भूषण
चौंकिए मत। यह जो चित्र आपके सामने है यह एक नाव का है। एक बड़ी नाव जितना काम कर सकती है उतनी ऊर्जा और उतने समय में उस से 10 गुना ज्यादा काम ये टीन वाली नौका कर लेती है। छोटी से छोटी नाव बनाने में कम से कम ₹15000 खर्च होते हैं। लेकिन इस नाव में मात्र ₹1500 का खर्च आता है। यह नाव एक साथ कई लोगों को बड़ी तेजी से नदी के इस पार से उस पार तक पहुंचाने में मददगार होती है।
कटिहार जिले के प्राणपुर प्रखंड अंतर्गत महानंदा के किनारे बसे देशिया एवं पोलिया जैसे अनुसूचित जाति जनजाति समाज के लोगों ने अपनी जरूरत के मुताबिक नाव का ये डिजाइन तैयार किया है। इनके बनाने का उद्देश्य मात्र यह है कि नदी के उस पार अपने खेतों पर जा सकें। वहां से घास ला सकें और अपने मवेशियों को खिला सकें। महज दो चदरा से बनी यह नाव बड़ी मिसाल बन गई है। यह अलग बात है कि नदी की तेज धारा में इसके उलटने की भी आशंका रहती है लेकिन अगर चालक तेज तर्रार होगा तो उन्हें कभी परेशानी नहीं होगी।
इस छोटी सी नाव पर बाइक सवार भी अपनी बाइक नदी के इस पार से उस पार कर लेते हैं। सबसे बड़ी बात यह है कि इस नाव का काम समाप्त हो जाने के बाद नाविक अपने माथे पर इसे उठा लेते हैं और घर ले आकर चले आते हैं।
भूषण। कोसी क्षेत्र में लंबे वक्त से पत्रकारिता कर रहे हैं। प्रभात खबर और दैनिक हिंदुस्तान जैसे बड़े बैनरों के साथ पत्रकारिता का अनुभव बटोरा और आज भी अपनी सक्रियता से सबको चौंकाते हैं।