कांग्रेस का PPP मॉडल- प्रियंका, पंडित और प्रशांत!

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पंजे को आगे लाने की कोशिश में प्रशांत, प्रियंका और राहुल गांधी।

कमलेश यादव

यूपी विधानसभा चुनाव के लिए सभी दलों ने अपनी रणनीति बनानी शुरू कर दी है। ख़बर है कि कांग्रेस 400करोड़ खर्च कर PPP मॉडल के जरिए यूपी की बैतरणी पार करने की कोशिश में जुट गई है। प्रियंका के भरोसे अपनी नैया पार लगानी चाहती है। PPP यानी प्रियंका, प्रशांत और पैसा कांग्रेस की रणनीति में है । PPP मॉडल का मतलब प्रियंका, पंडित और प्रशांत किशोर भी है । क्योंकि मोदी के बाद नीतीश के चाणक्य रहे प्रशांत किशोर राहुल गांधी को पंडितों के साथ जु़ड़ने पर जोर दे रहे हैं । कांग्रेस के कई मीटिंग में प्रशांत किशोर इसी बात पर जोर देते देखे गए । उनका मानना है कि पैसा, प्रियंका और पंडितों के भरोसे यूपी में 100 से ज्यादा सीटें जीती जा सकती हैं। हालांकि बीजेपी की मजबूत स्थिति को देखकर पंडितों को अपनी ओर करने का फॉर्मूला ख्याली पुलाव जैसा लगता है। लेकिन सियासत में कुछ कहा नहीें जा सकता ।

प्रशांत किशोर ने कांग्रेस आलाकमान को कई विकल्प दिए हैं। पहला विकल्प तो ये है कि राहुल गांधी स्टार प्रचारक बने और प्रियंका सीएम उम्मीदवार। अगर इस पर सहमति ना बने तो ठाकुर जाति से आर पीेएन सिंह या पंडित जाति से प्रमोद तिवारी। लेकिन इन दोनों नाम पर कांग्रेस में किसी सहमति की संभावना नहीं है। रही बात प्रियंका की तो कांग्रेस इतना बड़ा रिस्क नहीं लेगी। क्योंकि कांग्रेस प्रियंका को पीएम मैटेरियल मानती है। अब सवाल ये है कि अगर इनमें से कोई तैयार भी हो जाए तो प्रशांत किशोर कहां से वोट लाएंगे ?

प्रशांत किशोर कांग्रेस के लिए कहां से वोट लाएंगे?

क्या समाजवादी पार्टी से यादव और मुसलमानों को तोड़ पाएंगे? क्या बीजेपी से पंडितों को अलग कर पाएंगे ? क्या अखिलेश, मायावती की तुलना में उनके उम्मीदवार ज्यादा प्रभावी साबित होंगे ? या मायावती के वोट बैंक से बड़ा हिस्सा अपनी ओर करने में कामयाब होंगे? कांग्रेस को खुद भरोसा नहीं है कि उसके पास वोट बैंक कितना है और वो कौन से लोग हैं जो उनका साथ देंगे ? वर्तमान में जो राजनीतिक परिदृश्य है उसे देखकर आसानी से अनुमान लगाया जा सकता है कि कांग्रेस के लिए फिलहाल यूपी में कोई स्कोप नहीं है। कांग्रेस को किसी पार्टी के साथ ही चुनाव लड़ने में भलाई है। अपने दम पर अर्धशतक भी लगा ले तो बड़ी बात होगी। क्योंकि ना तो बीजेपी का वोट बैंक कहीं जाएगा, ना मायावती का। अगर किसी का वोट बैंक खिसकेगा तो वो है समाजवादी पार्टी लेकिन ये वोट कांग्रेस को नहीं मिल सकता है। मायावती-बीजेपी में बंट जाएगा। ऐसे में pk का PPP मॉडल सिर्फ एक ख्याली पुलाव या तुक्के वाली बात है। कांग्रेस चाहें किसी को भी आगे कर ले फिलहाल उसकी स्थिति में बहुत ज्यादा सुधार की गुंजाइश नहीं है।

बीएसपी प्रमुख मायावती और यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव मौर्य
बीएसपी प्रमुख मायावती और यूपी बीजेपी अध्यक्ष केशव मौर्य

जहां कांग्रेस पैसा और पंडितों पर ज्यादा जोर दे रही है वहीं मायावती ने भी अपनी माया फैलानी शुरू कर दी है। माया ने DM यानी दलित- मुस्लिम रणनीति पर काम कर रहीं है। साथ ही कुशवाहा, कोइरी और कुर्मी का भी समीकरण लगा रही है। ब्राह्मण को छोड़कर अगर मायावती ने मुस्लिम समुदाय में सेंध लगा ली तो सपा की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। बीजेपी से एसपी की बढ़ती नज़दीकियों ने मुस्लिम वोटबैंक को कमज़ोर किया है। राज्य में हुए हिंसा पर केंद्र की चुप्पी ने यूपी के मुस्लिम समुदाय को एकजुट किया है, इसमें कोई दो राय नही है। ऐसे हाल में बीजेपी को सत्ता से दूर रखने के लिए मुसलमान मायावती को खुला समर्थन दे सकते हैं।

एसपी MY यानी मुस्लिम-यादव समीकरण के साथ क्षत्रीय-यादव समीकरण को भी मजबूत कर रही है। आजमगढ़ के क्षत्रिय परिवार में शिवपाल के बेटे की शादी और अमर सिंह से बढ़ती नज़दीकी इसकी तस्दीक कर रही है। उधर एसपी-बीजेपी की नज़दीकी मुसलमानों को खटक रही है। नेताजी की मोदी पर मेहरबानी और बिहार में महागठबंधन से अचानक हाथ छिटकना भी जनता की समझ से परे नही है। बेशक युवा सीएम अखिलेश यादव के चार साल का कार्यकाल बेदाग़ रहा है, लेकिन कानून व्यवस्था के मुद्दे पर यूपी सरकार घिरती रही है। ऐसे जनता को मायावती का कार्यकाल एक बार फिर याद आने लगा है।  हालांकि बीएसपी के कार्यकाल में हुए घोटालों और पैसे की बर्बादी भी लोगों को याद है। ऐसे में अखिलेश की छवि और युवाओं के बीच उनकी लोकप्रियता से एसपी को फायदा मिल सकता है। लेकिन फिलहाल तो इतना ही कहा जा सकता है की बहुत कठिन है डगर लखनऊ की।

sp bsp and owaisiबीजेपी विकास के मुद्दे को गौण कर ‘PHD’ (पिछड़ा, हिंदू, दलित) मॉडल पर काम कर रही है। राम मंदिर आंदोलन से जुड़े रहे केशव मौर्य को यूपी बीजेपी का अध्यक्ष बनाकर जनता में दो संदेश देने की कोशिश की है। पहला तो संघ से जुड़े कट्टर हिंदुवादी चेहरा, जिससे कट्टर हिंदू बने रहेंगे और दूसरा पिछड़ा वर्ग से अध्यक्ष बनाना, ताकि पिछड़ी जाति के लोगों को ज्यादा से ज्यादा संख्या में अपनी ओर किया जा सके। बाकी गरीबों के मसीहा के रूप में मोदी का इस्तेमाल तो कर ही रही है। दादरी के अख़लाक़ हत्या मामले को फिर गरम किया जा रहा है । हर दूसरे दिन बिसाहड़ा के मंदिर में (वही मंदिर जिससे अफवाह फैलाकर अखलाक की हत्या की गई) पंचायत हो रही है। बीजेपी बिना हिंदू कार्ड के यूपी विधानसभा चुनाव में कुछ कर नहीं पाएगी। विकास के मुद्दे पर अब मोदी की तरह जनमत नहीं मिलने वाला है। इसलिए बीजेपी ‘H’ (हिंदू) मॉडल को जितना धार देगी उतना ही फायदा हो सकता है।

मायावती अगर DM फॉर्मूले को सही तरीके से भुना पाई तो सपा का सफाया तय है। 19 फीसदी दलित और 18 फीसदी मुस्लिम वोट अवध की सत्ता के लिए काफी है, मगर इसके लिए मायावती को ब्राह्मण प्रेम से मुक्त होना पड़ेगा। क्योंकि मुस्लिम समुदाय कभी भी ब्राह्मण के साथ नही जायेगा। 19फीसदी दलित वोट बैंक में कोई भी सेंध नही लगा पायेगा, बेशक कल्याण सिंह के सहारे बीजेपी लोध वोटबैंक को हथिया भी ले तो अधिकांश दलित मायावती के साथ ही होंगे। रही बात मुस्लिम वोटबैंक की तो उसपर सपा के अलावा ओवैसी की भी नज़र भी है। सपा-भाजपा की गलबहियाँ यूँ ही चलती रही तो मुस्लिम सपा का साथ छोड़ देंगे। रही बात कांग्रेस की तो वह यूपी में सपा-बसपा को टक्कर देने में नही है। लेकिन अगर PPP मॉडल काम कर गया तो 100 सीटों के लिए 400 करोड़ रुपए खर्च करना अखरेगा नहीं ।

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कमलेश यादव , पिछले 5 सालों से मीडिया में सक्रिय हैं। नौकरी के लिए गांव से शहर की सड़कों का रुख तो किया लेकिन चिंताओं का विस्तार उन पगडंडियों तक हैं, जहां बचपन के दिन गुजरे।