात ये है कि इन दोस्तों में कुछ ऐसे भी हैं जो मोदी भक्त तो नहीं हां मोदी समर्थक जरूर हैं और वो ये अच्छी तरह जानते हैं कि मैं वहीं लिखूंगा जो सच्चाई होगी, फिर भी मेरी मदद कर रहे हैं। ऐसे में एक बात तो साफ है हर कोई जमीनी हकीकत जानना चाहता है ।
बदलाव- सोशल मीडिया पर आपको गाली देने वालों की फेहरिस्त लंबी होती जा रही है, इसके पीछे की वजह ?
पुष्यमित्र- मैं ही नहीं ऐसे तमाम लोग है जो सरकार के खिलाफ या फिर सच्चाई लिखते हैं उनके पीछे ‘अंधभक्तों’ की पूरी जमात पड़ जाती है। पटना में मोदी की रैली की जब मैंने तस्वीरें जारी कीं तो ऐसे लोग छटपटा गए और मुझे अनाप-शनाप कहने लगे, इससे एक बात तो साफ है कि मेरी रिपोर्ट का इंपैक्ट हो रहा है। ऐसे में इन लोगों से मैं बस इतना कहना चाहूंगा कि आप मेरी रिपोर्ट को बेशक नापसंद करें, लेकिन इग्नोर नहीं कर सकते।
बदलाव- आपको क्या लगता है मौजूदा दौर में मीडिया अपनी भूमिका अच्छी तरह निभा रहा है या नहीं ?
पुष्यमित्र- देखिए अगर मीडिया संस्थान अपनी भूमिका सही तरीके से निभा पाते तो मुझे नौकरी नहीं छोड़नी पड़ती। मैंने पत्रकारिता के लिए नौकरी छोड़ी है। आप टीवी चैनल या अख़बार उठा लीजिए और दर्शक या फिर पाठक से उसके बारे में राय पूछिए तो आपको पता चल जाएगा कि आज ज्यादातर मीडिया संस्थान सत्ताधारी दलों के पिछलग्गू बन चुके हैं। आम लोगों में ये चर्चा आम है कि फलां चैनल, फलां अखबार अमूक पार्टी का समर्थक या फिर विरोधी है। लिहाजा पार्टियों के समर्थक और विरोधी अपने-अपने हिसाब से चैनल और अखबार तय कर लेते हैं।
देखिए मीडिया संस्थान विज्ञापन से चलता है इसलिए जो उसे मुनाफा देगा उसकी सुनेगा । ऐसे में जानबूझकर या फिर नौकरी के दबाव में पत्रकारों को वो सब करना पड़ता है जो उनका संस्थान चाहता है । लिहाजा अगर ऐसे लोगों को स्वतंत्र रूप से काम करने का मौका मिले तो वो निश्चित ही जनता की बात करेंगे ।
बदलाव-आपने जो रास्ता चुना है उसमें चुनौतियां बहुत हैं ऐसे में आप समाज से क्या उम्मीद रखते हैं ?
पुष्यमित्र- मैं अब तक मीडिया में काम करके एक बात तो जान गया हूं कि मीडिया के खरीदार बहुत हैं, लिहाजा जो उसे खरीदेगा वो उसकी भाषा बोलेगा। ऐसे में तय समाज को करना है कि क्या वो मीडिया को खरीदना चाहता है या नहीं। अगर आज समाज के लोग अखबार और टीवी चैनल के लिए पूरा पैसा चुकाने को तैयार हो जाएं तो मीडिया संस्थान भी समाज की सुनने लगेगा और वो सरकार के विज्ञापनों पर आश्रित नहीं रहेगा ।
बदलाव-अगर मान भी लिया जाए कि पाठक या दर्शक अखबार या चैनल के संचालन में जो खर्च आता है उसके अनुरूप पैसा देने लगे तो क्या भरोसा है कि मीडिया संस्थान सरकार से विज्ञापन लेना छोड़ देंगे ?
पुष्यमित्र- ये बात बिल्कुल सही है कि इस बात की कोई गारंटी नहीं है, लेकिन अगर अखबार या मीडिया संस्थान को खर्च आम जनता सीधे उठाने लगेगी तो नए मीडिया हाउस खुलने लगेंगे और वो जब जनता की पसंद बनने लगेंगे तो पुराने संस्थानों को अपना वजूद बचाने के लिए सरकार का साथ छोड़ जनता के साथ खड़ा होना पड़ेगा ।
बदलाव-युवा पत्रकारों के लिए आपकी क्या सलाह है ?
पुष्यमित्र- युवा साथियों से यही कहना चाहूंगा कि आप जनसरोकार से जुड़े रहिए लेकिन नौकरी जरूर कीजिए। इससे एक तो आपको अनुभव मिलेगा और मीडिया के भीतर कैसे काम होता है उसके बारे में अच्छी समझ होगी और ये सब आपके आगे के सफर में काम आएगा।
बदलाव- टीम बदलाव आपको इस नये सफर की शुभकामनाएं देती है।
2 thoughts on “स्वतंत्र पत्रकारिता के नए प्रयोग पर निकल पड़ा है पथिक पुष्यमित्र”
निराला बिदेशिया-(फेसबुक) पुष्य भाई ने लगभग एक साल बाद यह फैसला किया। इनका पूरी तरह से बस चलता तो इस फैसले को साल भर पहले वे अमल में ला चुके होते लेकिन खुद पर इनका पूरा बस नही चलता। कुछ साथियों के दबाव,आग्रह और सुझाव को ये एक झटके में झटकार-टाल नही सकते। यह इनके स्वभाव का हिस्सा है। कुछ साथियों के दबाव-सुझाव-आग्रह ने इनके हाथ पांव को लगभग साल भर बांध कर रखा लेकिन अब वह बंधन टूट चुका है। पुष्य भाई अब पूरी तरह से अपनी पसंद के काम पर लग गये हैं। स्वतंत्र होकर। लोगों के बीच जाना,ब्लैक रोड से नीचे तक जाना,फिर उसे लिखना इनकी पत्रकारिता की पहचान है। इसे आप मेरी सीमित सोच कह सकते हैं। सम्पर्कों के दायरे की लघुता भी मान सकते हैं लेकिन जो भी सीमित जानकारी या दायरा है, उसके आधार पर कह सकता हूँ कि फिलहाल हिंदी पत्रकारिता में Pushya Mitra भाई की तरह जिद,जुनून,समर्पण,समझ,सरोकार और जानकारी वाले पत्रकार कम दिखते या मिलते हैं। ग्रासरूट जर्नलिज्म में एकदम नही। पुष्य भाई प्रभात खबर में भी जब रहे तो सीमित संसाधनों में या संसाधम न मिलने के बावजूद जिस तरह से इन्होंने बिहार या झारखण्ड में काम किया, वह प्रेरक है। पूरे बिहार के विविध पक्षों और आयाम को जानने,समझने की ईमानदार कोशिश भाई ने की, उतनी जिज्ञासा कम दिखती है। प्रभात खबर में रहते हुए पॉलिटिक्स पत्रिका को शुरू करने की बात हो या पंचायतनामा को खड़ा करने की बात,पुष्य भाई एक समान जुनून से लगे रहे। और फिर बाद में जब अखबार में आये तो भी पूरे बिहार में घूमकर उसी जुनून से रिपोर्टिंग। पुष्य भाई का यह फैसला हिंदी पत्रकारिता और विशेषकर बिहार की पत्रकारिता को बहुत कुछ नया देगा,खास देगा। अब के समय मे पत्रकारों और पत्रकारिता,दोनों के स्वत्व,गरिमा,विश्वसनीयता और सरोकार को बचाये बनाये रखने के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता एकमात्र रास्ता है।
पुष्प भाई के साहसिक फैसले को सलाम। उन सरीखे साथी ही पत्रकारिता को बचा सकते हैं।
निराला बिदेशिया-(फेसबुक) पुष्य भाई ने लगभग एक साल बाद यह फैसला किया। इनका पूरी तरह से बस चलता तो इस फैसले को साल भर पहले वे अमल में ला चुके होते लेकिन खुद पर इनका पूरा बस नही चलता। कुछ साथियों के दबाव,आग्रह और सुझाव को ये एक झटके में झटकार-टाल नही सकते। यह इनके स्वभाव का हिस्सा है। कुछ साथियों के दबाव-सुझाव-आग्रह ने इनके हाथ पांव को लगभग साल भर बांध कर रखा लेकिन अब वह बंधन टूट चुका है। पुष्य भाई अब पूरी तरह से अपनी पसंद के काम पर लग गये हैं। स्वतंत्र होकर। लोगों के बीच जाना,ब्लैक रोड से नीचे तक जाना,फिर उसे लिखना इनकी पत्रकारिता की पहचान है। इसे आप मेरी सीमित सोच कह सकते हैं। सम्पर्कों के दायरे की लघुता भी मान सकते हैं लेकिन जो भी सीमित जानकारी या दायरा है, उसके आधार पर कह सकता हूँ कि फिलहाल हिंदी पत्रकारिता में Pushya Mitra भाई की तरह जिद,जुनून,समर्पण,समझ,सरोकार और जानकारी वाले पत्रकार कम दिखते या मिलते हैं। ग्रासरूट जर्नलिज्म में एकदम नही। पुष्य भाई प्रभात खबर में भी जब रहे तो सीमित संसाधनों में या संसाधम न मिलने के बावजूद जिस तरह से इन्होंने बिहार या झारखण्ड में काम किया, वह प्रेरक है। पूरे बिहार के विविध पक्षों और आयाम को जानने,समझने की ईमानदार कोशिश भाई ने की, उतनी जिज्ञासा कम दिखती है। प्रभात खबर में रहते हुए पॉलिटिक्स पत्रिका को शुरू करने की बात हो या पंचायतनामा को खड़ा करने की बात,पुष्य भाई एक समान जुनून से लगे रहे। और फिर बाद में जब अखबार में आये तो भी पूरे बिहार में घूमकर उसी जुनून से रिपोर्टिंग। पुष्य भाई का यह फैसला हिंदी पत्रकारिता और विशेषकर बिहार की पत्रकारिता को बहुत कुछ नया देगा,खास देगा। अब के समय मे पत्रकारों और पत्रकारिता,दोनों के स्वत्व,गरिमा,विश्वसनीयता और सरोकार को बचाये बनाये रखने के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता एकमात्र रास्ता है।
पुष्प भाई के साहसिक फैसले को सलाम। उन सरीखे साथी ही पत्रकारिता को बचा सकते हैं।