आज गांधी जयंती है और लोग गांधी को याद कर रहे हैं। मैं इस मौके पर एक ऐसी शख्सियत की चर्चा करना चाहता हूं, जो गांधी के हमारे करीब होने के एहसास को मजबूत करते हैं। जो गांधी को लेकर हमारी समझ को पुख्ता करने में मददगार बन रहे हैं। मैं बात कर रहा हूं साथी सोपान जोशी की।
सोपान जोशी से हाल के दिनों में दो मुलाकातें हुईं और दोनों ही गांधी के 150 साल के कार्यक्रमों की शृंखला में हुईं। 23 जून 2019 को पटना में विनय तरुण स्मृति कार्यक्रम में ‘गांधी और ग्रामीण पत्रकारिता’ विषय पर सोपान जोशी को सुना। उन्होंने बात एक सवाल से शुरू की… हम बहस मुबाहिसों में ये बात करते हैं कि गांधी कितने प्रासंगिक हैं? जबकि सवाल तो ये है कि हमारी अपनी प्रासंगिकता क्या है? हमारी प्रेरणा कहां है और उसका असर हमारे ऊपर क्या है?
सोपान जोशी ने बताया कि हर शहर की खुदाई में कब्र मिलती है। शहर वहीं बसाए जाते हैं, जहां अपनों को दफनाते हैं। एक ऐसी ही कब्र है गांधी की। वो हमारी ज़मीन हैं और जो लोग अपनी ज़मीन को नहीं जानते, नहीं पहचानते वो कहीं नहीं रहते, कहीं नहीं ठहरते।चर्चा को आगे बढ़ाते हुए सोपान जोशी कहते हैं- गांधी ने मशीनी स्वभाव की आलोचना की। हमारा मन मशीन की गति से नहीं चलता, वो प्रकृति की गति से चलता है। गांधीजी मन को मशीन बनाने के विरोधी थे। मशीनी तंत्र ये नहीं देख पाता कि उनके सामने मनुष्य है, उसकी संवेदनाएं हैं। नतीजा ये कि अगर आज बगल में ईश्वर भी आकर बैठ जाए तो हम व्हाट्स एप देखते रह जाएंगे।सोपान जोशी ने इस वक्तव्य में कई सूत्र वाक्य दिए। अच्छा काम करने के लिए दृढ़ता चाहिए, इच्छाशक्ति चाहिए। जरूरत से ज्यादा बोलना नहीं, जरूरत से ज्यादा दिखना नहीं। स्वाभिमान की कोई कीमत नहीं लगा सकता। सबसे बड़ी बात सोपान जोशी ने कही, हमें अपने विचारों के संपादक तलाशने होंगे।
सोपान जोशी का अंदाज, संप्रेषणीयता और गांधी की समझ को सरल-सहज भाव से प्रसारित करने की अदा ही थी कि जब नोएडा-गाजियाबाद में कुछ संस्थाओं के साथ ‘बच्चे, महिलाएं और गांधी की नई तालीम’ विषय पर बातचीत तय हुई तो मैंने सीधे सोपान जोशीजी को फोन लगा दिया। उसी सहजता से उन्होंने आमंत्रण स्वीकार कर लिया। वक्त नोट किया। 29 सितंबर 2019 को हमने सोपानजी के आने के लिए ओला-उबर का विकल्प चुना लेकिन तकनीकी वजहों से थोड़ी दिक्कत हुई। वक्त की पाबंदी ऐसी कि हमारी लाख गुजारिशों के बावजूद मोटर-साइकिल उठाई और 25-30 किलोमीटर का सफर तय कर हाजिर हो गए।
दो भिन्न कार्यक्रमों में बिलकुल अलग तरह की ऑडियंस थी। नोएडा के वाजिदपुर गांव में छोटे-छोटे बच्चे और उनकी माताओं से संवाद करना था। मौके पर ही सोपान जोशी ने मुझसे कुछ सवाल किए और अपनी स्ट्रैटजी बदल दी। बच्चों से तालियां बजवाईं, किस्से सुनाए और बातों ही बातों में बिना डर के जीने का पैगाम दे दिया। उन्होंने कहा कि हम ऐसी छोटी कोशिशों से संवाद बढ़ा रहे हैं और जो छोटा-मोटा समाज रच रहे हैं, वो एक बड़ा असर पैदा करेगा। आज की तारीख में सोपान जोशी, महज गांधी पर बात ही नहीं कर रहे, बल्कि उन तमाम लोगों को अपनी प्रासंगिकता तलाशने की सलाहियत दे रहे हैं जो गांधी के ‘सत्य और अहिंसा’ के प्रयोगों में तनिक भी यकीन रखते हैं। –
पशुपति शर्मा। वरिष्ठ प त्रकार, रंगकर्मी और संस्कृतिकर्मी।