सिर्फ धारणाओं से देश नहीं चलता साहब !

सिर्फ धारणाओं से देश नहीं चलता साहब !

राकेश कायस्थ

क्या डर सिर्फ एक धारणा है? ठीक उसी तरह जिस तरह विकास एक धारणा है। धारणा यानी इंप्रेशन ये है कि विकास हो रहा है, इसलिए बहुत से लोग उसे होता हुआ देख रहे हैं। विकास कब पैदा हुआ किसी को मालूम नहीं। फिर भी बहुत से लोगो को यकीन है कि विकास एक दिन सीधे बुलेट ट्रेन में बैठकर आएगा। ठीक उसी तरह जिस तरह पुरानी हिंदी फिल्मों में बच्चे के रोने की आवाज़ से यह पता चलता है कि वह पैदा हो चुका है और फिर अचानक अगले सीन में वह घोड़े पर बैठकर सरपट दौड़ा चला आता है। तो इसमें कोई शक नहीं कि विकास धारणा है। धारणाएं खंडित होने के लिए होती हैं। धारणा खंडित हुई तो विकास जहां कहीं भी था, सदमे में आकर पगला गया। विकास रातो-रात अमिताभ बच्चन से असरानी बन गया। लोग कहने लगे चलो और कुछ ना सही विकास कम से कम मनोरंजन तो कर रहा है।
डर की कहानी भी कुछ ऐसी है। जिनकी कुंडलियां निकाली जा रही हैं, उनका डर वाजिब है। लेकिन डर का इंप्रेशन अलग है। यह इंप्रेशन सोशल मीडिया पर बहुत अजीब तरीके से पसरा हुआ था। लोगो को लग रहा था कि फलां जी डर रहे हैं, इसलिए मुझे भी डरना चाहिए। सवा अरब लोगो के सत्तर साल पुराने लोकतंत्र में यह सामूहिक डर एक बहुत अविश्वसनीय चीज़ बनकर आया। समूहों का मनोवैज्ञानिक अध्ययन करने वाला कोई विशेषज्ञ डर के इस मनोविज्ञान की व्याख्या कर सकता है। लेकिन मुझे यह डर अब जाता हुआ दिख रहा है।
सोशल मीडिया पर बहुत से लोग अचानक तथ्यपरक और तर्कपूर्ण बातें करने लगे हैं। उनमें ऐसे लोगो की तादाद भी ठीक-ठाक है, जो परंपरागत अर्थों में सरकार समर्थक या दक्षिणपंथी कहे जाते हैं। धारणाएं समाज पर असर डालती हैं। लेकिन सिर्फ धारणाओं से देश नहीं चलता, खासकर भारत जैसा विशाल देश तो बिल्कुल भी नहीं। यह सच है कि बिना आग के धुंआ नहीं उठता। विकास के पैदा होने की अफवाह की भी कुछ जायज वजहे थी। समाज में फैले डर की भी वजहे थी और अब भी हैं। डराने वालों का एक संगठित तंत्र है। लेकिन देश इस तंत्र की सीमाएं अब बहुत साफ-साफ देख रहा है। जनकवि नागार्जुन की चर्चित कविता शासन की बंदूक की आखिरी पंक्तियों के साथ बात यहीं खत्म करना चाहूंगा
जली ठूंठ पर बैठकर गई कोयलिया कूक
बाल ना बांका कर सकी शासन की बंदूक


राकेश कायस्थ।  झारखंड की राजधानी रांची के मूल निवासी। दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय। खेल पत्रकारिता पर गहरी पैठ। टीवी टुडे,  बीएजी, न्यूज़ 24 समेत देश के कई मीडिया संस्थानों में काम करते हुए आपने अपनी अलग पहचान बनाई। इन दिनों स्टार स्पोर्ट्स से जुड़े हैं। ‘कोस-कोस शब्दकोश’ नाम से आपकी किताब भी चर्चा में रही।