पुष्यमित्र
एक चुगलखोर व्यक्ति राजा कृष्ण से कहता है कि तुम्हारी पुत्री साम्बवती चरित्रहीन है। उसने वृंदावन से गुजरते वक्त एक ऋषि के साथ संभोग किया है। कृष्ण अपनी पुत्री के बारे में यह खबर सुनकर गुस्से में आग-बबूला हो जाते हैं। वे यह पता करने की भी कोशिश नहीं करते कि इस बात में कितनी सच्चाई है। वे तत्काल अपनी पुत्री और उस ऋषि को शाप देते हैं कि दोनों मैना में बदल जाये। पुत्री मैना बन जाती है तो उसके पति चक्रवाक को भी वियोग सहा नहीं जाता है। वह भी मैना का रूप धर लेता है। उसे अपनी पत्नी पर पूरा भरोसा है। वह नहीं मानता कि उसकी पत्नी उसे धोखा दे सकती है।
अब तीन प्राणी चिड़िया में बदल गये हैं। यह देख कर उस युवती का भाई साम्ब परेशान हो जाता है। वह तय करता है कि इन लोगों को पक्षी योनि से मुक्ति दिलायेगा। वह अपने पिता को यह भरोसा दिलाने की कोशिश करता है कि ये तीनों लोग निर्दोष हैं। वह इन तीनों को फिर से मनुष्य बनाने के लिए तपस्या करता है। पिता को मनाता है, तब पिता तीनों को शाप मुक्त करते हैं। अहा, क्या कथा है? यह सामाचकेवा लोकपर्व की कथा है।
भारतीय लोकमानस में बसी इस कथा के बारे में सोचिये और वर्तमान परिदृश्य पर गौर कीजिये। आज अगर किसी भाई को पता चल जाये कि उसकी बहन का किसी पर पुरुष से यौन संबंध है, किसी पति को यह भनक लग जाये… तो ये भाई और पति कितनी देर अपने गुस्से पर काबू रख पायेंगे। वे उक्त महिला को कितना बेनिफिट ऑफ डाउट देंगे। मगर लोक मानस में बसी इस कथा के भाई और पति न सिर्फ उक्त स्त्री पर भरोसा रखते हैं, बल्कि उसे दोष मुक्त साबित करने के लिए हर तरह का कष्ट उठाते हैं।
… और बहनें अपने भाई के इस त्याग का बदला चुकाने के लिए हर साल सामाचकेवा का पर्व मनाती हैं। वे मिट्टी की चिड़िया बनाती हैं, गीत गाते हुए उन्हें रोज खेतों में (वृंदावन में) चराने ले जाती हैं। आखिरी रोज कार्तिक पूर्णिमा के दिन इनका विसर्जन करती हैं, बहनें चुगलखोर चुगला की दाढ़ी में आग लगा देती हैं और भाइयों से कहती हैं कि मिट्टी की बनी चिड़ियों को तोड़ दें ताकि सामा, उसके पति चक्रवाक (चकेवा) और शापित ऋषि फिर से मानव रूप में आ सकें। कोसी और मिथिलांचल के इलाके में इस पर्व को लेकर काफी उल्लास रहता है। रात के वक्त लड़कियां और महिलाएं खेतों में जाकर खूब गीत गाती हैं और भाइयों का शुक्रिया अदा करती हैं। इन गीतों में जिस भाई का नाम आता है वह अह्लादित हो जाता है।
इन मधुर गीतों को स्वर कोकिला शारदा सिंहा ने अपनी आवाज दी है। इनमें से “गाम के अधिकारी” और “सामा खेलै चललि” वाले गीत काफी लोकप्रिय हैं। अक्सर इन्हें लोग गलती से छठ गीत समझ लेते हैं। इस लोकपर्व की मधुरता का सबसे सजीव वर्णन फणीश्वरनाथ रेणु ने अपने दूसरे सबसे पापुलर उपन्यास परती परिकथा में किया है। जिन्होंने उस प्रकरण को पढ़ा है, वे इस पर्व की मधुरता का अंदाज लगा सकते हैं।
कथा जो भी हो, मगर वस्तुतः यह पर्व उत्तरी बिहार में हर साल साइबेरिया से आने वाले प्रवासी पक्षियों के स्वागत में मनाया जाता है। इस दौरान पूरे इलाके में साइबेरियन क्रेन समेत कई पक्षी प्रवास करने आते हैं। मगर अक्सर ये पक्षी शिकारियों के हाथों मारे जाते हैं। जबकि इलाके की औरतों को इन पक्षियों के मारे जाने से दुख होता है। इस पर्व के जरिये वे इन पक्षियों की सुरक्षा का भी संदेश देती हैं। हालांकि मौजूदा वक्त में यह संदेश गुम सा हो गया है। अब सामा चकेवा को चराने के लिए न वन (वृंदावन) हैं, न गीत गाने वाले मधुर कंठ, न मूर्तियां बनाने में कुशल महिलाएं। छठ के बाद सबकुछ आपाधापी में होता है। मगर फिर भी यह पर्व हर साल हम जैसों के मन में मधुर स्मृतियां छोड़ जाता है।
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।