सोशल मीडिया के ‘ब्लैकहोल’ में गुम होता युवावर्ग

सोशल मीडिया के ‘ब्लैकहोल’ में गुम होता युवावर्ग

डा. सुधांशु कुमार

आज जिस प्रकार सोशल मीडिया पर खासकर किशोर और युवावर्ग अपनी आंखें गड़ाए रहते हैं , यह उनके कैरियर के लिए किसी चुनौती से कम नहीं । इसका असंतुलित प्रयोग किसी नशीले पदार्थ की लत की तरह उनका कैरियर निगलता जा रहा है । यह मानो ‘ब्लैकहोल’ के रूप में हमारे सामने उपस्थित है, जिसमें युवावर्ग का भविष्य, उनकी चिंतन क्षमता, तर्क शक्ति, स्मरण शक्ति, सामाजिक समस्याओं के प्रति उनमें संवेदना समाप्त होती जा रही है । इसका अर्थ यह बिल्कुल नहीं, कि सोशल मीडिया के महत्व और प्रभाव को हम सिरे से खारिज कर दें । इसके कई सकारात्मक पक्ष भी हैं जिसमें सबसे महत्वपूर्ण है कि इसने इलेक्ट्रॉनिक मीडिया और प्रिंट मीडिया के एकाधिकार के तिलस्म को तोड़ने का बड़ा कार्य किया है और उक्त दोनों प्रकार के मीडिया के ऊपर काबिज पूंजीपति घरानों के वर्चस्व को कड़ी टक्कर दी है । अब सत्ता पक्ष , पूंजीपति वर्ग और नौकरशाहों के गठजोड़ से उत्पन्न तीसरी तरह की गुलामी और शोषण की गिरह को खोलकर आम जनता के समक्ष प्रस्तुत करने में यह समर्थ है , जिसके कारण इसे नजरअंदाज नहीं किया जा सकता । इसमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका ट्विटर , फेसबुक और व्हाट्सएप जैसे सोशल साइट्स निभा रहे हैं । लेकिन अंतिम कुछ वर्षों में जिस प्रकार राजनीतिक दलों की गिद्ध दृष्टि व कंपनियों के साथ उनके गठजोड़ से इसका जो दुरुपयोग बढ़ा है उसने चिंता की लंबी लकीरें खींच दी है ।

आज जिस रफ्तार से कंपनियां सस्ते-सस्ते स्मार्टफोन लांच कर रही हैं और ‘जियो’ जैसी नेटवर्किंग कंपनियों के बीच स्पर्धा बढ़ी है उसने समाज के अधिसंख्य लोगों तक , खासकर किशोर और युवाओं तक तेजी से अपनी पहुंच बनाई है । निम्न वित्त वर्ग के अभिभावक भी बिना किसी सोच-विचार के अपने बच्चों को स्मार्ट फोन थमा रहे हैं । निःसंदेह यह उनके कैरियर में बट्टा लगाने जैसा है । क्योंकि इसका दूरगामी दुष्प्रभाव उनकी अध्ययन-प्रक्रिया की निरंतरता पर पड़ता है । इस वर्ष ‘नीट’ जैसी अतिमहत्वपूर्ण परीक्षा में उत्तीर्ण होने वाले कई छात्रों ने अपने साक्षात्कार में अपनी सफलता का मूल मंत्र सोशल मीडिया से दूरी व लगातार कड़ी मेहनत को बताया जिससे शतप्रतिशत सहमत हुआ जा सकता है क्योंकि उनके अध्ययन-क्रम को यह बुरी तरह छिन्न-भिन्न कर देता है । इस साइट्स पर उपलब्ध ‘पार्न’ सामग्रियां उनकी धमनियों में सहज ही उत्तेजना पैदा करती हैं और वे किसी स्वप्नलोक के प्राणी बन जाते हैं । इस स्वप्नलोक में विचरते हुए जब असफलता उन्हें यथार्थ के वज्र शिलाखंड पर पटकती है , अधिकांश अभिभावकों को तब पता चलता है ! तब तक बहुत देर हो चुकी होती है ! उनका उज्ज्वल भविष्य सोशल साइट्स के ब्लैकहोल में गुम हो चुका होता है ।

‘कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय’ में इस समस्या पर हुए शोध में जो तथ्य उभरकर सामने आए , वह चौंकाने वाले हैं । इस शोध में सोशल साइट्स का उपयोग करने वाले कई युवाओं को स्क्रीन पर मनोरंजक वीडियो देखने के लिए दिया गया । वे जब उनमें मशगूल हो गए , तब चुपके से उनके मोबाइल पर एक अंतराल के बाद एक के बाद दूसरा मैसेज भेजा जाने लगा । यह गौर किया गया कि जैसे ही मैसेज आता, उनका ‘स्ट्रेस लेवल ‘ बढ़ जाता । अध्ययन से पता चला कि इसकी वजह से नींद में दिक्कतें और अवसाद के मामले बढ़ गए । सोशल मीडिया पर लगातार आंखें गड़ाए रखना विस्मरण , दृष्टिदोष , अनिद्रा एवं चिड़चिड़ापन जैसी गंभीर समस्याओं का कारण बन रहा है । इसके अत्यधिक प्रयोग से समयपूर्व ही किशोर किशोरियों की आंखों पर पावरफूल चश्मे चढ़ रहे हैं ।

आज दुनिया की एक तिहाई आबादी सोशल मीडिया पर है और इसके गुलाम बनते जा रहे हैं । इस व्यवसाय से जुड़े लोगों का कहना है कि सोशल मीडिया कंपनियां जानबूझकर लोगों को इसकी लत लगाने के लिए टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल कर रही हैं । इससे उन्हें मोटी कमाई होती है । यह ऐसा है , जैसे कोई ‘कोकीन’ जैसा पदार्थ आपके प्रोफाइल पर छिड़क दे और आप उसके आदी हो जाएं । सोशल मीडिया पर लत की सबसे बड़ी वजह लाइक्स और कामेंट्स हैं । ऐसा लगता है कि हम हर वक्त लाइक्स और कामेंट्स चेक करने में लगे रहते हैं और पोस्ट की प्रकृति को बिना समझे लाइक्स ठोकते रहते हैं । कई बार तो मृत्यु या गंभीर त्रासदी से संबंधित पोस्ट पर भी लोग लाईक्स करते , बधाई और शुभकामनाएं देते हुए पाए जाते हैं । यह किसी विडंबना से कम नहीं । फेसबुक कंपनी में कार्य करनेवाले ‘सेंडी पराकिलस’ के अनुसार ‘कंपनी जानबूझकर लोगों को इसकी लत लगा रही है । उनका बिजनेस माडल अधिक से अधिक लोगों को यहाँ इंगेज करना है , जिसका सौदा वो एडवरटाइजर से करते हैं ।

आज जरूरत है खासकर अध्ययनरत किशोर और युवावर्ग इसके अतिशय प्रयोग से बचें, क्योंकि इसका अत्यधिक प्रयोग उनकी स्मरणशक्ति , एकाग्रता और चिंतन क्षमता को सीधा प्रभावित करता है । साथ ही दस वर्ष से कम के बच्चों को स्मार्ट फोन से दूर ही रखें क्योंकि कई शोधों से यह साबित हो चुका है कि इसका कुप्रभाव उनके मस्तिष्क पर पड़ता है ।


डॉ सुधांशु कुमार- लेखक सिमुलतला आवासीय विद्यालय में अध्यापक हैं। भदई, मुजफ्फरपुर, बिहार के निवासी। मोबाइल नंबर- 7979862250 पर आप इनसे संपर्क कर सकते हैं। आपका व्यंग्यात्मक उपन्यास ‘नारद कमीशन’ प्रकाशन की अंतिम प्रक्रिया में है।