खर्राटामय ‘संगीत’ और प्रयागराज का यादगार सफर

खर्राटामय ‘संगीत’ और प्रयागराज का यादगार सफर

सांकेतिक तस्वीर

शरद अवस्थी के फेसबुक वॉल से साभार   रातके लगभग 12 बजने को आए, प्रयागराज एक्सप्रेस केबी1 कोचकी मिडिल बर्थ पर लेटा मैं बेचैनी से करवटें बदल रहा था, ऐसा नहीं की शरीर थकानहीं या आंखों में नींद नहीं, लेकिन कमबख्त येखर्राटों की जुगलबंदियाँ नींद को कोसों दूर भगा रहीं थी, रह रह कर तेज़ और धीमी होतीं,चारों तरफ से आ रही भीषण खर्राटों की आवाज़ें एक लयबद्ध संगीत को भी जन्म दे रही थीं, लेकिनपहली बार कोई संगीत सुकून नहीं देता दिखा। प्रयोगधर्मी संगीतकार “आर डी बर्मनसाहब” अगर ये यात्रा कर रहे होते तो शायद इन खर्राटों को रिकॉर्ड करते ओर कुछवेस्टर्न और देसी साजों का प्रयोग करके इसे किसी सिचुएशनल सांग में तब्दील कर देते, लेकिन वो नहीं, यात्रातो मैं कर रहा हूं, खर्राटोंको सुनना मजबूरी है, ऐसेमें ध्यान देने पर समझ आया कि खर्राटे भी अलग अलग प्रकृति के होते हैं, नीचे जो अंकल जी हैं वोनाक से खर्राटे को अंदर खींचते वक्त एक भीषण तेज़ आवाज़ कर रहे हैं और मुँह से छोड़तेवक्त हल्की सीटी के साथ तेज़ हवा सी छोड़ रहे हैं, इनके खर्राटे नॉन स्टॉपचल रहे हैं। बगल के भाई साहब बहुत लयबद्ध तरीके से खर्राटे लेते रहे, बड़े अदब के साथ जैसीआवाज़ खर्राटे अंदर जाते वक्त हो रही है वैसी ही बाहर निकलते वक्त भी…सामने बैठाएक युवक भी इन खर्राटों से पीड़ित लग रहा था, उसने तरकीब निकाली अपनेफ़ोन की ईपी निकालकर कानों में लगा ली और शायद कुछ कॉमेडीप्रोग्राम देखने लगा, लेकिनमैं तो अपने मोबाइल का ईपी भी साथ नहीं लाया था, मैं मजबूर था।

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महिलाएंआज के दौर में पुरुषों से किसी मामले में कम नहीं, आज मालूम चल ही गया। ये बातखर्राटे लेने की मामले में भी लागू होती है, ऊपर की सीट पर लेटीभाभी जी जब ट्रेन के अंदर दाखिल हुईं तभी बेहद चपल लगीं, लोअर बर्थ न मिलने कीभड़ास निकालते हुए रेलवे के लिए जिस तरह के उद्गार किये, उसे संसदीय भाषा नहींकहा जा सकता, साथमें मौजूद भाई साहब ने भी रेलवे को पर्याप्त खरी खोटी सुनाई, लेकिन किसी भी सहयात्रीने जब उनकी बातों में कोई खास रुचि नही ली तो भुनभुनाते हुए दोनों अपने बिस्तर कोबिछाने में लग गए, बच्चेसाथ थे तो भाई साहब ने भाभीजी से बच्चे को साथ सुलाने की गुजारिश की, लेकिन वो तैयार न थी,”अबआपसे इसको सुलाया भी नहीं जा सकता” भाभीजी जी के नाराज़गी भरे इस जवाब कोसुनने के बाद शायद भाई साहब की दोबारा पूछने की हिम्मत भी नहीं हुई और वो बच्चे कोडांटते हुए सोने का आदेश देने लगे, बच्चे के साथ वालाएपिसोड फिर कभी।

फिलहाल मैं फिर से पुरुषों को मात देने वाले महिलाओं केखर्राटों पर लौटता हूं, भाभीजी शायद ज्यादा थकी हुई थी, ऊपरलेटते ही उन्होंने लाइट बंद करने की जल्दबाज़ी दिखाई और स्विच दबाने के दौरान मेरामोबाइल चार्जर भी गिरा दिया, चार्जर ट्रेन की फर्शपर गिरा, लेकिनबिना कोई अफसोस ज़ाहिर किये उन्होंने सोना शुरू कर दिया, मैंने फ़ोन की तरफ लगेसिरे से चार्जर को ऊपर खींचा, वो सुरक्षित था, मैंने भी मानवीय भूलसमझकर बात आगे नही बढ़ाई, लेकिनमहज पांच मिनट बाद सन्नाटे को चीरती एक आवाज़ कानों से टकराई, यकीन मानिए ये किसीसनसनी से कम नहीं थी, खर्राटेकी ऐसी आवाज़ें भाभीजी जी निकाल सकती हैं, सहसा यकीन नहीं हुआ, कोई और बोलता तो भीयकीन नही करता, लेकिनजो आँखों के सामने है और जो कानों पर बीत रहा है उस पर कैसे यकीन ना करें । ऊपरवाली भाभी जी और नीचे वाले अंकल जी में एक स्पर्धा शुरू हो चुकी थी, किसके खर्राटे कितनेदमदार औरइनके बीच भाई साहब के खर्राटे दोनों का जोश बढ़ाने वाले प्रतीत हो रहे थे, लेकिन मैं क्यों औरकैसे इस प्रतिस्पर्धा का अंपायर बन गया, पता नहीं चल रहा था, बस रामलीला में जोरदारअट्टहास करते रावण, कुंभकरणऔर ताड़का जैसे किरदार याद आ रहे थे।

शरद अवस्थी

हालांकिथोड़ी देर बाद इसे ही नियति मानकर मैं रेलवे से मिले तकिए के ज़रिए कानों को ढक करसोने की कोशिश कर ही रहा था की अचानक ज़ोर ज़ोर से हंसने की आवाज़ आने लगी, किसी अनहोनी आशंका केडर से घबराकर उठा तो देखा साइड लोअर बर्थ में बैठे जिस युवक ने अपने कान में ईपीलगाई थी, वोज़ोर ज़ोर से हंस रहा था, मोबाइलमें कोई शो देखने के दौरान वो भूल चुका था वो कहाँ पर है, भगवान भक्तों कीपरीक्षा लेता है लेकिन मध्य रात्रि में ऐसी परीक्षा की उम्मीद मुझे नहीं थी। अजीब-अजीबसे ख़्याल आ रहे हैं दिमाग में, जैसे इनकी नाक बंद करदी जाय या ट्रेन में रात को पटाखा फोड़ दें वगैरह वगैरह, गूगल में भी सर्च कियाखर्राटे कब बंद होते हैं सोने के बाद, लेकिन कोई उम्मीद जगानेवाला जवाब नहीं मिला, चारोंतरफ से आ रहे डॉल्बी डिजिटल खर्राटों के साउंड और बीच बीच में अजीब सी हंसने कीआवाज़ के बीच एक बार फिर से रेल मंत्री जी से अपील करता हूं *ट्रेन में खर्राटों परबैन लगना चाहिए* या हम जैसे यात्रियों के कानों को इन आवाज़ों से बचाने का कुछप्रबंध होना चाहिए ।

शरद अवस्थी/इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र, प्रकृति और संगीत से गहरा लगाव रखते हैं । पिछले करीब डेढ़ दशक से मीडिया में सक्रिय । टीवी9 समेत कई चैनलों से जुड़े रहे । संप्रति एमएच वन चैनल में सीनियर एंकर की भूमिका निभा रहे हैं ।