सत्येंद्र कुमार यादव अपनी शर्तों पर चलना आसान नहीं होता। सामाजिक मान्यताओं, धारणाओं को तोड़ना सबके बस की बात नहीं
Category: परब-त्योहार
रिवायत- राजधानी में लोक-उत्सव की ‘सर्जिकल स्ट्राइक’
पशुपति शर्मा आप सपने देखें तो वो सच भी होते हैं। इसी विश्वास के साथ दिल्ली में लोक कलाओं के
शादी-विवाह में मैथिल संस्कृति की झलक
अरविंद दास वर्षों पहले किसी पत्रिका में एक लेख पढ़ा था- शादी हो तो मिथिला में। जाहिर है, इस लेख
विएना ओपेरा हाउस की वो शाम
सच्चिदानंद जोशी के फेसबुक वॉल से साभार हमारे रंगकर्म के गुरु प्रभात दा गांगुली जब मूड में होते थे तो
‘अच्छे दिन’ वाली सरकार का 5 साल बाद ‘साफ नीयत’ का रोना
राकेश कायस्थ चुनावी नारा राजनीतिक दलों के लिए एक भावनात्मक चीज़ भी होता है। नारा यानी वह सबसे अहम बात
बावरवस्ती की महिलाओं के साथ वूमन्स डे की यादें
शिरीष खरे शुक्रवार की तारीख क्यों खास थी यह मुझे पता भी न थी, लेकिन अब यह तारीख फिर भूल
जंजीरों में जकड़े ‘समाजवाद’ की जीत की कहानी
ब्रह्मानंद ठाकुर जार्ज फर्नान्डिस एक ऐसा नाम जो 60-70 के दशक में मजदूरों की बुलंद आवाज बनकर उभरा और देखते
ये कोई रियलिटी शो नहीं, संघीय ढांचे का प्रतीक है !
राकेश कायस्थ राजपथ की पूरी महफिल इस बार अकेले बापू ने लूट ली। अरुणाचल से लेकर गोवा तक शायद कोई
गणतंत्र बड़ा हुआ, लेकिन हमारी सोच छोटी
ब्रह्मानंद ठाकुर आजादी के 5 साल बाद और भारत को गणतंत्र घोषित होने के दो साल बाद 1952 में मेरा
भव्य कुंभ में योगी की अद्भुत तस्वीर
साइबेरियन पक्षियों को दाना खिलाते सीएम योगी आदित्यनाथ । कुंभ दौरे के दौरान योगी ने नाव से जायजा लिया और