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दयाशंकर मिश्र
पगडंडियों से तो बहुत से रास्ते खुल सकते हैं, लेकिन सीमेंट की रोड से यह सुविधा नहीं होती. अपने भीतर कोमलता और परिवर्तन का फूल खिलाए बिना जीवन में चुनौती की धूप का सामना करना मुश्किल हो जाएगा. #जीवनसंवाद प्रमाण पत्र!
जीवन संवाद 964
हर कोई असाधारण होना चाहता है. कुछ खास होने का भाव जब तक भीतर बेचैनी पैदा न करे, तब तक तो ठीक है, लेकिन जब दूसरों की देखादेखी उनके जैसा होने, दिखने की कोशिश की जाती है, तो यह जीवन को उस ओर भेजगी, जहां से धीरे-धीरे रास्ते बंद होंगे. पगडंडियों से तो बहुत से रास्ते खुल सकते हैं, लेकिन सीमेंट की रोड से यह सुविधा नहीं होती. अपने भीतर कोमलता और परिवर्तन का फूल खिलाए बिना जीवन में चुनौती की धूप का सामना करना मुश्किल हो जाएगा. हम सब प्रमाण पत्र के पीछे पागलों की तरह दौड़ते रहते हैं. जैसे बच्चा नए कपड़े पहनते ही सबको दिखाने दौड़ पड़ता है. वह सबके पास जाता है. अपनी तारीफ की लालसा लिए. जो उसकी प्रशंसा कर दे, वह तो ठीक, लेकिन जो ऐसा न कर पाए, उससे वह नाराज भी हो जाता है. बच्चे की बात तो फिर भी समझ में आती है, लेकिन बड़ों का क्या कीजिएगा. उनका तो कोई इलाज नहीं. जैसे-जैसे हम पद और प्रतिष्ठा की सीढ़ियां चढ़ते जाते हैं, हम खुशामद और प्रमाण पत्रों की लालसा से घिरते जाते हैं. जैसे हमारे यहां पंचतंत्र की कहानियां हैं, वैसे ही प्राचीन यूनान में ईसप की कहानियां हैं. ईसप की कहानियां विश्व की सर्वाधिक लोकप्रिय और नैतिक मूल्य वाली कहानियों में से हैं.
ईसप की एक कहानी कुछ इस तरह है.जंगल में एक नौजवान होते शेर से एक दिन उसकी दरबारी, मक्खनबाज लोमड़ी ने कहा, ‘वैसे तो जंगल के राजा आप ही हैं, लेकिन लोगों से भी तो यह पूछना चाहिए’. शेर को सुझाव अच्छा लगा. इस तरह के प्रमाण पत्र हासिल करने के सुझाव अक्सर मन को छूने वाले होते हैं. उनमें छुपी खुशामद को समझ पाना आसान नहीं होता. तो शेर जा पहुंचा भेड़ियों के पास. उनसे पूछा, ‘कौन है राजा’? भेड़ियों ने कहा, ‘इसमें पूछना कैसा आप स्वयं हैं’. यही बात हिरणों से पूछी गई. उत्तर वही मिलना था. इन सब उत्तरों से अकड़ा हुआ शेर बलशाली हाथी के सामने जा पहुंचा. उससे पूछा कि बताओ कौन है सम्राट वन का? हाथी ने उसे अपनी सूड़ में लपेटा और उछाल दिया कई फीट दूर. शेर को हमेशा सलाह दी जाती है कि हाथी के सामने न जाए, लेकिन जब सवाल प्रमाण पत्र का होता है, अकड़ का होता है, तो हम दूसरे की शक्ति और उसके सम्मान को सहज भूल जाते हैं. शेर की हड्डी पसली बराबर हो गई. कुछ देर में लंगड़ा हुआ, हाथी से बोला, ‘अगर उत्तर न मालूम हो, तो इतना परेशान होने की क्या जरूरत! कह देते कि नहीं मालूम था’!
जिसको भी उत्तर पता होता है उसे प्रमाण नहीं देना होता. जिसको प्रमाणित करना पड़े उसकी प्रतिष्ठा को सदैव संदिग्ध समझें. हम चौबीस घंटे प्रमाण जुटाने में लगे रहते हैं. कभी सुंदरता का प्रमाण, कभी बुद्धिमानी का और कभी अपने सबसे अलग होने का प्रमाण. अपने आसपास सजग दृष्टि रखिए, जो भी आपको प्रमाण पत्र जुटाने को कहें. उनसे सावधान रहिए, नहीं तो शेर की तरह बलशाली, राजा हो करके भी जीवन पर आसानी से संकट को निमंत्रण दे सकते हैं .ई-मेल [email protected]
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दयाशंकर। वरिष्ठ पत्रकार। एनडीटीवी ऑनलाइन और जी ऑनलाइन में वरिष्ठ पदों पर संपादकीय भूमिका का निर्वहन। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। अवसाद के विरुद्ध डियर जिंदगी के नाम से एक अभियान छेड़ रखा है।