अंधेरे बंद कमरे में रौशनदान की तरह थे कमल दीक्षित

अंधेरे बंद कमरे में रौशनदान की तरह थे कमल दीक्षित

कमल दीक्षित अजात शत्रु थे, वो किसी पर अविश्वास नहीं करते थे, सभी का आत्मीय भाव से स्वागत करते थे। ये बात वरिष्ठ कवि और आलोचक विजय बहादुर सिंह ने दस्तक की ओर से आयोजित गुरु-स्मरण संवाद में कही। विजय बहादुर सिंह ने कहा- कमल दीक्षित, वो कमल रहे, जो घिनौनेपन से ऊपर उठकर अपनी मौजूदगी दर्ज कराता है। उन्होंने कमल दीक्षित को याद करने का मंत्र दिया- कमल दीक्षित को आदर्श की तरह याद कीजिए। संघर्ष की तरह याद कीजिए। उम्मीद की तरह याद कीजिए। मूल्य की तरह याद कीजिए। कमल दीक्षित को किसी कर्मकांड की तरह याद मत कीजिए। अगर कमल दीक्षित के शिष्य ऐसा कर पाएंगे तो ये स्मृतियां पाखंड नहीं रह जाएंगी, सार्थकता हासिल करेंगी।

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व अध्यापक पुष्पेंद्र पाल सिंह ने कमल दीक्षित जी के साथ के निजी, अध्ययन-अध्यापन वाले रिश्तों को बयां किया। उन्होंने कहा, कमल दीक्षित जी से मिलना हमेशा एक सकारात्मक ऊर्जा का साक्षात्कार करना रहा। कमल दीक्षित के अलग-अलग व्यक्तित्वों- पत्रकार, शिक्षक, आध्यात्मिक शख्सियत- पर पुष्पेंद्र पाल सिंह ने प्रकाश डाला। विजय दत्त श्रीधर के शब्दों का जिक्र कर उन्होंने कहा- कमल दीक्षित एक भले व्यक्ति थे। कमलजी की नाराजगी तात्कालिक हुआ करती थी। मुस्कुराहट के साथ गुस्सा गायब हो जाता था। उन्होंने हमेशा युवा पीढ़ी को प्रोत्साहित किया। कमल दीक्षित जी के लिए पत्रकारिता अपने समाज को समझने की योग्यता हासिल करना और समय के अनुरुप हस्तक्षेप की क्षमता को विकसित करना रहा। ता-उम्र आप ने मूल्यनिष्ठ और सामाजिक बदलाव की पत्रकारिता की और यही संदेश भी दिया।

अंधेरे बंद कमरे में रौशन दान की तरह थे कमल दीक्षित। ये बात वरिष्ठ पत्रकार और कमल दीक्षित के करीबी रहे राजेश बादल ने कही। उन्होंने कहा कि कमल दीक्षित का जाना राजेंद्र माथुर वाली परंपरा के आखिरी संपादक का जाना है। कमल दीक्षित ऐसे संपादक रहे, जिन्होंने कभी अपने जूनियर साथियों की नौकरी दांव पर नहीं लगाई, बल्कि जूनियर साथियों के लिए अपनी नौकरी छोड़ने में जरा भी देर नहीं की। कमल दीक्षित का मानना था कि संस्थानों की नौकरी छोड़ना पलायनवाद नहीं बल्कि पहाड़ से सिर टकराने के बरक्स अपने अधिकारों की आजादी है। राजेश बादल कहते हैं- कमल दीक्षित का मोम सा दिल था। अच्छा संगीत, अच्छी चर्चा और अच्छी संगोष्ठी उन्हें प्रिय थी। कमल दीक्षित स्वभाव से, मिजाज से आध्यात्मिक थे और उनकी आध्यात्मिकता धर्मांधता नहीं थी, बल्कि रूहानी थी।

माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्रों की संस्था दस्तक की ओर से राकेश मालवीय के संयोजन में ये चर्चा मुमकिन हो पाई। दस्तक की ओर से जयंत सिन्हा ने बातचीत शुरू की। उन्होंने कहा- उस गुरु का स्मरण हमारा कर्तव्य है, जिसने हमारी जिंदगी को सजाया संवारा। दस्तक के साथी प्रवीण कुमार कमल दीक्षित के कुछ चुनिंदा प्रिय शिष्यों में रहे हैं। उन्होंने कहा- गुरु कमल दीक्षित हमेशा कहते थे खालीपन से बचो, जिंदगी में रमो। प्रवीण ने आंचलिक पत्रकारिता की चिंताओं को साझा किया।

फेसबुक पर हुए इस संवाद में माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व प्राध्यापक रामशरण जोशी, देवेंद्र कौर उप्पल ने भी अपनी हाजिरी लगाई। अलग-अलग सत्रों में करीब 100 से ज्यादा लोगों ने इस कार्यक्रम में शिरकत की और कमल दीक्षित को श्रद्धांजलि दी। इन सत्रों को सुनते हुए कमल दीक्षित के पुत्र गीत दीक्षित बेहद भावुक हो गए और छोटे से संवाद में इस आत्मीयता के लिए दस्तक परिवार के सभी साथियों को साधुवाद दिया।