जंतर-मंतर पर आंदोलनकारियों की नो एंट्री

जंतर-मंतर पर आंदोलनकारियों की नो एंट्री

जंतर-मंतर पर प्रदर्शन बैन ।

जंतर-मंतर पर आंदोलनकारियों की नो एंट्री। अब कोई वहां आंदोलन नहीं करेगा । 24 साल से धरना स्थल के रूप में उभरने वाला जंतर-मंतर अब सुनसान हो गया, जैसे कि यहां कभी कोई विरोध प्रदर्शन हुआ ही नहीं हो। दीवारों पर लगे पोस्टर हटा दिए गए हैं । सड़क के दोनों ओर लगे टेंट उखाड़ दिए गए हैं । अब यहां कोई नहीं है । गांव से लेकर नगरों तक जब लोग आंदोलन करते-करते थक जाते थे तो आखिर में सरकारों को जगानें जंतर मंतर जरूर आते थे.. लोकतंत्र की आवाज का आखिरी अड्डा था जंतर मंतर..। पिछले एक दशक में जंतर-मंतर पर हुए आंदोलनों पर गौर करें तो ये बात साफ हो जाती है कि यहां से उठी जनता की आवाज को हल्के में नहीं लिया गया। जब किसी सरकार ने यहां के आंदोलनों की अनदेखी की तो उसे भारी कीमत भी चुकानी पड़ी । अन्ना आंदोलन उसका एक उदाहरण है । दिल्ली के दिल में मौजूद जंतर मंतर ऐसे कई बड़े-बड़े आंदोलनों का गवाह है । जंतर-मंतर 1993 से लेकर अब तक विरोध प्रदर्शन का ये सबसे बड़ा मंच बन गया था… लेकिन अब इस मंच को बंद कर दिया गया है, अब जंतर-मंतर पर कोई धरना प्रदर्शन नहीं होगा । 30 अक्टूबर को आखिरी आंदोलन हुआ लेकिन अब यहां से कोई अपने हक के लिए आवाज नहीं उठा पाएगा । तेलंगाना की मांग हो या गोरखालैंड या पूर्वोत्तर के छात्रों पर हमला जंतर मंतर ने यहां के लोगों को आवाज उठाने का एक मंच दिया । यहां से लोगों की बात सत्ता की गलियारों में पहुंची और इन मामलों का संज्ञान सरकारों ने लिया ।

अप्रैल 2011 में अन्ना हजारे ने देश में फैले भ्रष्टाचार के खिलाफ जंतर-मंतर से ही अपना आंदोलन शुरू किया था । जब सरकार ने अनदेखी की तो आंदोलन बड़ा हो गया । इसका परिणाम साल 2014 के चुनाव में देखने को मिला। कांग्रेस गठबंधन की करारी हार हुई । दिसंबर 2012 में दिल्ली में निर्भया रेप मामले को लेकर जंतर-मंतर पर ही बड़ा आंदोलन शुरू हुआ था । दोषियों को सजा दिलाने के लिए लोगों क सैलाब यहां उमड़ पड़ा । तत्कालीन कांग्रेस गठबंधन की सरकार को आनन-फानन में कार्रवाई ही नहीं बल्कि कानून बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा। साल 2015 में वन रैंक वन पेंशन की मांग को लेकर पूर्व सैनिकों ने बड़ा आंदोलन किया । तमिलनाडु के किसान हो या आरक्षण के लिए जाट आंदोलन या भीम सेना का प्रदर्शन जंतर-मंतर ने सभी का साथ दिया । इन आंदोलनों का परिणाम कुछ भी रहा हो लेकिन यहां से आवाज लगाने पर सरकारों के कान खड़े हो जाते थे । मीडिया भी तुरंत पहुंच जाती थी और कई सामाजिक संगठन भी । ये लोगों की आवाज का आखिरी अड्डा बन गया था… लेकिन अब यहां धरना करना मना है । अब रामलीला मैदान को धरना स्थल घोषित किया गया है।

अब सवाल है कि ये लोक क्यों लगाई गई ? ये किसका फैसला है दरअसल NGT ने प्रदूषण को देखते हुए जंतर मंतर पर होने वाले प्रदर्शन पर रोक लगा दी है। एनजीटी का कहना है कि प्रदर्शन से भारी ध्वनि प्रदूषण होता था जिसे रोकने में दिल्ली सरकार नाकाम हो रही थी । जंतर-मंतर के पास रहने वाले लोगों को शांतिपूर्ण वातावरण में रहने का अधिकार मिलना चाहिए, इसलिए आंदोलनकारियों के कैंप और उनके लाउडस्पीकर को रामलीला मैदान में शिफ्ट किया जाए । NGT के आदेश के बाद आंदोलनकारियों को हटा दिया गया।
दिल्ली का जंतर मंतर एक खगोलीय वेधशाला जिसका निर्माण राजा जयसिंह द्वितीय ने साल 1724 में करवाया था । 1993 से पहले राजपथ के पास बोट क्लब में धरना-प्रदर्शन होते थे । सुरक्षा कारणों की वजह से आंदोलन का स्थान बोट क्लब से जंतर-मंतर पर कर दिया गया । जिसके बाद धीरे धीरे इसकी पहचान आंदोलन स्थल के रूप में बन गई थी। जब देश के सरकारें जनता की आवाज नहीं सुनती थीं दो देश के कोने-कोने से लोग जंतर-मंतर पहुंचते थे और अपनी आवाज सरकार तक पहुंचाते थे । जंतर-मंतर से आवाज लगाकर लोग सई सरकार को जगाते थे । जंतर-मंतर पर गुंजने वाले नारे सरकारों को सोने नहीं देते थे… तो अब सवाल ये है कि क्या जितना असर जंतर-मंतर पर होने वाले प्रदर्शनों का असर होता था, रामलीला मैदान से उठने वाली आवाजें भी उतनी असरदार होंगी ? जंतर-मंतर पर आंदोलनकारी कई साल तक आंदोलन करते थे.. उन्हें किसी तरह की कोई परेशानी नहीं होती थी… लेकिन रामलीला मैदान में धरना प्रदर्शन के लिए पैसे देने होंगे वो भी एक दिन के लिए हजारों रुपए। साथ ही पीने के लिए साफ पानी जैसी बाकी सुविधाएं भी वहां नहीं है । सवाल ये भी है कि क्या आंदोलनकारियों से बचकर निकलने के लिए पर्यावरण एक बहाना है ?

– सत्येंद्र कुमार यादव,  एक दशक से पत्रकारिता में सक्रिय । माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र । सोशल मीडिया पर सक्रिय । मोबाइल नंबर- 9560206805 पर संपर्क किया जा सकता है।