वैशाली के समकालीन गणराज्यों की गाथा

वैशाली के समकालीन गणराज्यों की गाथा

वीरेन नंदा

भारत के ऐतिहासिक युग की शुरुआत वैशाली गणराज्य से होती है। यह दुनिया का पहला गणराज्य था। इस गणराज्य के भग्नावशेष मुजफ्फपुर से करीब 27 किलोमीटर दूर बसाढ़ नामक स्थान पर आज भी देखने को मिलते हैं, जो अब वैशाली के नाम से प्रसिद्ध है। वैशाली 600 ईसा पूर्व का सबसे वैभवशाली गणराज्य था। पौराणिक मान्यताओं के मुताबिक वैशाली गणराज्य वैदिक युग में स्थापित हुआ माना जाता है। विदेह राजवंश की समाप्ति के बाद मिथिला की का कोई अता-पता नहीं चलता। इसकी जगह वैशाली गणराज्य की गूँज सुनाई पड़ती है। ऋग्वेद और अर्थवेद में भी गणराज्य की चर्चा हुई है। रामायण के मतानुसार इक्ष्वाकु के पुत्र विशाल ने विशाल नगर बसाया था जो बाद में वैशाली के नाम से प्रसिद्ध हुआ। विशाल राजा के बाद इस पर हेमचंद, शुचंद्र, धूमाश्व, सृंजय, कुशाश्व, सोमदत्त, काकुष्ठ एवं सुमति नामक राजाओं का शासन रहा।

वैशाली गणराज्य अथवा लिच्छवि गणतंत्र आठ-नौ छोटी-छोटी जातियों का संघ-शासन था जिसमें वज्जि, विदेह, लिच्छवि और ज्ञात्रिक प्रमुख जातियाँ थीं। इसमें मल्लों के 9 गणराज्य, लिच्छवियों के 9 तथा काशी और कौशल के 18 गणराज्य शामिल थे। यह अपने समय का सर्वाधिक शक्तिशाली एवं समृद्ध गणराज्य था। लिच्छवि गणराज्य की राजधानी वैशाली थी जो वृज्जि-संघ-राज्य-शासन की भी राजधानी थी। अपने समय यह अत्यंत समृद्ध, वैभवयुक्त तथा सम्पूर्ण साधन से संपन्न नगर था। इस नगर में उस वक़्त 42,000 परिवार रहा करते थे। तथा इस गणराज्य में 7707 राजा थे। जिसके प्रधान को भी राजा कहा जाता था। ये सभी राजा इस गणराज्य के चुने हुए प्रतिनिधि हुआ करते थे। उस वक़्त यहां एक विशाल संसद भवन भी था जिसमें ये तमाम चुने हुए प्रतिनिधि बैठते थे।

कहा जाता है कि एक बार बृज्जि-संघ के बीच अम्बपाली के अपूर्व सौंदर्य से वशीभूत हो तमाम लोग उसे पाने अथवा पत्नी बनाने को लेकर गृह-कलह करने लगे और जब यह कलह अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँची, तब वैशाली की अम्बपाली किसी की कुलबधु बनने की बजाय ‘बृज्जिसंघ’ के संस्थागार के परिषद् में असंख्य लोगों के बीच खड़ी हो वैशाली की नगरबधु बनना स्वीकार कर, इस गणराज्य को टूटने से बचाया था।

5वीं शताब्दी में चीनी यात्री फाह्यान चन्द्रगुप्त द्वितीय के समय भारत आया था। वह चीन से सन् 399 ई. में चला और 414 ई. में वापस लौटा। लेकिन उसने  वैशाली के सम्बन्ध में कुछ भी नहीं लिखा। पाटलिपुत्र में रह कर तीन वर्षों तक संस्कृत की शिक्षा ली। 7वीं सदी में दूसरा चीनी यात्री युवान च्वाङ् (ह्वेनसन) सन् 630 ई. में सम्राट हर्षवर्धन के समय भारत आया तो वैशाली घूमते हुए उसकी चर्चा अपने ‘पश्चिमी संसार का विवरण’ में की, – “उस समय दक्षिण में वैशाली और उत्तर में बृज्जि राज्य थे। वैशाली राज्य का घेरा 1000 मील था। उत्तर और पूरब में बृज्जियों का राज्य था जिसका घेरा 800 मील में था। इसकी राजधानी चनसुन खण्डहर हालत में थी। यहाँ के अधिकांश लोग हिन्दू धर्म मानने वाले थे बौद्ध धर्म माननेवालों की संख्या बहुत ही कम थी। सैंकड़ों बौद्ध विहार के भग्नावेश थे किन्तु दो चार ही चालू हालत में थे। वैशाली का घेरा 12 मील था जिसमें राजप्रासाद की घेराई एक मील थी, जो टूटे-फूटे हालत में थी। जगह-जगह पुराने खण्डहर दिख रहे थे। यहाँ बौद्ध धर्म ह्रास पर था। जैन धर्म मानने वालों की संख्या ज्यादा थी।”

शाक्य गणराज्य

ऐसा नहीं है कि वैशाली गणराज्य के समय भारत में केवल यही गणराज्य था। नेपाल की सीमा के पास एक शाक्य-गणराज्य भी था। इस शाक्य-संघ के प्रधान को राजा कहा जाता था, जो निर्वाचित होकर इस पद पर आता था। इस शाक्य-गणराज्य में अस्सी हजार परिवार विभिन्न नगरों में रहते थे। सभी युवा व वृद्ध इस गणराज्य के शासन में भाग लेते थे। किसी भी महत्वपूर्ण कार्य के लिए सभी मिलकर निर्णय लेते थे, जिसमें एक निश्चित संख्या द्वारा मंजूरी आवश्यक थी। 600 ई.पूर्व के अंतिम समय कोसल के राजा विददभ ने इस गणराज्य को अपने अधीन कर लिया था। ज्ञात रहे कि इसी शाक्य-गणराज्य के वंश में सिद्धार्थ का जन्म हुआ था। जिसे महात्मा बुद्ध के नाम से दुनिया जानती है।

इन गणराज्य के अतिरिक्त अन्य गणराज्यों में शाक्य-गणराज्य से पूरब कोलिय-गणराज्य, ज्ञात्रिक-गणराज्य, हिमालय की तराई के पर्वतीय क्षेत्र में मौरिय-गणराज्य, पावा के मल्लों का क्षत्रिय-गणराज्य आदि छोटे-छोटे गणराज्य मौजूद थे। इसके अतिरिक्त उत्तर-पश्चिम में झेलम और चिनाब नदी के संगम के निकट दक्षिण में भी अनेक गणराज्य 400 ई.पू. में मौजूद थे जिनमें अम्बष्ठ, क्षत्रिय, अग्रश्रेणी, क्षुद्रक, मूषिक, शूद्र, मुचिकण, मालव, शम्भू, पत्तल, आविस्कानुस गणराज्य के नाम उल्लेखनीय है। इन्हीं गणराज्यों से यूनानी सिकन्दर को मुकाबला करना पड़ा था। इन सभी गणराज्यों ने सिकन्दर के वापस लौटने वक़्त भी अनेक बाधाएं उत्पन्न खड़ी की थीं जिस कारण सिकन्दर को भीषण युद्ध करना पड़ा था। यह अलग बात है कि इन्हें परास्त होना पड़ा लेकिन सिकन्दर को काफी क्षति उठानी पड़ी।

चंद्रगुप्त मौर्य

हिमालय की तराई क्षेत्र का मौरिय-गणराज्य वंश का ही महान सम्राट चन्द्रगुप्त हुआ था जो चाणक्य के साथ मिलकर साम्राज्यवादी नीति के तहत इन सभी गणराज्यों को समाप्त करके एकछत्र राज स्थापित करने हेतु मौर्य साम्राज्य को भारत में फैलाया जिसके फलस्वरूप ये सभी गणराज्य समाप्त हो गए। 400 ई. पू. जब मौर्य शासन का पतन हुआ तब फिर से कई गणराज्यों का उदय पश्चिमी भारत में हुआ। पूर्वी पंजाब और उत्तरी राजस्थान में यौधेय-गणराज्य,  जयपुर में अर्जुनायन-गणराज्य, पूर्वी राजपुताना में मालव-गणराज्य, कुल्लू घाटी में कुलूत-गणराज्य, कांगड़ा, गुरदासपुर व होशियार पुर में औदुम्बर-गणराज्य, स्यालकोट में भद्रक-गणराज्य, मध्य भारत में आभीर-गणराज्य, मध्यप्रदेश में प्रार्जुन-गणराज्य, भिलसा के पास सनकानिक-गणराज्य, साँची के निकट काक-गणराज्य, मध्यप्रदेश के पास दमोह में खरपरिक-गणराज्य आदि प्रमुख थे। पुनः ये सभी गणराज्य गुप्त-काल में समाप्त हो गए। चन्द्रगुप्त ने इन गणराज्यों को नष्ट करना शुरू किया जिसका अधिकांश समुद्रगुप्त के समय नष्ट हुआ , शेष को चन्द्रगुप्त द्वितीय ने समाप्त किया। गुप्तकाल के बाद किसी भी गणराज्य का उदय फिर कभी न हो सका।

फिर भी यही सच है कि वैशाली या वृज्जि-गणराज्य जैसा वैभवशाली गणराज्य गणतन्त्र का इतिहास दुनिया में पहला और अनूठा था।


वीरेन नन्दा।  बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री स्मृति समिति के संयोजक। खड़ी बोली काव्य -भाषा के आंदोलनकर्ता बाबू अयोध्या प्रसाद खत्री पर बनी फिल्म ‘ खड़ी बोली का चाणक्य ‘ फिल्म के पटकथा लेखक एवं निर्देशक। ‘कब करोगी प्रारम्भ ‘ काव्यसंग्रह प्रकाशित। सम्प्रति स्वतंत्र लेखन। मुजफ्फरपुर ( बिहार ) के निवासी। आपसे मोबाइल नम्बर 7764968701 पर सम्पर्क किया जा सकता है।


आदर्श गांव पर आपकी रपट

 

बदलाव की इस मुहिम से आप भी जुड़िए। आपके सांसद या विधायक ने कोई गांव गोद लिया है तो उस पर रिपोर्ट लिख भेजें। [email protected] । श्रेष्ठ रिपोर्ट को हम बदलाव पर प्रकाशित करेंगे और सर्वश्रेष्ठ रिपोर्ट को आर्थिक रिवॉर्ड भी दिया जाएगा। हम क्या चाहते हैं- समझना हो तो नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें

आदर्श गांव पर रपट का इंतज़ार है