दिल की गांठें खोल रे मनवा

दिल की गांठें खोल रे मनवा

दयाशंकर मिश्र

हर कोई खुद पर मोहित है, मानो सारा संसार उसके लिए धूल है। वह तब तक ऐसा करता है, जब तक धूल के कण उसकी आंखों में पहुंचकर यह नहीं साबित कर देते कि वह कितने शक्तिशाली हैं।

जीवन संवाद- 954

महत्वाकांक्षा का संघर्ष हमें बड़ा करे न करे मन को छोटा ही करता जाता है। ज़ेन फकीर रिंझाई कहते हैं, आकाश को छूने वाले बड़े-बड़े वृक्ष और उसके ठीक पास में इतनी छोटी-छोटी झाड़ियां, मुझे इतने वर्ष हो गए इन वृक्षों के पास रहते कभी मैंने झाड़ियों को यह सोचते नहीं देखा कि वृक्ष बड़े क्यों हैं? और ना कभी मैंने बड़े वृक्षों को अकड़़ते देखा कि यह झाड़ियां छोटी हैं और हम बड़े हैं। उनसे पूछा गया कि इसका राज क्या है. रिंझाई ने कहा, झाड़ियां प्रकृति से झाड़ियां हैं। वृक्ष प्रकृति से वृक्ष हैं। बड़े होने में कोई पद नहीं छोटे होने में कोई पद हीनता नहीं. जो प्रकृति वृक्षों को बड़ा बनाती है वही प्रकृति घास के पौधे को छोटा बनाती है और जरूरी नहीं कि वह जो ऊंचा है हर स्थिति में ऊंचा हो जब तूफान आते हैं तो बड़े वृक्ष नीचे गिर जाते हैं और छोटे पौधे बच जाते हैं!

रिंझाई को समझना इतना सरल नहीं। इसीलिए हमारे संकट बढ़ते ही जा रहे हैं। हर कोई खुद पर मोहित है, मानो सारा संसार उसके लिए धूल है। वह तब तक ऐसा करता है, जब तक धूल के कण उसकी आंखों में पहुंचकर यह नहीं साबित कर देते कि वह कितने शक्तिशाली हैं। रिंझाई की बात कहीं दूर की बात नहीं हमारे सामने आने वाले हर दिन के संकटों की कहानी है। नेपोलियन का किस्सा कहता हूं. इससे मेरी बात अधिक सरलता से स्पष्ट हो जाएगी। नेपोलियन का कद छोटा है. छोटे कद को बड़ा साबित करने के लिए भी महत्वाकांक्षा कई बार बड़ी भूमिका निभाती है। सम्राट होने से शरीर का विन्यास नहीं बदलेगा। एक दिन नेपोलियन लाइब्रेरी से किताब निकाल रहा है, लेकिन अलमारी छोटी है, उसका हाथ नहीं पहुंचता। वहां खड़ा पहरेदार जो कोई सात फीट ऊंचा आदमी था उसने कहा अगर अनुचित न हो तो मैं आपके आगे बढ़कर निकालने की आज्ञा चाहता हूं. अंग्रेजी में उसने कहा, नो वन इज हायर दैन इन योर आर्मी. मुझसे पूछा तुम्हारी सेना में कोई भी नहीं. नेपोलियन ने उसे नाराजगी से देखा और कहा ‘नॉट हायर बट लांगर’. ऊंचा मत कहो, सिर्फ लंबा. तुमसे लंबा फौज में कोई भी नहीं, ऊंचे बहुत हैं ऊंचा तो मैं ही हूं. नेपोलियन को चोट लगनी सहज मालूम होती है. इसलिए उसने तुरंत उसमें सुधार कर दिया. यह नेपोलियन का मन जो ऊंचे और लंबे में अंतर कर रहा है उसकी परिभाषा गढ़ रहा है. उसके पीछे मन की गहरी घाटियां हैं. जिनके कारण जीवन कभी ऊंचे शिखर को उपलब्ध नहीं हो पाता। यह भी संयोग है कि नेपोलियन, हिटलर दोनों बहुत सामान्य कद के हैं! लेकिन सेना नायक हैं। अभूतपूर्व हिंसा के केंद्र में हैं। हिटलर ने तो अपने कद को बड़ा करने के लिए ऐसे ऐसे उपक्रम किए कि मानवता उसके नाम से आज तक कहां पर ही है. अब ज़रा इसे आज के जीवन से जोड़कर देखें. हम सरलता से समझ पाएंगे कि हमारे यहां अफसरों के दिमाग क्यों सातवें आसमान पर रहते हैं।

हमारी व्यवस्था में नेता और अफसर जनता के लिए बने हैं लेकिन वे जनता पर ही राज करते हैं क्योंकि उनके दिमाग में भी यही है कि ऊंचे तो वही है। अपनी बराबरी तो छोड़िए वह हमें ऊंचे वृक्ष के पास पसरी घास तक मानने को तैयार न होंगे। हमारे यहां सामाजिक व्यवस्था में एक व्यवस्था के जाते ही दूसरी व्यवस्था के आने के बाद भी लोगों का व्यवहार और मानस बदला नहीं। इसलिए नहीं बदला क्योंकि मन के भीतर ऊंचे और नीचे का भेद गहरा ही होता जा रहा है। हम भी बदलने की जगह होड़ करने पर दे रहे हैं। एक दूसरे से बदला लेने पर हमारा ध्यान इतना ज्यादा है कि प्रेम और स्नेह के बंधन हम तोड़ते ही जा रहे हैं। यह जो नेपोलियन का वक्तव्य है, वही हम सब का वक्तव्य बन गया है। जब तक हम प्रत्येक को उसके स्वभाव के अनुकूल और मनुष्यता के सांचे से देखना स्वीकार नहीं करेंगे, एक दूसरे के प्रति करुणा का भाव गहरा नहीं होगा. यह जो करुणा और आदर कम होते जा रहे हैं, उनके लिए सबसे जरूरी है कि हम भीतर के द्वार बिना किसी गणना के खोलते चले जाएं।
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दयाशंकर। वरिष्ठ पत्रकार। एनडीटीवी ऑनलाइन और जी ऑनलाइन में वरिष्ठ पदों पर संपादकीय भूमिका का निर्वहन। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र। आप उनसे ईमेल : [email protected] पर संपर्क कर सकते हैं। आपने अवसाद के विरुद्ध डियर जिंदगी के नाम से एक अभियान छेड़ रखा है। संपर्क- डियर जिंदगी (दयाशंकर मिश्र), वास्मे हाउस, प्लाट नं. 4, सेक्टर 16 A, फिल्म सिटी, नोएडा (यूपी