पत्रकारों की गिरफ्तारी ‘दमनकारी नीति’ का हिस्सा तो नहीं ?

पत्रकारों की गिरफ्तारी ‘दमनकारी नीति’ का हिस्सा तो नहीं ?

पुष्य मित्र

कई बार कुछ खबरें आपको बहुत कुछ बोलने पर मजबूर कर देती है, वहीं कुछ खबरें सन्नाटे में धकेल देती है। रुपेश कुमार सिंह की गिरफ्तारी की खबर मेरे लिये दूसरे टाइप की खबर है। सोशल मीडिया के जरिये मैं रुपेश से लम्बे समय से जुड़ा रहा। हमलोगों में खूब बहस होती थी, कभी सहमत होते तो कभी अहसमत भी। मगर कभी ऐसा नहीं लगा कि उसके लिखे का इतना खतरनाक नतीजा भी हो सकता है। पिछ्ले एक हफ्ते में ऐसे ही 5 पत्रकारों के साथ कानून ने सख्ती की है। मुझे याद आ रहा है लोक सभा चुनाव के आखिरी दिन अमित शाह ने कहा था, हम एक ही काम नहीं कर पाये, मीडिया को अपने साथ नहीं कर पाये। अब शायद सरकार का वही प्रोजेक्ट चल रहा है।

कई बार कुछ खबरें आपको बहुत कुछ बोलने पर मजबूर कर देती है, वहीं कुछ खबरें सन्नाटे में धकेल देती है। रुपेश कुमार सिंह की गिरफ्तारी की खबर मेरे लिये दूसरे टाइप की खबर है। सोशल मीडिया के जरिये मैं रुपेश से लम्बे समय से जुड़ा रहा। हमलोगों में खूब बहस होती थी, कभी सहमत होते तो कभी अहसमत भी। मगर कभी ऐसा नहीं लगा कि उसके लिखे का इतना खतरनाक नतीजा भी हो सकता है। पिछ्ले एक हफ्ते में ऐसे ही 5 पत्रकारों के साथ कानून ने सख्ती की है। मुझे याद आ रहा है लोक सभा चुनाव के आखिरी दिन अमित शाह ने कहा था, हम एक ही काम नहीं कर पाये, मीडिया को अपने साथ नहीं कर पाये। अब शायद सरकार का वही प्रोजेक्ट चल रहा है।

 खैर इससे बहुत अधिक फर्क नहीं पड़ता। मैं उन लोगों में नहीं हूं जो सोचते हैं कि सोशल मीडिया पर लिख कर न्याय की लड़ाई लड़ी जा सकती है। गिरफ्तारी, जेल जाना, पिटाई होना, यह सब तो सत्य के पक्ष में खड़े होने की कीमत है। ऐसा हर जमाने में हुआ है। 1912-13 में एक सम्पादक को महज इसलिये नौकरी से हटा दिया गया था क्योंकि उसने नील किसानों की परेशानियों पर सिलसिलेवार रिपोर्ट छापी थी। हमें यह भी जानना चाहिये कि भारत में अखबार की शुरुआत करने वाले जेम्स आगस्टस हिक्की को वारेन हेस्टिंग्स ने उसकी चुभने वाली खबरों की वजह से जेल भिजवा दिया था। इसमें सिर्फ हेस्टिंग्स की पत्नी के अफेयर्स की गोसिप ही नहीं थी, बल्कि उसके द्वारा पहाडियां विद्रोह की खबरों का प्रकाशन भी था। क्या सब कुछ आज जैसा ही नहीं है?

रुपेश कुमार की हमसफर ने अपने साथी की गिरफ्तारी के बाद पूरे वाकये पर विस्तार से पिछले दिनों फेसबुक पर 10 जून को पोस्ट किया था जिसका जिक्र नीचे किया जा रहा है जिससे पूरी कहानी को समझा जा सकता है ।

कल मैं (10 जून  को ) जब Rupesh Kumar Singh से मिली, यह देख बहुत अच्छा लगा कि मेरे साथी के हौसले में कोई कमी नहीं आई है । उसे भरोसा है खुद पर और हम सभी दोस्तों पर । उसने और उसके दोनों साथियों ने पुलिस की कहानी से इतर जो सच बताया उसके मुताबिक—
इनकी गिरफ्तारी 6 को नहीं 4 june को सुबह 9.30 बजे ही हो गई । इनकी गिरफ्तारी पद्मा जो हजारीबाग से थोड़ा आगे है में तब हुई जब ये toilet जाने के लिए गाड़ी साइड किए थे। इनकी गिरफ्तारी IB द्वारा की गयी। toilet जाने के ही क्रम में पीछे से अचानक हमला बोला गया । बाल खिंच कर आंखों पर पट्टी लगा दी और हाथों को पीछे कर हथकड़ी भी लगाई गई, जिसका विरोध करने पर हथकड़ी खोल दी गई । बाद में आंखों की पट्टी भी हटा दी गयी ।

इन्हें फिर बाराचट्टी के कोबरा बटालियन के कैम्प में लाया गया ।जहाँ रूपेश को बिलकुल भी सोने नहीं दिया गया और रात भर बुरी तरीके से मानसिक टार्चर किया गया । उन्हें धमकाया गया कि व्यवस्था या सरकार के खिलाफ लिखना छोड़ दें । कहा गया कि- पढ़ें लिखे हो अच्छे आराम से कमाओ खाओ। ये आदिवासियों के लिए इतना क्यों परेशान रहते हो कभी कविता, कभी लेख। इससे आदिवासीयों का माओवादियों का मनोबल बढता है भाई। क्या मिलेगा इससे। जंगल,जमीन के बारे बड़े चिंतित रहते हो, इससे कुछ हासिल नहीं होना हैं, शादी शुदा हो परिवार है उनके बारे सोचो। सरकार ने कितनी अच्छी अच्छी योजनाएं लायी हैं इनके बारे लिखो। आपसे कोई दुश्मनी नहीं है, छोड़ देंगे । इस तरह की भी कई बातें की गई ।तीनों को कहा गया कि आप लोगों को छोड़ देगें ।और 5 जून को को मिथिलेश कुमार से दोपहर 1 बजे call भी करवाया गया जिसके आधार पर मैंने post भी Update किया था कि तीनों सुरक्षित हैं ।घर आ रहें हैं ।साथ ही इसकी जानकारी हमने call करके रामगढ़ थाना को भी दी जहाँ इन सबकी गुमशुदगी की रिपोर्ट की थी। 
5 जून को Rupesh को 4 घंटे सोने दिया गया । फिर 5 जून की शाम को कोबरा बटालियन के कैम्प में ही इनके सामने विस्फोटक गाड़ी में रखा गया विरोध करने पर शेरघाटी ASP रविश कुमार ने कहा कि “अरे पकड़े हैं तो ऐसे ही छोड़ देगें?? अपनी तरफ से केस पूरी मजबूती रखेंगें रूपेश जी।’ फिर इसी विस्फोटक सामग्री को दिखाकर डोभी थाना में Press Conference किया गया ।फिर इन्हें डोभी op को यह कहकर सौंप दिया गया कि ये ऐसे सुनने वाले नहीं अंदर कर दो इन्हें ।फिर 6 की शाम को इन्हें डोभी op से शेरघाटी जेल भेज दिया गया ।जहाँ हमारी मुलाकात कल हुई।
आखिर इनकी गिरफ्तारी को लेकर इतना झूठ पुलिस ने क्यों बताया ? 2 दिनों तक इन्हें सामने क्यों नहीं लाया ? और भी कई सवाल हैं ।साथ ही इनसे कोरे कागज में साइन भी करवाया गया है ।