पुष्यमित्र
पिछले एक पखवाड़े से पटना शहर एक अलग ही धुन में रमा हुआ है। गांधी मैदान में एक आलीशान टेंट सिटी खड़ी हो गयी है। पटना सिटी की तरफ जाने वाले संकरे और गंदगी से अटे रास्ते अचानक साफ-सुथरे और चौड़े हो गये हैं। शहर में जगह-जगह रंगाई-पुताई हो रही है और अचानक हर चौक चौराहे पर ‘जी आया नूं’ वाले बोर्ड के साथ हेल्प डेस्क खड़े हो गये हैं। अचानक तमाम गाड़ियां पटना सिटी स्थित तखत हरमंदिर साहिब की तरफ जाती नजर आ रही हैं। लोगों को लंगरों के रीति-रिवाजों का बेहतरीन स्वाद पता चलने लगा है। मगर 5000 सिखों और पंजाबियों की आबादी वाले इस पटना शहर में अचानक कई अलग-अलग किस्म की पगड़ियों वाले सिख नजर आने लगे हैं।
अचानक लोग महसूस कर रहे हैं कि उनकी भाषा में पंजाबी के कड़क शब्द शामिल होने लगे हैं। हर तरफ ढेर सारे होर्डिंग्स लगे हैं जिसमें सिखों के दसवें गुरु गुरु गोबिंद सिंह की बड़ी-बड़ी तसवीरें हैं. रास्ता बताने वाले तमाम बोर्ड बता रहे हैं कि यहां से हरमंदिर साहब कितनी दूर है और गुरु का बाग गुरुद्वारा कितनी दूर. जी हां, इन दिनों पूरा पटना शहर एक लाख से अधिक सिखों की आगवानी के लिये तैयार है जो अपने अंतिम गुरु गुरु गोबिंद सिंह के 350वें प्रकाशोत्सव में भाग लेने उनके जन्मस्थल पटना साहिब पधार रहे हैं.
नये साल में एक से पांच जनवरी तक इस प्रकाशोत्सव का भव्य आयोजन किया जा रहा है. बिहार की सरकार ने इस आयोजन को सफल और बेहतरीन बनाने में अपनी पूरी ताकत झोंक दी है. स्वागत सत्कार का इतना बेहतरीन इंतजाम शायद ही किसी धार्मिक आयोजन में पहले हुआ होगा. गांधी मैदान, बाइपास और कंगन घाट में बनी टेंट सिटियों में 50 हजार से अधिक लोगों के ठहरने की जो व्यवस्था है वह किसी बेहतरीन होटल सरीखी है. बेड, बिस्तर, कंबल तो हैं ही, रूम हीटर, नहाने के लिए गर्म पानी, भोजन के लिए तीन तरह के लंगर, कहीं जाने-आने के लिए बसें, कुल मिलाकर ऐसा इंतजाम है कि मेहमान आयें तो बेफिक्र होकर आयें, घूमने का आनंद लें और निश्चिंत होकर लौंटे. दिलचस्प है कि यह सारी व्यवस्था बिल्कुल मुफ्त है. इसके अलावा गंगा में बोट और स्टीमर की सवारी का आनंद अलग ही है.
तीनों टेंट सिटी का निर्माण करने वाले कांट्रैक्टर लल्लू लाल जी एंड संस के साइट सुपरवाइजर के मुताबिक भारत में शायद ही कहीं सुविधाओं के मामले में इतना भव्य धार्मिक आयोजन हुआ है. लल्लू लालजी एंड संस कंपनी 1920 से लगातार इलाहाबाद के कुंभों के आयोजन का सारा काम करती रही है. उसने नांदेड़ में गुरुग्रंथ साहिब के 300वें प्रकाशोत्सव के आयोजन में भी लॉजिस्टिक का काम किया था. इतना ही नहीं, सरकार के अलावा स्थानीय गुरुद्वारों ने भी इस मौके पर अपने स्तर पर लॉजिस्टिक का शानदार इंतजाम किया है.
कारसेवा भूरीवाले द्वारा संचालित गुरुद्वारा बाल लीला का पटना सिटी में स्थित अपना 150 कमरों का रेस्टहाउस किसी फाइव स्टार होटल सरीखा है. उसके बेसमेंट में भी श्रद्धालुओं के ठहरने की बेहतर व्यवस्था है. उसने तीन टेंट कैंप भी बनवाये हैं और 30 से अधिक सार्वजनिक भवनों में ठहरने की व्यवस्था की है. कुल मिलाकर इंतजामात ऐसे हैं कि किसी आगंतुक को थोड़ी भी परेशानी न हो. यह न लगे कि बिहार जैसी जगह में यह आयोजन हो रहा है, पता नहीं कैसी व्यवस्था हो. सरकार और सिख संगठनों द्वारा बड़े पैमाने पर इस बात का प्रचार प्रसार भी किया गया है. यही वजह है कि 23 दिसंबर से पहले ही टेंट सिटीज की सभी 50 हजार सीटें एडवांस बुक हो गयीं.
दो हफ्ते से लगातार सिख श्रद्धालु ट्रकों, बसों, ट्रेनों और हवाई जहाज से लगातार पटना पहुंच रहे हैं. पटना सिटी की गलियां इन सिखों की आवाजाही से गुलजार है. रोज प्रभातफेरी निकल रही है, शाम के वक्त बेल्जियम से मंगवाई गयी लाइट्स से गुरुद्वारे और टेंट सिटी रौशन हो रहे हैं और उन रोशनियों को देखने के लिए मजमा लग रहा है. दीदारगंज स्थित गुरु का बाग गुरुद्वारे से लेकर गांधी मैदान टेंट सिटी तक लंगरों में भीड़ उमड़ रही है. कहीं वीआईपी लंगर है तो कहीं लंगरों का देसी अंदाज. अखबारों में उन मशीनों की तसवीरों के देखकर लोग हैरत में पड़ जा रहे हैं जो एक घंटे में 3000 रोटियां और हजारों गुलाब जामुन तैयार कर देते हैं. लोग उन लोगों के बारे में जानकर श्रद्धा से भर उठते हैं जो लंगरों में सेवा देने के लिए हजारों किमी दूर से पटना आये हैं.
बड़े-बड़े घर की सिख औरतें मटर छीलती और रोटियां बेलतीं नजर आ रही हैं और जूठे प्लेटों को धोने के लिए होड़ मची हैं. यह सब कुछ पटना के लोगों के लिए बिल्कुल नयी चीज है. धर्म के लिए और उसकी परंपराओं के लिए इतना सादगी भरा समर्पण लोगों को चकित कर रहा है.
यह सच है कि पटना साहिब सिखों का बड़ा केंद्र है. यहां पांच तखतों में से एक तखत स्थित है. उनके अंतिम और दूसरे सबसे महत्वपूर्ण गुरु का जन्मस्थल और बाल लीलाओं का गवाह है. यहां गुरु नानक देव और गुरुतेग बहादुर जैसे सिख गुरुओं के चरण पड़े हैं, मगर सिखों की आबादी यहां काफी सीमित है. सनातनी सिख जो यहीं के मूल बाशिंदे थे और इन गुरुओं के प्रभाव में सिख बने उनकी संख्या तो और भी कम है. इसलिए ये परंपराएं अब तक ज्ञात नहीं रही है. अब इन्हें बृहद स्तर पर देखना-समझना उनके लिए एक विलक्षण अनुभव है.
हालांकि दसियों हजार कर्मियों और पुलिस वालों को इस काम पर तैनात करके और टेंट सिटीज में अरबों खर्च करके जो तैयारी की गयी है, उसका आज की तारीख तक वैसा रेस्पांस नजर नहीं आया है. टेंट सिटीज लगभग खाली हैं. गांधी मैदान में तो दावा किया जा रहा है कि 500 सिख श्रद्धालु रह रहे हैं, मगर वे दिखते नहीं हैं. बाइपास टेंट सिटी में 1500 और कंगन घाट टेंट सिटी में 500 सिखों के रहने की बात बतायी जा रही है. मगर उनमें से ज्यादातर कार सेवक हैं जो लंगरों की व्यवस्था करने आये हैं. हालांकि बाल लीला गुरुद्वारे से संबद्ध रेस्ट हाउस और टेंट सिटी में सिख श्रद्धालुओं की संख्या कुछ हद तक ठीक-ठाक है. मगर ऐसा लगता नहीं है कि कुल मिलाकर 10 हजार श्रद्धालु भी पहुंचे होंगे.
बहुत मुमकिन है कि मौसम का असर हो. कई टेंट सिटी से लोगों के बुकिंग कैंसिल कराने की भी खबरें हैं. हो सकता है ज्यादातर लोग मुख्य समारोह के दौरान पहुंचें. जो भी हो, मगर जो श्रद्धालु यहां पहुंचे हैं, वे काफी अह्लादित नजर आ रहे हैं. उम्मीद है कि वे यहां से सकारात्मक अनुभव के साथ लौटेंगे. (प्रभात खबर में प्रकाशित)
पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।