बिहार में बाढ़ के बीच ‘देवदूतों’ ने ली चमकी प्रभावित परिवारों की सुध

बिहार में बाढ़ के बीच ‘देवदूतों’ ने ली चमकी प्रभावित परिवारों की सुध

आनंद दत्ता
दस जुलाई से जो हमने चमकी बुखार के पीड़ित बच्चों का सर्वेक्षण शुरू किया था, उसका पहला चरण कल खत्म हो गया। इस दौरान हमने कुल 225 पीड़ित बच्चों के परिजनों से मुलाकात की और उसने बात कर इस बीमारी के सामाजिक आर्थिक परिप्रेक्ष्य को समझने की कोशिश की और इस बात की भी पड़ताल की कि इस बीमारी के बाद उनके घर का माहौल कैसा है, जीवित बचे बच्चे किस हाल में हैं, जो गुजर गये उनके परिवार का क्या हाल है। हालांकि हम एक ही चरण में उन सभी 615 परिवारों तक पहुंचना चाहते थे, जो इस बार एसकेएमसीएच-केजरीवाल अस्पताल में भर्ती हुए थे। जिनके चमकी बुखार से पीड़ित होने की पुष्टि स्वास्थ्य विभाग करता है। मगर कई कारणों से हम ऐसा नहीं कर पाये।

सबसे बड़ी वजह यह हुई कि 13 जुलाई को उत्तर बिहार में आयी भीषण बाढ़ ने मुजफ्फरपुर के सात प्रखंडों को चपेट में ले लिया। वहां हम जा नहीं पा रहे थे और वहां के लोग फिलहाल अलग-अलग जगह शरण लिये हुए हैं।  हालांकि यह इकलौती वजह नहीं थी। कई पते अधूरे थे, कुछ लोगों ने फोन नंबर दिये थे मगर उनमें ज्यादातर बंद थे, कई लोग बाहर के इलाकों से आये थे और स्थानीय पते के रूप में उन्होंने मुजफ्फरपुर के अपने संबंधियों का पता लिखा दिया था, कई बच्चे ननिहाल आये थे और वहीं का पता लिखाया था, अब वे अपने घर लौट चुके थे। कई तलाकशुदा और पति से अलग रहने वाली महिलाओं ने अपने पति का नाम और पता लिखवा दिया था। एक मामले में तो ऐसे पिता को खुद मालूम नहीं था कि उनके बच्चे का नाम क्या है, वह बार-बार मां का नाम पूछ रहा था, जो हमारे पास नहीं था। इन वजहों से हमें रोज खूब भटकना पड़ा। यह काम बहुत खर्चीला साबित हुआ।

फाइल फोटो

इसके बावजूद अगर हम 225 बच्चों के परिवारों तक पहुंच गये तो यह भी मुझे कम बड़ी बात नहीं लगती। क्योंकि यह भी अच्छा सैंपल है। कुल बच्चों के एक तिहाई से अधिक। हालांकि बाढ़ के बाद हम एक बार प्रयास और करना चाहते हैं। अगर हमें ऐसे स्थानीय साथियों की मदद मिल जाये जो बाइक से यह काम करने को इच्छुक हों। फोर व्हीलर से समय अधिक लगता है और खर्च काफी बढ़ जाता है। बाइक वाले साथियों को हम ईधन और भोजन उपलब्ध करायेंगे। देखते हैं, कब और कैसे यह होता है। अगर नहीं हुआ तो इन्हीं आंकड़ों के साथ हम सामने आयेंगे, जो हमें इस बीमारी को नये सिरे से समझने में सहायक हो सकता है। 

अब तक का व्यय
परिवहन- क्षेत्र भ्रमण और साथियों का घर से आना-जाना- 95,183.00
साथियों का भोजन- 22576.00 
जिस फ्लैट में ठहरे उसका किराया- 12,000.00
गद्दा और किचेन के बरतनों का किराया- 8550.00
रसोइया और उसके सहायक का मेहनताना- 6300.00
पंखा, आइना, बोतल, चार्जिंग कोड वगैरह- 5664.00
विविध व्यय- फोटोकॉपी व अन्य- 2161.00
कुल- 152434.00
बचे हुए सामान में से कुछ मैंने खरीद लिया- – 2700.00
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कुल व्यय- 149,734.00
इससे पहले जब हमने 3.54 लाख बचे होने की सूचना दी थी। तब से 
जागरूकता के काम में व्यय हुआ- 7500.00
एसकेएमसीएच में एक प्यूरीफायर लगा- 8300.00
एसकेएमसीएच में भोजन व्यवस्था- 5000.00

कुल व्यय- 20,800.00
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हमारे पास बची राशि- 1,84,934.00

इसका हिसाब भी हम खर्च के बाद इसी तरह देंगे। क्योंकि जिन लोगों ने अपनी मेहनत की आय से चंदा दिया है, उन्हें हिसाब बताना हमारा कर्तव्य है। और हां, कृपया ऐसे मौके पर पांच हजार, दस हजार का चंदा न दें। एक हजार का चंदा ठीक है।