जब गौरक्षकों को विवेकानंद ने पढ़ाया था इंसानियत का पाठ

जब गौरक्षकों को विवेकानंद ने पढ़ाया था इंसानियत का पाठ

ब्रह्मानंद ठाकुर

स्वामी विवेकानन्द की 156वीं जयंती तो जाहिर है इस अवसर पर   राष्ट्र के पुनर्निरमाण में विवेकानन्द के अनंत योगदान पर खूब चर्चा भी हुई होगी और उनकी तस्वीरों पर माल्यार्पण और पुष्पांजलि अर्पित कर उनके आदर्शों के अनुकरण की भी बातें हुईं होंगी, लेकिन यह बात दीगर है कि बीते दिनों का उन्नत से उन्नत आदर्श, विचारधारा, निति-नैतिकता और मूल्यबोध समय बीतने के साथ अपनी प्रासंगिकता खो देते हैं, लेकिन उसी आधार पर नूतन आदर्शों, मूल्यबोध, संस्कृति और नीति -नैतिकता की जमीन तैयार होती है। इस प्रकार आधार को कभी भी नकारा नहीं जा सकता । आज हमारे देश में हिन्दू राष्ट्र निर्माण और गो रक्षा के मामले में जिस तरह की बातें हो रही हैं, इसकी वास्तविकता को समझने के लिए हमें इससे सम्बंधित स्वामी जी के विचारों को समझना होगा।

विवेकानन्द जी ने स्वयं भी कहा था कि वे एक हिन्दू हैं, लेकिन किसी अन्य पर हिन्दुत्व थोपने के खिलाफ हैं। विवेकानंद कहते थे- ईसाई को हिन्दू या बौद्ध नहीं बनना पड़ेगा। मुसलमान को हिन्दू या ईसाई को बौद्ध नहीं बनना पडेगा। उन्होंने कहा था- ‘मैं मानव जाति को उस मुकाम पर ले जाना चाहता हूं जहां वेद नहीं होगा, बाइबिल नहीं होगी  और न ही कुरान होगा बल्कि सभी काम वेद, कुरान और बाइबिल के समन्वय से पूरे होंगे। हम सिर्फ सभी धर्मों के प्रति असहिष्णुता नहीं रखते बल्कि सभी धर्मों को सत्य भी मानते हैं। सभी को यह अधिकार है कि वह चाहे जिस पंथ को चुन ले ( स्वामी विवेकानन्द की वाणी और रचना )। उन्होंने तो यहां तक कहा कि यदि मेरा कोइ बेटा होता तो ध्यान लगाने और साथ में एक पंक्ति की प्रार्थना और मंत्र जाप के अलावा मैं उसे किसी तरह की धर्म की बात सीखने नहीं देता। वे ऐसे भारत निर्माण के पक्षधर थे जिसका मस्तिष्क वेदांती और शरीर इस्लाम का हो। गो रक्षा के बारे में विवेकानन्द के विचार क्या थे, इसका पता उस समय की एक घटना से चलता है।

स्वामी जी शिकागो से लौट आए थे और 1897  में एक दिन वे कोलकाता में प्रियनाथ मुखर्जी के आवास पर बैठे हुए थे। इसी समय  कुछ गौरक्षक स्वामी जी से मिलने आए और उनका चरणस्पर्श करते हुए उनसे कहा कि वे गोरक्षा सेवासमिति की ओर से आए हैं। यह समिति पूरे देश मे गोरक्षा अभियान चला रही है। वे चाहते हैं कि वे (स्वामी जी ) भी उनके इस अभियान में सहयोग करें। स्वामी जी के यह पूछने पर कि उनका उद्देश्य क्या है, उनमें से एक ने कहा कि उनका उद्देश्य कसाइयों से गाय की रक्षा करना है। तब स्वामी जी ने उनसे आय का स्रोत और अब तक उस मद में जमा धन के बारे में अपनी जिज्ञासा व्यक्त की।

गौरक्षा दल के एक सदस्य ने उन्हें बताया कि इस मद में दान देने वालों की कमी नहीं है। मारवाड़ी व्यापारी लोग उन्हें काफी मदद कर रहे हैं। इस पर स्वामी जी ने उनसे पूछा कि पूरे मध्य भारत में भयानक अकाल पड़ा है। भारत सरकार इस अकाल में अब तक 9 लाख लोगों के मरने की  पुष्टि कर चुकी है। आपलोग भयानक अकाल पीड़ितों के लिए क्या कर रहे हैं ? उनके इस सवाल पर उन गौरक्षकों ने कहा कि वे लोग यह सब काम नहीं करते। उनका संगठन ही बना है गोरक्षा के लिए। तब विवेकानन्द ने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा कि इस भयानक अकाल में जब आपके ही भाई-बहन लाखों की संख्या में भूख से मर रहे हैं, आपके पास अच्छी– खासी धनराशि होने के बावजूद आपलोग नहीं समझते कि पीड़ित लोगों की कुछ सहायता की जाए, उन्हें दो मुठ्ठी अन्न दिया जाए ?

इस पर उन  गौसेवकों में से एक ने कहा कि इस अकाल में जो लोग मर रहे हैं, वह तो उनके पूर्वजन्म के पापों की सजा है। इसपर विवेकानन्द ने उनसे तब जो कुछ भी कहा था वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने उनसे कहा, जो लोग अपने भाई-बहनों को भूख से तड़प-तड़प कर मरते देख कर उन्हें एक वक्त का भोजन दे कर सहायता नहीं कर सकते, पर गायों, चिड़ियों और जानवरों को दोनों वक्त भोजन कराते हों, उनके प्रति मेरी कोई सहानुभूति नहीं है और यदि ऐसा है कि अकाल पीड़ितों की मौत का कारण उनके पूर्व जन्म में किए गये बुरे कर्म हैं तो गौ माता ने भी तो कभी जरूर कोई पाप किए होंगे, तभी तो आज कसाइयों के हाथ मर रही हैं? उनके ऐसा कहने पर एक गौभक्त ने अपना सिर खुजलाते हुए कहा था- स्वामी जी, गाय तो हमारी माता है। उनकी रक्षा तो सबसे पहले होनी चाहिए। तब स्वामी जी ने उनपर व्यंग्य करते हुए कहा था, आप सही कह रहे हैं। सचमुच गौ ही आपकी माता है। गाय को छोड़ और कौन ऐसी काबिल संतान को जन्म दे पाती ?

आज जब पूरे देश में गो रक्षा के नाम पर एक खास समुदाय को निशाना  बनाये जाने की घटनाएं लगातार सूर्खियों मे हों तब स्वामी विवेकानन्द के  इससे सम्बंधित विचारों को जन-जन तक पहुंचाना वक्त की मांग  कही जा सकती है।


ब्रह्मानंद ठाकुर। बिहार के मुज़फ़्फ़रपुर के निवासी। पेशे से शिक्षक। मई 2012 के बाद से नौकरी की बंदिशें खत्म। फिलहाल समाज, संस्कृति और साहित्य की सेवा में जुटे हैं। मुजफ्फरपुर के पियर गांव में बदलाव पाठशाला का संचालन कर रहे हैं।