कोरोना संकट को भारत में आए करीब 3 महीना बीत चुका है और देश 38 दिन से लॉकडाउन में है । हर कोई अपने-अपने घरों में कैद है । हम पूरी दुनिया में कोरोना से सबसे बेहतर ढंग से लड़ रहे हैं जैसा की सरकारें दावा कर रही हैं और टीवी चैनल पर वही बातें प्रमुखता से दिखाई भी जा रही हैं जो सरकारें बोल रही हैं। कोरोना से सरकार कैसे निपट रही है ये तो आने वाला वक्त बताएगा, लेकिन लॉकडाउन से सरकारें कैसे निपट रही हैं उसका अंदाजा पिछले कुछ दिनों में उन तस्वीरें से लगाया जा सकता है जिसमें किसी एक गाड़ी के रुकते ही बड़ी संख्या में खाना मिलने की उम्मीद में लोग दौड़ पड़ते हैं और खाना नहीं मिलता तो फिर निराश होकर लौट आते हैं इस उम्मीद में कि कोई दूसरी गाड़ी आएगी और ख़ाना मिल जाएगा । ये सिर्फ एक शहर का हाल नहीं है, बल्कि उन तमाम शहरों का हाल है जहां आज भी मजदूर फंसे हुए हैं । मजदूर जब सड़क पर निकलता है तो AC में बैठने वाले हम जैसे लोगों को लगता है कि देखिए ये लोग कितने गैरजिम्मेदार हैं। लॉकडाउन का पालन नहीं कर रहे । हो सकता है कुछ लोग जाहिल भी कहते हों।
जरा सोचिए जिसके घर में खाना बनाने के लिए राशन ना हो, पीने के लिए पानी और दूध ना हो, ऊपर से बच्चा रो रहा हो तो कौन मां-बाप भला लॉक डाउन का पालन करेगा । हालांकि ऐसी तस्वीरें आपको कम दिखाई जाती हैं, क्योंकि कहीं सरकार नाराज ना हो जाएं, क्योंकि हमारी सरकारें ऐसे लोगों को खाना खिलाने में नाकाम नजर आ रही हैं । भला हो उन लोगों और संगठनों का जो दिन रात अपनी जा जोखिम में डालकर गरीबों और मजदूरों का पेट भर रहे हैं । ऐसे ही लोगों में शुमार एक नाम है मुंबई में रहने वाले आरिफ हाशमी और उनके संगठन हम भारतीय का, जो लॉक डाउन के दौरान से आज तक गरीबों और मजूदरों को हर दिन राशन पहुंचाने का काम कर रहे हैं । हम भारतीय संगठन आम लोगों के सहयोग से जुटाई गई राशि की बदौलत मुंबई में करीब 30 किमी के रेंज में ढाई हजार परिवारों को राशन पहुंचा चुका है । आखिर कोरोना से जंग का दाना-पानी बांटने का ख्याल आरिफ और उनके संगठन के मन में कैसे आया और इस दौरान ग्राउंड पर उन्होंने क्या महसूस किया और उसके लिए कैसे तैयारी की, इन तमाम सवालों को लेकर टीम बदलाव के साथी अरुण यादव ने आरिफ से लंबी बातचीत की।
बदलाव- सुना है आपका संगठन हम भारतीय मुंबई में राशन बांट रहा है, अब तक कितने परिवारों को आप लोग राशन बांट चुके हैं ?
आरिफ हाशमी- हम लोग हर दिन करीब 400-500 परिवारों को राशन पहुंचा रहे हैं, कभी ये आंकड़ा बढ़ भी जाता है । अब तक हम लोग करीब 2 हजार 500 के आसपास परिवारों को राशन बांट चुके हैं । जितने परिवारों को राशन दिया गया अब उनको दोबारा राशन पहुंचाने की प्रक्रिया भी शुरू हो चुकी है । क्योंकि हम लोग जितना राशन देते हैं उतना 4-5 लोगों के एक परिवार के लिए 15-20 दिन का काम चल जाता है ।
बदलाव- आप लोग राशन का वितरण कैसे करते हैं और उसके लिए आपके साथ कितने लोग काम कर रहे हैं ?
आरिफ हाशमी- हमारी करीब 40 लोगों की टीम है जो मुंबई में करीब 30 किमी के रेंज तक गरीबों को राशन पहुंचाने का काम कर रही है । लोखंडवाला, अंधेरी, बोरीवली, जोगेश्वरी के अलावा मुंबई के दूर दराज वाले इलाकों तक राशन पहुंचा रहे हैं । हम लोगों ने करीब 14-15 किलो के राशन की एक किट बनाई है, जिसमें खाना बनाने की जरूरत का ज्यादातर सामान मौजूद है, इस किट में 5-5 किलो आटा और चावल, 2 किलो दाल, 1-1 किलो चना और बेसन, एक लीटर तेल, 250 ग्राम चाय पत्ती और आधा किलो खजूर रहता है । संकट की इस घड़ी में एक गरीब परिवार के लिए इतना राशन काफी मददगार है ।
बदलाव- क्या आप लोग सिर्फ राशन बांट रहे हैं या फिर खाने के पैकेट का वितरण भी कर रहे हैं ?
आरिफ हाशमी- शुरुआत तो हम लोगों ने खाने के पैकेट से की थी, लेकिन उसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन कराना बड़ी चुनौती थी, जो खाना लेने और देने वाले दोनों के लिए किसी खतरे से कम नहीं था ऊपर से प्रशासन की डांट अलग से मिलती, लिहाजा हम लोगों ने जरूरतमंद लोगों की पहचान कर राशन उनके घर तक पहुंचाने का फैसला किया ।
बदलाव- जरूरतमंदों की पहचान आप लोग कैसे करते हैं, क्या आपका राशन वाकयी जरूरतमंदों तक पहुंचा रहा है ?
आरिफ हाशमी- हमारी टीम मुंबई में दो अलग-अलग लोकेशन जोगेश्वरी और मिल्लतनगर में तैनात है । टीम के सभी सदस्य अपने-अपने संपर्कों के जरिए ऐसे लोगों का पता लगाते हैं जिनको वाकयी में खाना या फिर राशन नहीं मिल रहा, इसके अलावा हम लोग सोशल मीडिया पर भी लगातार अपील कर रहे हैं कि अगर किसी जरूरतमंद को राशन चाहिए तो उसका पता हम तक पहुंचाएं, जिससे हमें काफी मदद मिल रही है । रही बात इस बात का सटीक पता लगाने की कि क्या सही हाथों में राशन मिल रहा है कि नहीं तो यकीन मानिये संकट की इस घड़ी में मुझे नहीं लगता जिसको जरूरत नहीं होगी वो हम लोगों से राशन मांगेंगा । अगर कोई जरूरतमंद नहीं है फिर भी ले रहा होगा तो हम मान लेते हैं कि चलो एक दो फीसदी गलत हाथों में जा भी रहा होगा तो क्या हुआ बाकी तो जरूरतमंदों को मिल रहा है ।
बदलाव- खाने के पैकेट या फिर राशन बांटने का ख्याल कैसे आया ?
आरिफ हाशमी- लॉक डाउन से पहले हमारे कुछ मित्रों ने मिलकर शिक्षा पर काम करने का फैसला किया और हम भारतीय नाम से एक संगठन बनाने का फैसला किया तभी अचानक कोरोना का संकट आया और लॉकडाउन हो गया । लॉक डाउन का दूसरा दिन रहा होगा तभी एक शख्स सड़क पर नजर आया जब उससे पूछा कि आखिर लॉकडाउन में बाहर क्यों निकले हैं तो उसने जो जवाब दिया उसे सुनकर मेरा कलेजा बैठ गया । वो एक निरीह पिता बोल रहा था, उसकी आंखों में आंसू थे बोला सर घर में खाने को नहीं है, बच्चा रो रहा है बाहर ना निकलें तो क्या करें। तभी मुझे लगा कि हम ऐसे लोगों को शिक्षा तभी दिला पाएंगे जब पहले इनका पेट भरेगा, लिहाजा हम लोगों ने ऐसे लोगों को खाना खिलाने का फैसला किया और आज 2 हजार से ज्यादा परिवारों की मदद कर चुके हैं ।
बदलाव- आप लोग ग्राउंड पर हैं, कोई ऐसी बात देखी हो जो कोरोना से लड़ाई में मुश्किल खड़ी कर रही हो ?
आरिफ हाशमी- देखिए मुझे बाकी शहरों का पता नहीं, लेकिन मुंबई में एक बड़ी आबादी रोज कमाने-खाने वाली है, लॉकडाउन के बाद से उनकी आजीविका के सारे संसाधन छिन गए हैं, ऐसे में उनके सामने खाने-पीने का संकट खड़ा हो गया है । ऊपर से एक छोटे से कमरे में 8-10 लोग गुजर बसर कर रहे हैं । जिस कम्यूनिटी टॉयलेट का इस्तेमाल करते हैं उसमें करीब 700-800 लोग हर दिन जाते हैं ऐसे में अगर हम उम्मीद कर रहे हैं कि कोरोना नहीं फैलेगा तो माफ कीजिए, हम लोग गलत सोच रहे हैं ।
बदलाव- राशन के लिए पैसा कहां से आ रहा है और उसका हिसाब किताब कैसे रखते हैं ?
आरिफ हाशमी- फंड का क्या है, हम करीब 15 लोग हैं, जिसमें RBI के एक रिटायर्ड जीएम हैं बाकी कोई आर्किटेक्ट हैं कोई बिजनेसमैन हैं तो कोई पत्रकार । वैसे तो सबसे पहले हम लोगों ने मिल्लत नगर में अपनी कॉलोनी के लोगों से एक अपील की। हमारी सोसायटी में 30 बिल्डिंग हैं और 1500 फ्लैट हैं, सभी लोगों ने कुछ ना कुछ डोनेट किया है । बाकी जो कमी पड़ती है हम मित्र मिलकर पूरा करते हैं या फिर कुछ और मित्र सहयोग करते हैं । वैसे हर बार हम लोग 300 किट मंगाते हैं, एक किट की कीमत औसतन 800 रुपये पड़ती है यानी हर कंसाइनमेंट करीब 2 लाख 50 हजार के आस-पास का आता है ।जब वो खत्म होता है तो दूसरा आता है । हमें जितना फंड रोजाना मिलता है और जितना खर्च होता है उसका हर दिन हिसाब-किताब जारी किया जाता है । ताकि फंड देने वालों को पता चलता रहे कि उनके पैसे का सही इस्तेमाल हो रहा है । वैसे जिससे जो बन पड़ रहा है मदद कर रहा है कोई पैसे दे रहा है तो कोई श्रमदान कर रहा । इतने बड़े काम का मैनेजमेंट भी बड़ा होता है, लिहाजा करीब 40 लोग इस काम में हमारी मदद कर रहे हैं । पैकेजिंग से लेकर लोडिंग और डिस्टिब्यूशन तक हर काम में कोई ना कोई लगा है । ऐसे में हर कोई एक दूसरे से जुड़ कर ये नेक काम कर रहा है ।
बदलाव- आप मीडिया में जुड़े रहे हैं, ऐसे में मौजूदा वक्त में मीडिया की भूमिका पर कुछ कहना चाहेंगे ?
आरिफ हाशमी- मीडिया…(थोड़ा हंसने के बाद अचानक गंभीर स्वर में) सच कहूं तो मीडिया संस्थान और मीडियाकर्मी सब इस दौर में एक्सपोज हो जाएंगे ।क्योंकि मीडिया संस्थान के मालिकों को फर्क पड़े ना पड़े मीडियाकर्मियों को फर्क पड़ने लगा है, यकीन मानिये । मुंबई में रहने वाले कम से कम 20-25 मीडिया कर्मियों के घर में राशन नहीं था जिनको हम लोगों ने राशन पहुंचाया । रही बात एजेंडा चलाने वाले महारथियों की तो वो आज कहां हैं…क्यों नहीं मैदान में हैं…जरा सोचिए आज मैदान में कौन है, रिपोर्टर ग्राउंड पर जान जोखिम में डालकर काम कर रहा है…प्रोड्यूसर हर दिन संक्रमण की परवाह किए बिना ऑफिस जा रहा है । लेकिन बड़े-बड़े दिग्गज मैदान से गायब हैं । हां कुछ महिला एंकर जरूर ग्राउंड पर नजर आ रही हैं मैं उनको सलाम भी करता हूं, लेकिन जो सरकारी एजेंडा चलाने वाले हैं आज वो या तो घर से बुलेटिन पढ़ रहे हैं या फिर एक घंटे के लिए ऑफिस जाकर बुलेटिन पढ़कर भाग खड़े हो रहे हैं । इसलिए मीडिया कर्मियों की परीक्षा की घड़ी है, आप लोग जनता की आवाज बनिए, तभी अपनी आवाज भी उठा पाएंगे, वर्ना एक-एक कर नौकरी जाएगी और आपके हाथ कोरोना को छोड़ कुछ नहीं लगेगा ।
बदलाव- संकट की इस घड़ी में देश की जनता से कुछ अपील करना चाहेंगे?
आरिफ हाशमी- देखिए मैं और मेरी कोर टीम जिसमें RBI में मैनेजर रहे मेरे मित्र रियाज शेख, मुजीब, शम्स रिजवी, आफाक साहब, जुबैर ख़ान, हाफिज, सलाउद्दीन, रेहान, उसैद और अली भाई जैसे लोगों ने हाथ बढ़ाया तो हजारों लोग इस नेक काम में जुड़ते चले गए। इसलिए मेरी आप सबसे अपील है कि संवेदनशील बनिए और अपने आसपास के लोगों का ख्याल रखिए । यकीन मानिये दूसरों की भलाई करने से ज्यादा सुकून इस वक्त किसी काम में नहीं है, क्योंकि हमें नहीं पता कल हममें से कौन रहेगा कौन नहीं । अगर मदद नहीं कर सकते हैं तो कम से कम नफरत तो बिल्कुल मत फैलाइए ।
बदलाव से बात करने के लिए धन्यवाद ।
Beautiful article…
This is an example to every Indian.
We must do something to serve humanity.
Simple smile and help is better than tones of hatreted speeches…
I appritiate and thank Hum Bhartiya group for big achievement..