पुष्य मित्र
अभाव का प्रेम भूखा होता है और स्वार्थी भी। वह सिर्फ प्रेम चाहता है, किसी भी कीमत पर। वह प्रेम पाने के लिए छल भी कर सकता है और बल का प्रयोग भी। उसके लिए प्रेम सिर्फ पाना, हासिल करना और अपने प्रिय को गुलाम बना लेना होता है। वह ज्यादातर उन लोगों में होता है, जिन्हें बचपन में प्रेम नहीं मिला, न घर में न दोस्तों से। प्रेम का वह अभाव उसे प्रेम का अपराधी बना देती है। ऐसे अपराधी थोड़े बहुत हम भी हैं जो प्रेम तो चाहते हैं, मगर प्रेम करने की क्षमता से रिक्त होते हैं। हम प्रेम पाने के लिए हर तिकड़म का सहारा लेते हैं। बस इतना नहीं जानते कि प्रेम पाने के लिए सिर्फ प्रेम करने की जरूरत होती है। जानते भी हैं तो प्रेम कर नहीं पाते, क्योंकि हमारे मन में प्रेम का भाव या भाव का प्रेम है ही नहीं।
प्रेम बंधन नहीं है। प्रेम जुड़ना और फिर आजाद हो जाना और आजाद कर देना है। और फिर जुड़ना और फिर आजाद होना, आजाद कर देना है। अपने प्रिय को अपने पास बांधे रखना, अपना कब्जा जमाये रखना नहीं है। उसे छूना, उसमें डूबना, घुलना-मिलना और उसे प्रेम के रंगो-तरंगों-खुशबुओं से भरकर मुक्त कर देना है। ताकि वह प्रेम खुशबू की तरह पूरी दुनिया में तरंगित होता रहे। कोई आपके प्रिय से मिले तो उसकी मुस्कुराती आंखों में आपकी तसवीर देखे। यह प्रेम की मुक्ति से ही मुमकिन है, बांध लेने से प्रेमी तो आपके पास बच जायेगा, मगर प्रेम काफूर हो जाएगा। बची रहेगी बस ऊब और चिढ़ और प्रेम को जाहिर करने के अभिनय। मगर प्रेम का अभिनय प्रेम नहीं है। जिस प्रेम को प्रदर्शित और प्रकाशित करने की जरूरत होती है, वहां से प्रेम विदा ले रहा होता है। जब प्रेम होता है तो वह आपको कुछ भी सायास करने की मोहलत कहां देता है।
इस स्वार्थ, लालच, हवस, ईर्ष्या और महत्वाकांक्षा से भरी दुनिया में प्रेम एक साहस का नाम है। क्योंकि प्रेम इन सबके खिलाफ है। हर वह विचार जो आपको बांटता है, वह अमूमन प्रेम के खिलाफ होता है, क्योंकि प्रेम जोड़ने के पक्ष में होता है, बांटने के नहीं।
इसलिए वह किसी बंटवारे को नहीं मानता। न जात, न धर्म, न देश, न और कोई पक्ष। इसलिए प्रेम कट्टर हो रही इस दुनिया में लिबरल होने का नाम है। और सत्य, अहिंसा और प्रेम के पक्ष में खड़े होकर इनके विरोधियों की नफरत को हंसते-हंसते झेलने का नाम है। इसलिए प्रेम इतना साहसी होता है और हर बार नफरत से भरे समूहों की हिंसा का शिकार होता है।वैसे तो प्रेम ये है, प्रेम वो है, प्रेम ऐसा है, प्रेम वैसा है, यह सब बस कहने और सुनने की बात है। असल में प्रेम कैसा है, यह प्रेम करने वाला ही जानता है और समझता है। मगर बता नहीं पाता क्योंकि प्रेम हर बार प्रेमियों को गूंगा बना देता है। फिर भी इतना तो कहा ही जा सकता है कि प्रेम से ही यह दुनिया बनी, बची और चल रही है। अगर प्रेम नहीं होता तो आप नहीं होते, मैं नहीं होता, ये पेड़-पौधे, जानवर, चिड़ियां कुछ नहीं होते। धरती एक बंजर ग्रह होती। इसलिए धरती का होना, प्रेम का होना है।
बसंत का महीना और वेलेंटाइन डे का हफ्ता। यह सब हमने तय किया है, ताकि हम प्रेम के बारे में कुछ कह सकें। खुद को खोल सकें। तो इस मौके पर मैं खुद को कुछ इस तरह अभिव्यक्त कर रहा हूं। क्योंकि थोड़ा प्रेम मुझमें भी है।