केदार सिरोही आदिकाल से कृषि हमारे देश की अर्थव्यवथा की रीढ़ की हड्डी रही है। आज वही खुद को बचाने
Author: badalav
…तो न समाज बिखरता और न देश रोता !
आशीष सागर के फेसबुक वॉल से आदमी गर बड़ा न होता, हिंसा के मुहल्ले में खड़ा न होता ! माना
2 अक्टूबर से मुजफ्फरपुर में पहली बदलाव पाठशाला
आगामी गांधी जयंती- 2 अक्तूबर- को हम एक नया मिशन शुरू करने जा रहे हैं। समाज के ” उपेक्षित लेकिन
सोपान जोशी की एक दिलचस्प किताब जल-थल-मल
राकेश कायस्थ हिंसा, हाहाकार और बनारस में लड़कियों की पिटाई की ख़बरों से मन बहुत अशांत था। नज़र टेबल पर
विद्रोही कवि रामधारी सिंह दिनकर
ब्रह्मानन्द ठाकुर जी हां , विद्रोही कवि रामधारी सिंह दिनकर। हालांकि मनुष्य द्वारा मनुष्य के शोषण पर टिकी इस व्यवस्था
देनहार कोहू और है …
सच्चिदानंद जोशी नवरात्रि की शुभकामनाओं के बीच एक किस्सा कुछ अलग सा। हम जानते हैं कि नवरात्रि के पहले अमावस्या
धन्यवाद श्रीकांत शर्मा जी ! आपसे शिकायत करना नहीं चाहता था लेकिन…
कोई भी सरकार हो उसकी कोशिश होती है कि जनता के बीच उसके एक्शन का असर दिखे । उसकी योजनाओं
गौपालन का अर्थशास्त्र कुछ तो कहता है!
संतोष कुमार सिंह देश के अलग-अलग हिस्सों में इन दिनों गाय को लेकर खूब चर्चा हो रही है। गाय से
काले लिबास वाला
काले कपड़े पहनने का शौक़ । सादगी पसंद, बेबाक़ी से अपनी राय रखना उनकी आदत । अपनी फ़िल्मों से लेकर
जो गधे पर नहीं बैठा, वह जन्म्या ही नहीं!
वर्षा मिर्जा इन दिनों गधों की हज़ार सालों की सहनशीलता दाव पर है। सब उन्हीं पर जुमले बोल रहे हैं।