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कोरोना ने पूरी दुनिया में उथल-पुथल मचा दी है । हिंदुस्तान भी उससे अछूता नहीं रहा है । कल तक रोजगार के लिए गांवों से शहर की ओर पलायन हो रहा है था लेकिन मजदूर आज तेजी से शहर से गांव की ओर लौटने को मजबूर हैं। ये वे लोग हैं जिनके बल-बूते हमने अर्थव्यवस्था को नई दिशा दी। एक आंकड़े के मुताबिक देश में कुल आबादी का करीब 35-40 फीसदी हिस्सा रोजगार के लिए प्रवासी बन चुका है। जिसमें बड़ी संख्या दिहाड़ी मजदूरों की है । जरा सोचिए अगर एक साथ करोड़ों लोग जब गांव की ओर लौटेंगे तो फिर शहरों का क्या होगा ।पिछले दो महीने से जितनी मुश्किल ये मजूदर शहर में झेल रहे हैं क्या वो वापस दोबारा शहर में लौटेंगे । अगर नहीं लौटेंगे तो फिर क्या करेंगे । ऐसे में इनके लिए कृषि एक बड़ा जरिया बन सकता है । लेकिन कृषि की जो मौजूदा हालत है क्या वो इन मजूदरों को रोजगार दे पाएगी । इन तमाम सवालों को लेकर टीम बदलाव के साथी अरुण यादव ने डॉक्टर एके सिंह यानी आनंद कुमार सिंह से काफी लंबी बातचीत की । डॉक्टर एके सिंह दिल्ली में भारतीय कृषि अंनुसंधान परिषद में कार्यरत हैं और डिप्टी डायरेक्टर जनरल हार्टिकल्चर की भूमिका निभा रहे हैं । एके सिंह ने किसानों के लिए काफी अच्छे सुझाव भी दिए हैं और चुनौतियों से निपटने का तरीका भी बताया है । बदलाव के पाठकों के लिए पेश है डॉक्टर एके सिंह से बातचीत का कुछ अंश ।
बदलाव- कोरोना काल की वजह से देश में आगे आप क्या चुनौती देख रहे हैं ?
डॉ.एके सिंह- देखिए इसमें कोई संदेह नहीं कि मौजूदा हालात में चुनौती बहुत बड़ी है । मजदूर शहर से गांव की ओर जा रहा है । हालात सुधरने के बाद मजदूर वापस आएंगे या फिर नहीं इस बारे में कोई कुछ नहीं कह सकता । लेकिन इतना तो तय है कि एक साथ गांवों पर बोझ बढ़ने वाला है । ऐसे काल में मजूदरों का सदुपयोग तर्क संगत है । हमें उपलब्ध संसाधनों का सदुपयोग बाजार को ध्यान में रखकर गांव लौटे लोगों के स्किल के हिसाब से रोजगार सृजित करना वांछनीय होगा ।
बदलाव- क्या आपको लगता है मौजूदा व्यवस्था इतने बड़े पलायन को संभाल पाएगी ?
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डॉ. एके सिंह- देखिए मैं गांव में पैदा हुआ हूं, उसकी कमजोरी और ताकत दोनों जानता हूं । बस जरूरत है कमजोरी को दूर कर ताकत को हथियार बनाने की । इसलिए हमें समझना होगा कि जो स्किल्ड लेबर है उसका इस्तेमाल हम कैसे कर सकते हैं । सरकारी योजनाओं में उनकी भूमिका किस रूप हो सकती है और सबसे ज्यादा जरूरी है पारंपरिक खेती से हटकर व्यावसायिक खेती पर जोर देने की जिससे हर किसी को काम मिल सके और रोजगार के लिए शहर जाने को विवश ना होना पड़े ।
बदलाव- शहर से गांव लौटने वाले लोग मजदूरी करने वाले हैं, इनके लिए किसानी में क्या संभावनाएं हैं ?
डॉ. एके सिंह- जिस तरह से पलायन ने यूटर्न लिया है, इसको देखते हुए हमें कृषिगत ढांचे को आवाश्यकता के अनुसार व्यावसायिकता से जोड़ना होगा । इसके लिए कृषि से जुड़ी जो भी योजनाएं हैं उसको प्रभावी ढंग से धरातल पर उतारने का ये सबसे सही समय है । जिला, ब्लॉक और ग्रामसभा स्तर पर एक साथ काम कर सार्थक परिणाम निकाले जा सकते हैं । जिससे कृषि कार्य को बढ़ावा मिल सके और लोग मजदूरी की बजाय अपना काम कर सकें । भूमिहीन किसान कृषि उत्पादक संघों का हिस्सा बनकर कृषि को एक नई दिशा दे सकते हैं जिसमें हर अंश धारक की अपनी भूमिका होगी और हर सदस्य को देश की अर्थव्यवस्था में सुधार का अवसर मिलेगा ।
बदलाव- क्या बरसों पहले किसानी छोड़ चुके इन लोगों के लिए फिर से खेती के काम में जुटना आसाना होगा ?
डॉ.एके सिंह- पहली बात तो ये कि इसमें कोई संदेह नहीं कि ये लोग मेहनती हैं, कुछ भी काम कर सकते हैं, हालांकि लंबे वक्त तक फैक्ट्री और दफ्तर में काम करने के बावजूद किसान खेतों में पसीना बहाएंगे इसमें मुझे पूरा विश्वास है । अगर ये लोग खेती को चुनते हैं तो बहुत अच्छा होगा। इसके लिए हमारी उत्पादकता में काफी इजाफा होगा और उससे अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने में काफी मदद मिलेगी, लेकिन जब उत्पादकता बढ़ेगी तो उसके साथ कई चुनौतियां भी खड़ी होंगी जिसका समाधान स्थानीय स्तर पर ही तलाशना होगा ।
बदलाव- उत्पादकता बढ़ना तो अच्छी बात है लेकिन इसमें कैसी चुनौतियां नजर आ रही हैं?
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डॉ.एके सिंह- ऐसा होने पर उत्पादन के बाजारीकरण के लिए हमें नये अवसर तलाशने होंगे । आंकड़ों के लिहाज से बात करें तो पूरे देश में आपका खाद्यान्न उत्पादन 292 मिलियन टन है और आप अकेले गेहूं ही 106 मिलियन टन पहले से ही पैदा कर रहे हैं । कम से कम हमारे देश में खाद्यान्न उपलब्धता समस्या तो नहीं है । अब अगर जो मजदूर आए हैं वो भी अनाज उत्पादन में जुट गए तो उत्पादन और उत्पादकता बढ़ेगी जिसके लिए बाजार ढूढना एक नई चुनौती होगी ।
बदलाव- फिर सरकार को क्या रणनीति बनानी चाहिए जिससे मजदूरों को गांव में काम भी मिले और उत्पादन का दाम भी ?
डॉ.एके सिंह- एक बात तो साफ है कि जब तक पूरी दुनिया में सभ्यता रहेगी खाद्यान्न की मांग भी रहेगी । इसलिए गांव में जो अनाज आप पैदा कर रहे हैं उसको ग्लोबल ट्रेडिंग के लिहाज से तैयार करना होगा । इसके लिए हमें तीन बातों का ध्यान रखना होगा। पहला तो ये कि हमारे अनाज की गुणवत्ता क्या ग्लोबल मार्केट के लिहाज से है या नहीं ?
क्या हम लागत और कीमत के हिसाब से दुनिया के बाजार में टिक पाएंगे । आपको पता लगाना होगा कि कौन सा देश अनाज खरीदता है और कौन सा देश बेचता है । जब आप दोनों पर नजर रखेंगे तभी अपना मार्केट बना पाएंगे और टिक पाएंगे ।
बदलाव- अमूमन एक धारणा है कि खेती हमेशा घाटे का सौदा होती है ऐसे में हम ग्लोबल मार्केट में कैसे टिक पाएंगे ?
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डॉ.एके सिंह- देखिए खेती करना एक निवेश है, जब आप एक रुपया लगा रहे हैं, हमें अगर 4 रुपये नहीं मिलेगा तो हम खेती क्यों करेंगे । अगर दाम नहीं मिल रहा है तो इसका मतलब है कि बिक नहीं रहा या डिमांड नहीं है । इसको इस तरह समझिए अगर कोई कंपनी कपड़े का कोई एक प्रोडक्ट बनाती है लेकिन वो नहीं बिक रहा है तो वो अपनी रणनीति बदलकर बाजार के डिमांड के हिसाब से कपड़े बनाती है। इसी तरह किसानों को भी समझना पड़ेगा कि सिर्फ अनाज उत्पादन से काम नहीं चलेगा। हमें अपनी सोच और तरीका भी बदलना पड़ेगा । कुछ लोग खाद्यान्न की समस्या हो जाएगी, इसपर ही ज्यादा ध्यान केंद्रीत करते हैं । ये भारत 1947 वाला भारत नहीं है कि अनाज का संकट हो जाएगा। 6 महीने का वक्त दीजिए हम इतना अनाज पैदा कर देंगे कि आप रख नहीं पाएंगे। इसलिए हमारे लिए चुनौती अनाज पैदा करना नहीं बल्कि उसे सही मार्केट तक पहुंचाना है।
बदलाव- काफी उपजाऊ जमीन होने के बाद भी पूर्वी राज्यों में किसान गरीब क्यों है ?
डॉ.एके सिंह- इसमें कोई संदेह नहीं कि यूपी, बिहार, बंगाल, ओडिशा समेत कई पूर्वी राज्यों में गरीबी का घनत्व ज्यादा है । जबकि आपका उत्तर प्रदेश गेहूं का सबसे बड़ा उत्पादक है। पूरे देश में जितना गेहूं पैदा होता है उसका करीब 30 फीसदी से ज्यादा सिर्फ यूपी में पैदा होता है। इसका मतलब ये है कि जब तक आप सिर्फ गेहूं और धान पैदा करेंगे तो गरीबी से ऊपर नहीं उठ पाएंगे ।
बदलाव- पंजाब और हरियाणा में भी गेहूं और धान की काफी पैदावार होती है, लेकिन वहां का किसान तो गरीब नहीं है ?
डॉ एके सिंह- बिल्कुल सही कह रहे हैं, उसकी कई वजहें हैं। पहला तो ये कि पंजाब और हरियाणा सिर्फ अनाज उत्पादन पर ही आश्रित नहीं है और दूसरा ये कि जो अनाज वहां पैदा होता है वहां की सरकारें किसानों से भारी मात्रा में सीधे खरीदती हैं। यही नहीं किसानों को उन राज्यों में बिजली-पानी काफी हद तक मुफ्त मिलता है साथ ही कई और सुविधाएं हैं जिस वजह से उनकी लागत कम आती है। साथ ही इन राज्यों में पशुपालन पर भी काफी काम हो रहा है । लेकिन यूपी, बिहार जैसे राज्यों में किसानों के लिए इन सभी सुविधाओं को बढ़ाकर व्यावसायिकता लाने की जरूत है । इसलिए किसानों को बाजार के अनुरूप उत्पादन करने के लिए अपनी सोच को बदलने की जरूत है ।
टीम बदलाव ने डॉक्टर एके सिंह के साथ पूर्वांचल के किसानों की समस्याओं को लेकर विस्तृत चर्चा की। डॉ. सिंह ने अपने गहन अनुभव के आधार पर बताया कि इस शस्य श्यामला क्षेत्र के करोड़ों किसानों की जिंदगी कैसे खुशहाल हो सकती है। ये सब हम आपको बताएंगे इंटरव्यू की अगली कड़ी में। बने रहिए बदलाव के साथ