चंदन शर्मा के फेसबुक वॉल से
किसी मकसद को अंजाम देने के लिए किसी का मुंह ताकने से बेहतर है खुद हिम्मत कर आगे बढ़ना। कुछ ऐसी ही मिसाल पेश की है बिहार के रोहतास जिले के विक्रमगंज अनुमंडल के संझौली प्रखंड ने। इसे समझने के लिए चलिए हम आपको ले चलते हैं संझौली ब्लॉक के एक छोटे से गांव उदयपुर। तलाब के बीच में बना हुआ सूर्य मंदिर, जहां आस-पास के गांव के सैकड़ों महिलाएं छठ करने पहुंचती हैं, लेकिन इसबार छठ में यहां आनेवाले श्रद्धालु चौंक गए। सड़क के किनारे कहीं खुले में शौच नहीं दिखा। श्रद्धालुओं को इस वर्ष नित्य क्रिया से निवृत्त होने के लिए गांव के बीचोंबीच बने गंदगी के ढ़ेर का रास्ता नहीं दिखाया गया। सबके लिए इस सम्मान घर (यहां शौचालय का नया नाम) खुला हुआ था। यानी जिले का सबसे गंदा गांव आज स्वच्छता का मानक गांव बन चुका था। यानी वर्षों से चली आ रही खुले में शौच की परंपरा से यह गांव अब मुक्त है।
छह पंचायत और 64 गांवों वाले संझौली ब्लॉक ने जन-भागीदारी, प्रशासन और यूनिसेफ के सहयोग से बहुत ही कम समय में स्वच्छता की ओर कदम बढ़ाया है। महज 55 दिन में खुले में शौच से मुक्त (ओपन डिफीकेशन फ्री) मुक्त होने वाला संझौली बिहार का पहला ब्लाक है। अब तक बिहार में रोहतास का संझौली और पश्चिम चंपारण का पिपरासी प्रखंड पूरी तरह से शौच से मुक्त हो चुके हैं। 55 दिनों की इस अवधि में इस प्रंखंड में लगभग 7000 शौचालय बनाएं गए हैं। संझौली प्रखंड सबसे पहले उस वक्त सुर्खियों में आया जब बाराखाना की मिड डे मील योजना की रसोईया फूल कुमारी ने अपना मंगलसूत्र गिरवी रखकर शौचालय बनवा जिसके बाद लोगों में शौचालक को लेकर एक अलग सोच विकसित हुई ।
मिशन प्रतिष्ठा बनता जा रहा प्रतिष्ठा का सवाल-
रोहतास के डीएम अनिमेष कुमार पराशर ने खुले में शौच से मुक्ति के संकल्प के साथ 21 जून 2016 को मिशन प्रतिष्ठा की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य शौचालय को बहू-बेटी के मान सम्मान से जोड़कर लोगों को उसका महत्व समझाना था। संझौली के एसडीएम राजीव कुमार कहते हैं- “इससे पहले के कैपेंनों के दौरान सारा ध्यान शौचालय बनाने पर होता था, उनके वास्तविक इस्तेमाल की ओर कोई ध्यान नहीं दिया जाता था। पुरानी कमियों से सीख लेते हुए इस बार हमारा पूरा फोकस लोगों के व्यवहार में बदलाव लाकर लोगों में शौचालय प्रयोग की आदत विकसित करने में है। शौच की गुणात्मक गणना, शुभ 11, सम्मान घर, राखी में शौचालय का तोहफा जैसे छोटे-छोटे अनेक पहल के जरिए से इस कैंपेन को एक जन आंदोलन का रूप दिया गया।” उदयपुर पंचायत के पूर्व मुखिया वशिष्ठ पासवान बताते हैं कि “प्रशासन और फीडबैक फाउंडेशन के लोग आते थे और पूरे गांव का चित्र बनावाते थे फिर वो अपने तरीके से समझाते थे कि एक आदमी अगर एक दिन में इतना शौच करता हैं तो पूरे गांव का और पूरे साल की अगर हम गणना करेंगे तो वो कितना होगा। तब हमें समझ में आया कि कैसे घर से बाहर शौच के लिए जाना हमारे और हमारे बच्चों के स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। यही वजह है कि किसी को भी सरकारी अनुदान नहीं दिया गया है। बावजूद सबने अपने पैसे से या एसएफजी से लाेन लेकर निर्माण कराया है।”
थानेदार करते थे रेल ट्रैक की निगरानी
संझौली के उदयपुर पंचायत को खुले में शौच मुक्त बनाने का सफर आसान नहीं था । लोग बताते हैं कि सुबह 4 बजे से एसडीएम, डीएसपी समेत अन्य अधिकारी और गांव के प्रेरक खुले में शौच जाने वालों पर नजर रखते थे और उन्हें खुले में शौच जाने से रोककर शौचालय का उपयोग करने को प्रेरित करते थे। हर पंचायत के लिए एक जिला स्तर के पदाधिकारी को नोडल पदाधिकारी बनाया गया । उदयपुर पंचायत के नोडल आफसर विक्रमगंज अनुमंडल के एसडीएम राजीव कुमार थे। जिले में यह अपनी तरह का पहला प्रयोग है । सुबह-सुबह अधिकारी ग्रामीण अंचलों में पहुंच कर खुले में शौच जाने वालों पर निगरानी रख रहें हैं। साथ ही उन्हें रोक भी रहे है। एसडीएम राजीव कुमार कहते हैं –“लोगों को जागरूक करने के बाद यह तय किया गया कि एक नियमित समय पर शौचालय निर्माण का काम शुरू किया जाए। ऐसे में यह तय हुआ कि हर महीने की 11 तारीख को हर गांव में 11 गड्ढे की खुदाई करके शौचालय निर्माण करवाया जाए। सम्मान घर सुनने में अच्छा लगता था और इससे महिलाएं अपनापन महसूस करती थीं, क्योंकि यह मामला था भी महिलाओं के मान सम्मान का। संझौली को ओडीएफ बनाने के बाद नोखा, सूर्यपुरा व तिलौथू प्रखंड में यह प्रयास जोरों पर है। ये प्रखंड भी आगामी कुछ दिनों में पूरी तरह से खुले में शौच से मुक्त बन जाएगा और हम इस अनुमंडल को खुले में शौच मुक्त करने के अपने पहल में सफल होगें।”
गंदगी के खिलाफ इस जंग की कहानी फूल कुमारी, सरोज कुमारी, अवधेष और विभेद पासवान जैसे लोगों के बिना अधूरी हैं। हाल में मीडिया की सुर्खियों में रही फूल कुमारी ने जहां शौचालय बनवाने के लिए अपने मंगलसूत्र को गिरवी रखा और एक नई मिसाल पेश की। बाद में रोहतास के जिलाधिकारी ने उसे स्वच्छता अभियान के बाद ब्रांड एंबेसडर बनाया। उदयपुर पंचायत की सरोज कुमारी ने बाहर शौच करने के दौरान सांप काटने से अपने पति के मृत्यु के बाद शौचालय निर्माण के लिए लोगों को प्रेरित करना जीवन का घ्येय बना लिया। वो अपनी कहानी बता कर लोगों से शौचालय बनावाने का आग्रह करती और उन्हें समझाती की अगर वो अपने पति और बच्चे की सलामती चाहती हैं तो अपने घरों में शौचालय बनावाएं। इन नायकों के अतिरिक्त विभेद पासवान जैसे लोक गायक इस मुहिम को जन आंदोलन का रूप देने में महती भूमिका निभा रहे हैं। पासवान, शौचालय निर्माण के महत्व पर गीत लिखकर लोगों के बीच उसे गातें हैं और उन्हें अपने गीत और संगीत के माघ्यम से प्रेरित करते हैं।
सूबे को खुले में शौच से मुक्त करना बिहार सरकार की भी प्राथमिकताओं में शामिल है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के सात निश्चयों में हर घर में शौचालय का निर्माण भी है। यह योजना केंद्र प्रायोजित स्वच्छ भारत मिशन ग्रामीण और राज्य पोषित लोहिया स्वच्छता मिशन के माध्यम से क्रियान्वित की जा रही है। स्वच्छ भारत मिशन में केंद्र सरकार साठ फीसदी राशि उपलब्ध करा रही है, जबकि राज्य सरकार की हिस्सेदारी 40 फीसदी है। बिहार में हाल में ही शौचालय निर्माण के लिए ग्राम विकास विभाग को नोडल विभाग बनाया गया है। जनगणना, 2011 के अनुसार बिहार में कुल 75.8 प्रतिशत घरों में शौचालय नहीं है। साल 2001 की जनगणना के आंकड़ों की तुलना में ऐसे घरों की संख्या में मात्र 3.9 प्रतिशत की ही कमी आई है, जिनमें शौचालय नहीं था। शौचालय की उपलब्धता के मामले में 35राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में बिहार 32वें स्थान पर है। बिहार को खुले में शौच से मुक्त बनाने के लिए लगभग 1.5 करोड़ शौचालयों का निर्माण कराया जाना है।
चंदन शर्मा। धनबाद के निवासी चंदन शर्मा ने कई शहरों में घूम-घूमकर जनता का दर्द समझा और उसे जुबान दी। दैनिक हिंदुस्तान, प्रभात खबर, दैनिक भास्कर, जागरण समूह और राजस्थान पत्रिका में वरिष्ठ संपादकीय भूमिका में रहे। समाज में बदलाव को लेकर फिक्रमंद।