दोस्तों के रेक्मेंडेशन पर समस्तीपुर के खुद्नेश्वर मन्दिर चला ही गया। तकरीबन 3-4 किमी जर्जर सड़क पर चलते हुए वहां जाते वक़्त उम्मीद थी कि खुदा और ईश्वर दोनों के चाहने वाले मिलेंगे। क्योंकि बताया गया था कि उस मन्दिर में महज दस कदम की दूरी पर शिव लिंग और मजार दोनों हैं और यह इस तस्वीर में भी दिख रहा है । मगर वह किसी आम मन्दिर जैसा ही है। और वहां पूजा करने सिर्फ हिन्दू ही पहुँचते हैं। वे जब भोला बाबा को जल फूल चढ़ाते हैं तो इस मजार पर भी पुष्पंजलि अर्पित कर देते हैं। न चादरपोशी होती है, न सूफी संगीत बजते हैं । मुसलमान समुदाय के स्थानीय लोग इस मन्दिर में घूमने फिरने पहुंचते हैं, वे कहते हैं कि हमारे कौम में औरतों की मजार पर इबादत का कोई रिवाज नहीं है।
बहरहाल, मोरवा के, जहां यह मन्दिर है दोनों समुदाय के लोग इस कहानी पर यकीन करते हैं कि सात सौ साल पहले कोई खुदनी बीवी थी, जिन्होंने इस जगह शिव लिंग की तलाश की थी। उस वक़्त उस इलाके में नरहन स्टेट वालों का राज था। उन्होंने खुदाई कर शिवलिंग निकलवाने की कोशिश की। मगर शिवलिंग पूरा बाहर निकला नहीं। लिहाजा उसी जगह उनलोगों ने मन्दिर बनवा दिया। बाद में वहीं खुद्नी बीवी का मजार भी बन गया। फिर दोनों की पूजा होने लगी।
हालांकि हमलोगों ने वहां खुदनी बीवी के वंशजों को तलाशने की कोशिश की, मगर बताया गया कि काफी पहले वे लोग यहां से चले गये। अमूमन इस मन्दिर में ज्यादा लोग नहीं आते, हम जब पहुंचे तो परिसर सुनसान था। मगर वहां शिवरात्रि पर मेला लगता है और खूब भीड़ उमड़ती है। उस मेले के प्रबंध में स्थानीय मुसलमान भी भागीदारी करते हैं। इस मन्दिर के सात आठ साल पहले हुए पुनर्निर्माण में भी स्थानीय मुसलमानों ने चंदा दिया, मगर वे लोग मन्दिर के प्रबंध कमिटी में नहीं हैं।
मन्दिर की कहानी और उस वजह से आसपास के माहौल में हिन्दू मुस्लिम एकता की खुशबू का होना बहुत आकर्षित करता है। मगर सबकुछ लोक कथाओं पर आधारित है। स्थानीय लोगों को इस पर थोड़ा शोध करना चाहिये था। खास कर खुदनी देवी और नरहन स्टेट पर। फिर यह कहानी अधिक पुख्ता होगी। और फिर प्रचार प्रसार के बाद यह एक महत्त्वपूर्ण पर्यटन केंद्र बन सकेगा।