‘शिक्षा के दंगल’ में बिहार की बेटियां गुजरात पर भारी

‘शिक्षा के दंगल’ में बिहार की बेटियां गुजरात पर भारी

ब्रह्मानंद ठाकुर

बालिका शिक्षा के मामले बाईब्रेन्ट गुजरात की असलियत क्या है, यह आ़ंकड़े बता रहे हैं। जहां बिहार ने पिछले 10वर्षों में बालिका शिक्षा के क्षेत्र में ऊंची छलांग लगाई है वहीं इस अवधि में गुजरात अपने तमाम प्रयासों के बाबजूद 21 राज्यों की सूची में 20वें पायदान पर है। माने शिक्षा के क्षेत्र में सर्वाधिक पिछड़े राज्य राजस्थान से एक सीढ़ी आगे। अगर महिलाओं की स्थिति में सुधार के लिए उसे शिक्षित और स्वावलम्बी बनाना पहली जरूरत है तो गुजरात का ये विकास माडल कतयी स्वीकार्य नहीं है। यहां बाईब्रेन्ट गुजरात मे बालिका शिक्षा के हालात पर नजर डालने से पहले मैं बिहार में बालिका शिक्षा की वर्तमान स्थिति पर नजर डालता हूं। पिछले दस साल पहले बालिका शिक्षा के मामले में बिहार की कमोवेश वही स्थिति थी , जो आज गुजरात की बताई जाती है। इन दस सालों मे बिहार में बालिका शिक्षा की स्थिति में उल्लेखनीय प्रगति देखी जा रही है। गत वर्ष के टापर घोटाले की बात छोड दें तब भी यहां बालिकाओं में शिक्षा के प्रति काफी उत्साह देखा जा रहा है। इसका श्रेय बिहार सरकार द्वारा चलाए जा रहे साईकिल योजना, पोशाक और छात्रवृत्ति योजना को जाता है । मुख्यमंत्री साईकिल योजना की शुरुआत जब 2007-08 मे हुई थी तब सूबे के सरकारी स्कूलों की नौवीं कक्षा में छात्राओं की संख्या 1.63 लाख थी।  2008-09में यह संख्या बढ कर 2.72 लाख हो गयी । 2015में यह संख्या 8.15 लाख थी ।

गत वर्ष के इंटर और मैट्रिक परीक्षा फल पर यदि नजर डालें तो इंटर कला की परीक्षा मे कुल 5 लाख 10 हजार 903 बालिकाएं सम्मिलित हुई थीं जिनमें 2 लाख 89 हजार 881 (56.73 प्रतिशत) बालिकाएं उतीर्ण हुईं। वाणिज्य में बालिकाओं के पास होने का प्रतिशत 85.19 रहा । इसी तरह मैट्रिक की परीक्षा 2015 में 7 लाख 14 हजार 751 छात्राएं शामिल हुई, जिसमें 37.61 प्रतिशत छात्राएं उत्तीर्ण हुईं । न केवल बालिकाओं के लिए, बिहार सरकार ने बालकों के लिए भी शिक्षा के प्रति प्रोत्साहित करने के लिए योजनायें चला रही है जिसका बडा ही सार्थक नतीजा मिलने लगा है । सरकारी स्कूलों में नामांकन और उपस्थिति बढी है। छात्रवृत्ति योजना के तहत वर्ग 1 से 4 तक के बच्चों को 600 रूपये , वर्ग 5 एवं 6 के बच्चों को 1200 रूपये और वर्ग 7 से 10 तक के बच्चों को 1800 रूपये की दर से छात्रवृत्ति दी जाती है।

बिहार में साइकिल ने बदली बेटियों की ज़िंदगी। फोटो स्रोत-nitishspeaks.blogspot.in

साइकिल योजना में नौवी कक्षा के छात्र-छात्राओं को 2500 रूपये दिए जाते हैं । पोशाक के लिए वर्ग 1 एवं 2 के बच्चों को 400 रूपये, वर्ग 3, 4, 5 के छात्रों को 500 रूपये और वर्ग 6 से 8 तक के छात्र छात्राओं को 700 रूपये की दर से भुगतान किया जाता है । माध्यमिक स्तर पर राष्ट्रीय बालिका माध्यमिक शिक्षा योजना बिहार में म ई 2008 में शुरु की गयी थी । बिहार मे कक्षा 1 से 8 तक वाले कुल विद्यालयों की संख्या 71 हजार 762 है, जिसमें लगभग 2 करोड बच्चे पढते हैं।
अगर 1896 स्कूल और खुल जाएं तो गांव या टोला के बच्चे -बच्चियों के लिए 1 किमी के दायरे में स्कूल की सुविधा उपलब्ध हो जाएगी । ऐसा नहीं कि बिहार में शिक्षा का केवल सफेद पक्ष ही है, इसके कुछ स्याह पक्ष भी हैं जो हर संवेदनशील नागरिक को सोचने के लिए मजबूर करता है। यह है सरकारी स्कूलों में गुणवत्ता पूर्ण शिक्षा मे निरंतर आ रही गिरावट और निजी विद्यालयों की ओर लोगों का बढता रूझान । चिंताजनक तो यह है कि आज सरकारी स्कूलों में पढाने वाले शिक्षक भी अपने बच्चों को उस स्कूल में पढाना नहीं चाहते । सरकारी स्कूलों में शिक्षा की गुणवत्ता पर अनेक स्वयं सेवी संगठनो ने प्रतिकूल टिप्पणी की है जो सर्व विदित है । यहां ये भी बताना आवश्यक लगता है कि राज्य के 60 हजार स्कूलों मे पूर्णकालिक प्रधानाध्यापक नहीं हैं । देश में शिक्षक-छात्र का अनुपात 1:40 है । मतलब 40 छात्रों पर एक शिक्षक । बिहार में अभी यह अनुपात 1 शिक्षक पर 63 छात्र का है । विभाग के अधिकारी और शिक्षा समितियां भी शिक्षा के गुणवत्ता मे आयी गिरावट के प्रति कम जिम्मेवार नही हैं । फिर भी मौजूदा सरकार के प्रयासों से बच्चों खासकर लडकियों मे स्कूल जाने की प्रवृति बढी है जो सराहनीय है। अब कुछ चर्चा गुजरात मे बालिका शिक्षा की । इस बात का उल्लेख शुरू में ही किया जा चुका है कि गुजरात बालिका शिक्षा के मामले में नीचे से 20वें पायदान पर है । यहां हम सैम्पल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेस लाईन सर्वे 2014 के कुछ बिन्दुओं का उल्लेख करेंगे-

1. गुजरात में 15-17 आयुवर्ग की 26.6 प्रतिशत लडकियां किसी न किसी कारण से स्कूल छोड देती हैं।
2. 10 से 14 साल की लडकियों की शिक्षा के मामले में गुजरात सबसे निचले पांच राज्यों में आता है ।
3. देश में औसत 83 प्रतिशत लडकियां स्कूल जाती हैं, ये आंकडा गुजरात की तुलना मे 10 प्रतिशत ज्यादा है।
4. गुजरात में बालिका शि क्षा को प्रोत्साहित करने के लिए 10 वर्षों से कन्या के लावनी योजना और शाला प्रवेशोत्सव कार्यक्रम लागू है फिर भी अपेक्षित सफलता नही मिल रही है ।

5. शिक्षा पर व्यय के मामले में जहां 2011-12 से लेकर 2014-15 में सभी राज्यों में 48 फीसदी से लेकर 150 फीसदी तक की वृद्धि हुई, वहीं गुजरात में इस मद में 15 फीसदी की कमी हुई ।

गुजरात में सिर्फ 73.5 प्रतिशत लडकियां ही साक्षर हैं । इनमें 59 प्रतिशत लड़कियां 10वीं पास नहीं हैं । केवल 14.8 प्रतिशत लडकियों ने 12वीं की पढाई की हैं । 12वीं पास करने वाली लडकियों में मात्र 7.3 प्रतिशत लडकियों ने स्नातक हैं । कन्या शिक्षा को लेकर गुजरात सरकार योजनाएं चलाने की चाहे जितने दावे करे सच्चाई यही है कि इस मामले मे राजस्थान को छोड़ देश के अन्य राज्यों से वह पीछे है । राज्य के स्कूलों मे लडकियों के नामांकन का आंकडा बढाने के लिए कन्या केलावनी और शाला प्रवेशोत्सव जैसे कार्यक्रम में वर्षों से अधिकारी जुटे हुए हैं फिर भी अपेक्षित सफलता नहीं मिल रही है । जाहिर है देश की आधी आबादी की स्थिति में सुधार के लिए उसे शिक्षित और स्वावलम्बी बनाने के लिए बालिका शिक्षा का बिहार मॉडल ही उपयुक्त है , बाईब्रेन्ट गुजरात मॉडल नहीं।


brahmanandब्रह्मानंद ठाकुर/ बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के रहने वाले । पेशे से शिक्षक फिलहाल मई 2012 में सेवानिवृत्व हो चुके हैं, लेकिन पढ़ने-लिखने की ललक आज भी जागृत है । गांव में बदलाव पर गहरी पैठ रखते हैं और युवा पीढ़ी को गांव की विरासत से अवगत कराते रहते हैं ।