टीम बदलाव
कुछ इत्तेफाक भी बेहद खूबसूरत हुआ करते हैं। बच्चों की छुट्टियां हो रही हैं और मुजफ्फरपुर के गांव पियर में पुस्तकों का नया कलेक्शन आ गया है। आज बदलाव पाठशाला के बच्चों के बीच नई-पुरानी सभी पुस्तकों की प्रदर्शनी रखी गई है। इसके साथ ही एक विचार गोष्ठी- आओ पुस्तकों से करें दोस्ती- का भी आयोजन किया जा रहा है। पियर गांव के बच्चे, उनके अभिभावक इस गोष्ठी के दौरान किताबों के बीच होने का सुखद एहसास हासिल कर पाएंगे। सुखद इत्तेफाक ये कि हमारे युवा साथी सुबोध कुमार आज के दिन इन बच्चों के बीच रहेंगे। अपनी छुट्टियों से कुछ वक्त निकाल कर आपने पियर गांव की इस गोष्ठी में शरीक होने का प्रस्ताव स्वीकार किया, ये भी कम सुखद नहीं।
आओ पुस्तकों से करें दोस्ती
पियर गांव, मुजफ्फरपुर
गोष्ठी का वक़्त-1 बजे दोपहर, रविवार, 20 मई 2018
पिछले कई दिनों से बदलाव, मुजफ्फरपुर के संयोजक ब्रह्मानंद ठाकुर और बच्चों का उत्साह देखते ही बना। पुस्तकों की लिस्ट बनाने से लेकर उनकी कैटलॉगिंग और डिसप्ले को लेकर बातचीत होती रही। इस काम में मणिकांत भी जी जान से जुटे हैं। किताबों के साथ रिश्ता बने ये तो हम सभी चाहते हैं लेकिन इसके लिए जो जरूरी पहल होनी चाहिए, वो कम ही देखने को मिलती है। इस लिहाज से ये छोटी सी कोशिश एक बड़ी उम्मीद जगाती है।
इसी गोष्ठी के साथ बदलाव पाठशाला के पुस्तकालय में एक नया सेक्शन शुरू हो रहा है-रेणुका बाला घोष ( मीनू ) पुस्तकालय। इस सेक्शन के लिए न्यू जर्सी, यूएसए में कार्यरत भारतीय मूल के युवा कम्प्युटर इंजीनियर प्रेम पियूष ने पुस्तकें उपलब्ध कराई हैं। साथ ही उन्होंने नई पुस्तकों की खरीद के लिए 11,000 रुपये की अनुदान राशि भी मुहैया कराई है। बदलाव पुस्तकालय के लिए पिछले दिनों ढाई सौ से ज्यादा पुस्तकों की खरीद की गई है। और अभी पुस्तकों के चयन और उनकी खरीद का सिलसिला जारी है। पिछले दिनों अमेरिका से हमारी एक और साथी तारिका मूलचंदानी ने बदलाव पाठशाला के कॉन्सेप्ट की सराहना की। उन्होंने इस पाठशाला के सतत संचालन के लिए करीब 7000 रुपये की एकमुश्त अनुदान राशि मुहैया कराई है। ब्रह्मानंद ठाकुर की सतत कोशिशों से पहले ही पुस्तकालय में पुस्तकें एकत्र की जा चुकी हैं। मुजफ्फरपुर के कुछ स्थानीय साथियों ने भी पुस्तकें दान की हैं।
आपको बता दें कि पिछले साल 2 अक्टूबर गांधी जयंती को बदलाव के साथियों ने मुजफ्फरपुर के पियर गांव से बदलाव पाठशाला की शुरुआत की। समूह ने केवल भरोसे के बूते कदम आगे बढ़ाया। सपना ज़मीन पर उतरा तो सहयोग के हाथ भी बढ़े। जनभागीदारी से ऐसे प्रयासों को मुकम्मल करने के लिए बेहद छोटी सी सालाना सहयोग राशि तय की गई। बदलाव पाठशाला के राष्ट्रीय संयोजक शंभु झा ने 600 रुपये सालाना की सहयोग राशि तय की ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इस अभियान में शरीक हों। शंभु झा की संकल्पना के आधार पर ही 50 रुपये प्रति माह के सहयोग का विकल्प भी खुला रखा गया। धीरे-धीरे दर्जनों साथी इस मुहिम से जुड़ चुके हैं। ढाई आखर फाउंडेशन की ओर से बच्चों के लिए एक लैपटॉप मुहैया कराया गया है। इस लैपटॉप से इंटरनेट की दुनिया के दरवाजे भी बच्चों के लिए खुल रहे हैं। छोटी-छोटी सहभागिता के साथ ही तमाम लोगों का रिश्ता भी बदलाव पाठशाला से जुड़ता जा रहा है।