चमकी बुखार से मासूमों की मौत की ‘जिम्मेदार सरकार’ का पोस्टमार्टम है ‘रुकतापुर’

चमकी बुखार से मासूमों की मौत की ‘जिम्मेदार सरकार’ का पोस्टमार्टम है ‘रुकतापुर’

ब्रह्मानंद ठाकुर

फाइल फोटो

पुष्यमित्र जी की इस किताब रुकतापुर में एक रिपोर्ताज का शीर्षक है – ‘ दूध न बताशा, बौवा चले अकासा’ यह रिपोर्ताज बिहार में कुपोषणजनित बिमारियों से मरने वाले बच्चों एवं उनके असहाय मां-बाप की दारुण दशा तो दर्शाती ही है, इस लोक कल्याणकारी सरकारी स्वास्थ्य व्यवस्था का भी पोल खोलती है। यह पढ़ते हुए मुझे कलम के जादूगर रामवृक्ष बेनीपुरी का कथन याद हो आता है ‘ जहां बच्चे मरते हैं, वह देश मेरा नहीं’ ।

बेनीपुरी जी ने एक दिन गंगा के किनारे एक बेबस पिता की हथेली पर एक मासूम और कोमलगात बच्चे की लाश कफन में लपेटे दफनाने के लिए जाते देख अपनी वह पीड़ा व्यक्त की थी। उन्होंने कहा था – बच्चे की मृत्यु संसार की सबसे अधिक करुण घटना है। यह बात बेनीपुरी जी 18 जून ,1950 को अपनी डायरी में लिखते हैं। तब आजादी मिले मात्र 3 साल हुए थे और आज आजादी के 73 साल बाद पत्रकार पुष्यमित्र अपनी पुस्तक ‘ रुकतापुर’ में लिख रहे हैं ‘ –‘ जैसे बिहार में बाढ़ और सुखार के मौसम हैं, वैसे ही बच्चों के मरने के भी मौसम हैं ।

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हमारे यहां सबसे छोटे ताबूत सबसे भारी नहीं होते।’ यह पढ़ते हुए कोई भी सहृदय इंसान जिसमें रत्तीभर भी संवेदना शेष हो, विचलित हुए बिना नहीं रह सकेगा। पिछले साल बिहार में विशेषकर मुजफ्फरपुर मे चमकी बुखार से बड़ी संख्या में बच्चे जब मर रहे थे तो इस खबर से पुष्यमित्र जी की पत्रकारिता कसमसाई और उन्होंने इस परिस्थिति में कुछ सार्थक करने का फैसला लिया। कुछ जांबाज स्वयंसेवी युवाओं की टोली गठित की। सहृदय लोगों ने आर्थिक सहयोग किया और युवाओं की यह टोली चमकी बुखार प्रभावित गांवों में घूम-घूम कर लोगों को जागरुक करने लगी। बुखार मापने के लिए थर्मामीटर बांटा, ओआरएस और ग्लुकोज के पैकेट्स बांटे गये। सबसे बड़ी बात उस दौरान यह हुई कि लोगों के बीच इस बीमारी से बचाव के लिए जागरुकता का प्रचार किया गया। उन्हें यह बताया गया कि पट्टी कब और कैसे देना चाहिए ओआरएस पिलाना चाहिए, अस्पताल ले जाना चाहिए।

टीम यह सब सरकारी एसओपी के आधार पर तब कर रही थी जब बिहार का स्वास्थ्य विभाग अपने ही बनाए एसओपी ( इस बीमारी पर काबू पाने के लिए एक मानक प्रक्रिया ) के तहत कोई काम ही नहीं कर रहा था। इसके तहत लोगों को इस बात के लिए जागरुक किया जाना था कि बच्चों को भूखे पेट सोने नहीं दिया जाए, चमकी बुखार की स्थिति में सबसे पहले शुगर लेवेल की जांच की जाए अगर शुगर लेवेल तेजी से बढ़ रहा हो तो ग्लुकोज चढ़ाया जाए और अगर बुखार आने के पांच से आठ घंटे के बीच यह उपचार मिल जाए तो बच्चे की जान बच सकती है। पुष्यमित्र जी ने अपनी किताब ‘ रुकतापुर ‘ मे इस बात का जिक्र किया है कि साल 2018 तक यह एसओपी कारगर रहा। उस साल राज्य में सिर्फ सात बच्चे इस बीमारी से मरे थे। मगर 2019 मे एकबार फिर पुराना दौर लौट आया। चमकी बुखार से बिहार में करीब 200 बच्चों की मौत हो गई। आखिर क्या कारण रहा कि बच्चे चमकी बुखार से मर रहे थे और सरकारी स्वास्थ्य महकमा इससे बचाव के लिए अपने ही बनाए एसओपी पर काम क्यों नहीं कर पा रहा था?

इसके जवाब मे पुस्तक के लेखक पुष्यमित्र जी केन्द्रीय स्वास्थ्य राज्ययमंत्री अश्विनी चौबे के 11 जून 2019 को पटना के आईजीआईएमएस अस्पताल में आयोजित समारोह में दिए बयान का उल्लेख करते हैं जिसमें मंत्री ने कहा था कि चुनावी व्यस्तताओं के कारण अधिकारी जागरुकता का प्रसार नहीं कर पाए। इस बीमारी का सबसे बड़ा और महत्वपूर्ण कारण कुपोषण है। पुस्तक में लेखक ने एनएफएचएस के आंड़ो के हवाले से उल्लेख किया गया है कि बिहार में प्रत्येक दो बच्चों में एक बच्चा कुपोषित है और इनमें सात फीसदी बच्चे अतिकुपोषित हैं। और यह भी कि बीमारी के दरम्यान जब जिज्ञासा संस्था ने मुजफ्फरपुर जिले के चार प्रखंडों में बूसरलाइन सर्वे कराया तो पता चला कि यहां 30 हजार से ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं। जाहिर है कि बच्चों के असामयिक मौत का कारण कुपोषणजनित बिमारियां ही हैं। सरकार बच्चों का कुपोषण दूर करने के लिए कई योजनाएं चला रही हैं। आंगनबाड़ी में पोषाहार है तो स्कूलों मे मिड डे मिल चलाया जा रहा है। फिर भी समस्याएं बरकरार हैं। कारण बताने की जरूरत नहीं। लोग सब कुछ समझ रहे हैं मगर चुप हैं। उन्हें यह चुप्पी तोड़नी होगी।

आखिर बिहार की जनता अपने नेताओं से यह सवाल क्यों नहीं कर रही कि चुनाव के समय जनता के जान माल का कोई मूल्य नहीं ? क्या आपके लिए सत्ता ही सर्वोपरि है ? हमारी कल्याण की योजनाएं भ्रष्टाचार की भेंट कबतक चढ़ती रहेगी ? अबतक नहीं पूछा तो नहीं पूछा, मगर अब तो पूछना ही चाहिए।आपको ऐसे अनेक सवाल पूछने हैं जो आपकी अस्मिता से जुड़ा है, नई पीढ़ी के भविष्य से जुड़ा है। मै समझता हूं , बिहार विधानसभा चुनाव के मौके पर प्रकाशित यह किताब हर पाठक को ऐसे ही सवाल पूछने के लिए बेचैन कर देगी।
अगली कड़ी में ‘ केकरा से करी अरजिया हो सगरे बटमार ‘ ( खेती कारोबार और रोजगार के बंटाधार ) विषय की चर्चा।