‘संक्राति काल’ में कवि नेमि गाते हैं!

‘संक्राति काल’ में कवि नेमि गाते हैं!

नटरंग प्रतिष्ठान की ओर से तीन दिवसीय नेमि शती कार्यक्रम का दिल्ली में आयोजन।

सत्येंद्र कुमार यादव

अपनी शर्तों पर चलना आसान नहीं होता। सामाजिक मान्यताओं, धारणाओं को तोड़ना सबके बस की बात नहीं होती, लेकिन जो लोग ऐसा करते हैं उनकी जिंदगी आने वाली पीढ़ियों के लिए संदेश होती है। उन्होंने भी अपनी जिंदगी खुद की शर्तों पर जीने का फैसला किया था और इसके लिए घर भी छोड़ दिया, लेकिन जिम्मेदारी से नहीं भागे। अपनी सभी पारिवारिक जिम्मेदारियों को निभाते हुए आने वाली पीढ़ियों के लिए अर्थपूर्ण संबंध कायम रखे और शायद इसी वजह से आज भी तार सप्तक के अग्रदूत, आलोचक, रंगमंच में गंभीर चिंतक नेमिचंद्र जैन जी प्रेरणाश्रोत हैं ।

बंसी कौल के मार्गनिर्देशन में तैयार नाटक- साक्षात्कार अधूरा है का एक दृश्य

17 अगस्त की शाम को अभिमंच, राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय (NSD) के मंच पर नेमि जी की कविताओं और जीवन पर आधारित नाटक ‘साक्षात्कार अधूरा है’ का मंचन किया गया। रंग विदूषक संस्था और बंसी कौल जी के मार्गदर्शन में लेखक पशुपति शर्मा की पटकथा को निर्देशक फ़रीद बज़मी ने मंच पर बेहतर तरीके से उतारा। सह निर्देशन संजय श्रीवास्तव, हर्ष दौण्ड का था। डॉक्टर अंजना पुरी ने नेमि जी की कविताओं को संगीतबद्ध भी किया और उन्हें सुर भी दिए। गायक मंडली में वाणी श्रीवास्तव, वारुणी शर्मा थे। हारमोनियम पर दुर्गेंद्र सिंह केवट, तालवाद्य रामबाबू लिंडोरिया थे । नितिन पाण्डेय, अंबर गुप्ता ने मंच सामग्री की व्यवस्था की, प्रकाश संचालन में घनश्याम गुर्जर ने सहयोग किया। मंच की व्यवस्था विमलेश पटेल ने संभाली और प्रस्तुति व्यवस्थापक नारायण शर्मा थे।

बहुत से लोग नहीं जानते कि नेमिचंद्र जैन कौन थे और उन्होंने ऐसा क्या किया था कि उनको याद किया जाए। मैं भी उनके बारे में नहीं जानता था। किसी का नाम जानना और उसके बारे में जानकारी रखना दोनों में काफी अंतर होता है। मैं सिर्फ नाम से परिचित था लेकिन जब 17 अगस्त, रविवार शाम एनएसडी के अभिमंच में उनकी कविताओं और जीवन पर आधारित नाट्य प्रस्तुति देखी तो मुझे वो एक योद्धा लगे, जो कभी कविताओं से, कभी आलोचक के रूप में तो कभी नाट्य समीक्षक के रूप में संघर्ष करते नजर आए।

नेमि जी का जन्म 16 अगस्त 1919 को हुआ और करीब 16 साल की उम्र में ही उनकी शादी हो गई। उस वक्त उनकी पत्नी रेखा जैन की उम्र महज 12 साल थी। घुंघट प्रथा के दौर में नेमिचंद्र जी इसके सख्त खिलाफ थे, महिलाएं बस घर-गृहस्थी तक सीमित रहें। उन्होंने ना सिर्फ अपनी पत्नी को घुंघट छोड़ने के लिए कहा बल्कि उनके हाथों में किताब रख दी। इस तरह से कुप्रथाओं को चुनौती देने का साहस दिखाया। महिला शिक्षा कितनी जरूरी है, इसकी अहमियत को वचन से नहीं कर्म के जरिए दिखाया।

रंग-विदूषक की प्रस्तुति- साक्षात्कार अधूरा है का एक दृश्य

नेमिचंद्र जैन एक ऐसी शख्सियत रहे जिन्हें आप अलग-अलग क्षेत्रों में अपने नजरिये से देख सकते हैं। हिंदी में ‘तार सप्तक’, ‘एकान्त’, ‘अचानक हम फिर’ के जरिए उनका कवि रूप सामने आया। उपन्यास आलोचना और नाट्यालोचना के क्षेत्र में उन्होंने अपनी तरह का अनूठा काम किया, नाट्य सामग्री के शोध और संरक्षण की दिशा में बड़ी पहल की। बतौर संगठनकर्ता और प्राध्यापक उन्होंने राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय का खाका खींचने और रंककर्म के प्रचार प्रसार के लिए संजीदा प्रयास किये। नटरंग जैसी संस्था की नींव रखी। नेमिचंद्र जैन ने वामपंथी विचारधारा को आत्मसात किया, संगठन में सक्रिय रहे, लेकिन बाद के दिनों में वामपंथ से अलग अपनी सोच को संशोधित-परिवर्धित और विकसित किया।

– सत्येंद्र कुमार यादव, टीवी पत्रकार

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