- मधुबनी जिले की एक महिला पेट दर्द से काफी परेशान थी. स्थानीय डॉक्टरों से दिखाया तो बताया गया कि यूटरस में कुछ है. उसे पटना रेफर कर दिया गया. यहां जांच में पता चला कि उसके यूटरस में कनखजूरे का एक बड़ा गुच्छा है. डॉक्टरों ने ऑपरेट करके उसे बाहर निकाला. पूछताछ के दौरान महिला ने बताया कि वह माहवारी में इस्तेमाल किया जाने वाला कपड़ा गोबर के गोयठे पर सुखाती थी. डॉक्टरों की राय बनी की संभवतः उसे कपड़े के जरिये कनखजूरा उस महिला की योनी में चला गया.
- पटना के मसौढ़ी की एक महिला माहवारी के दौरान कपड़े बदलने का काम भी उसी वक्त करती थी जब वह रात में शौच के लिए खेतों में जाती थी. उसके घर में न स्नानगृह है और न ही शौचालय. एक दिन माहवारी वाला कपड़ा बदलते वक्त अंधेरे में कोई कीड़ा उसकी योनी में प्रवेश कर गया. फिर अगले छह माह तक उसे माहवारीनहीं हुई. पहले तो डॉक्टरों ने उसके गर्भवती होने का अंदेशा जताया. मगर अल्ट्रासाउंड में कुछ नहीं निकला तो उसे भी पटना ले जाना पड़ा. वहां ऑपरेशन करके कीड़े को बाहर निकाला गया. इस दौरान वह बुरी तरह एनीमिक हो गयी थी. दो साल पहले हुई उस घटना उक्त महिला आज तक उबर नहीं पायी है. अभी भी वह बिस्तर पर है.
इन कहानियों से समझ आता है कि माहवारी के मसले पर बिहार का समाज आज भी किस दौर में जी रहा है और महिलाएं किन-किन परेशानियों का सामना कर रही हैं. गरीबी और जागरुकता के अभाव में ज्यादातर महिलाएं माहवारी के दौरान खून सोखने के लिए गंदे कपड़े का इस्तेमाल करती हैं. लोकलाज की वजह से उन्हें छिपा कर रखती हैं, जिससे वह पूरी तरह रोगमुक्त नहीं हो पाता. एक ही कपड़े को बार-बार इस्तेमाल करती हैं. गरीब तबके की महिलाओं के पास पैड बदलने के लिए जगह नहीं है. कई महिलाओं के पास तो सूती कपड़ा भी उपलब्ध नहीं होता, ऐसे में वे सिंथेटिक कपड़े का भी इस्तेमाल करती हैं.
बिहार में माहवारी से जुड़े ये आंकड़े आपको परेशान कर सकते हैं96 फीसदी किशोरियों ने माहवारी के दौरान कभी न कभी पुराने कपड़े का इस्तेमाल किया है.(आंकड़े-यूनिसेफ)17 फीसदी किशोरियां ने ही सेनेटरी नेपकिन का इस्तेमाल किया है. (आंकड़े-यूनिसेफ)28 फीसदी किशोरियां इस्तेमाल से पहले पुराने कपड़े को साफ नहीं करतीं. (आंकड़े-यूनिसेफ)75 फीसदी लड़कियों को नहीं मालूम माहवारी में इस्तेमाल खून सोखने वाले कपड़े को दुबारा इस्तेमाल करने से पहले अच्छी तरह धोकर सुखाना चाहिये. (आंकड़े-यूनिसेफ)83 फीसदी महिलाएं माहवारी के एक चक्र में एक ही कपड़े को तीन बार इस्तेमाल करती हैं. (आंकड़े-सेवा)38 फीसदी महिलाओं के पास इस दौरान कपड़े बदलने के लिए बाथरूम या टॉयलेट नहीं है.(आंकड़े-सेवा)20 फीसदी महिलाएं दिन में दो बार कपड़े को नहीं बदलतीं. (आंकड़े-सेवा)59 फीसदी किशोरियां माहवारी के दौरान स्कूल नहीं जातीं. (आंकड़े-यूनिसेफ)15 फीसदी किशोरियों ने सेनेटरी नेपकिन का नाम नहीं सुना है. (आंकड़े-यूनिसेफ)85 फीसदी लड़कियां स्कूलों में पैड नहीं बदल पातीं क्योंकि वहां टॉयलेट नहीं है.(आंकड़े-सेवा)68 फीसदी महिलाओं के पास साबुन या सर्फ की कमी है, इसलिए वे माहवारी वाला कपड़ा धो नहीं पातीं. (आंकड़े-सेवा)
वहीं एक अन्य संस्था सेवा द्वारा कराये गये सर्वे के मुताबिक 83 फीसदी महिलाएं माहवारी के एक चक्र में एक ही कपड़े को तीन बार इस्तेमाल करती हैं. 38 फीसदी महिलाओं के पास इस दौरान कपड़े बदलने के लिए निजी स्थान नहीं है. और 20 फीसदी महिलाएं दिन में दो बार कपड़े को नहीं बदलतीं.
माहवारी से जुड़ी भ्रांतियां जो सेहत को नुकसान पहुंचाती हैं
1. महिलाएं मानती हैं कि माहवारी वाला कपड़ा धूप में सुखाने से बचना चाहिये, अगर पुरुष इस कपड़े को देख ले तो महिला बांझ हो जाती है.2. माना जाता है कि इस कपड़े को बहते पानी में नहीं धोना चाहिये. इससे ब्लीडिंग बढ़ जाता है और माहवारी के दौरान तेज दर्द होता है.3. इस दौरान नेल पालिस और अचार को नहीं छूना चाहिये, नेल पालिस सूख जाता है और अचार में फफूंद लग जाता है. पौधों को पानी नहीं देना चाहिये, पौधा मुरझा जाता है.4. पूजा पाठ और खाना पकाने पर तो पहले से ही रोक रहती है, बाल धोने, बांधने और कई समाज में कंघी करने की भी मनाही रहती है.
शाहीना कहती हैं कि बिहार में फिलहाल तो यह सोचना मुमकिन ही नहीं है कि सभी महिलाएं पैड का इस्तेमाल करे. क्योंकि अगर महीने में एक पैड भी खरीदा जाये तो बजट 300 रुपये तक चला जाता है. एक गरीब परिवार के लिए यह भी एक बड़ी रकम है. इसके साथ ही इसमें एक तकनीकी परेशानी यह भी है कि ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादातर महिलाएं अंडरवियर का इस्तेमाल नहीं करतीं, इसलिए वे बाजार के पैड के साथ खुद को कंफर्टेबल नहीं पातीं. उन्हें कपड़े का इस्तेमाल करना ही ठीक लगता है. मगर हाल के वर्षों में जिस तरह बाजार में सस्ते सिंथेटिक कपड़ों की बाढ़ आ गयी है, लोगों के घरों में अब पुराना सूती का कपड़ा कम मिलता है. गरीब महिलाएं अब सिंथेटिक साड़ियां ही पहनती हैं, क्योंकि ये सस्ते और टिकाऊ होते हैं.
पुराने गंदे कपड़े के इस्तेमाल से रहता है बांझपन का खतरापुराने, गंदे और दुबारा इस्तेमाल किये गये कपड़े को इस्तेमाल करने से कई तरह की स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां हो सकती हैं. जैसे यूरिन में इनफेक्शन, प्राइवेट पार्ट में इन्फेक्शन. अगर इंफेक्शन ऊपर की तरफ बढ़ता है तो इसकी वजह बांझपन का खतरा भी हो सकता है. इसलिए माहवारी के दौरान सेनेटरी नेपकीन ही इस्तेमाल किया जाना चाहिये. बाजार में हर तरह के नैपकीन उपलब्ध हैं. जो इन्हें नहीं खरीद सकते उनकी मदद सरकार और संस्थाओं को करनी चाहिये. क्योंकि सेहत के नजरिये से यही एकमात्र विकल्प है. आकस्मिक स्थिति में अगर कपड़ा इस्तेमाल करना पड़े तो वह साफ-सुथरा और नरम होना चाहिये, अगर उपलब्ध हो तो रुई का भी इस्तेमाल करना चाहिये. अगर कपड़े को दुबारा इस्तेमाल करना हो तो उसे बहुत बढिया से धोना, तेज धूप में सुखाना और हो सके तो आयरन भी करना चाहिये.डॉ. मीना सावंतस्त्री एवं प्रसूती रोग विशेषज्ञ, कुर्जी होली फैमिली अस्पताल, पटना
मन-मस्तिष्क को हिला देने वाला सच.. इसके सामने जीडीपी ग्रोथ की रफ्तार या 50 और 60 बिलियन डॉलर के विदेशी निवेश की हकीकत या फिर 30 हज़ारी सेंसेक्स सब बेमानी है.. 70 सालों से हम बुनियादी ज़रूरतों को पूरा करने वाले विकास का सियासी नारा लगा रहे हैं.. सरकारों को सोचना चाहिए कि भला इससे ज़्यादा बुनियादी ज़रुरत और क्या हो सकती है ?.. जो अबतक अधूरी है…