बिहार में बाढ़ की ‘बांधलीला’

बिहार में बाढ़ की ‘बांधलीला’

फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार
फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार

पुष्य मित्र

बिहार में हर साल बाढ़ कहर बनकर टूटती है । लाखों लोग बेघर होते हैं और हजारों करोड़ का नुकसान होता है । पटना से लेकर दिल्ली तक हो हल्ला मचता है और मॉनसून खत्म होते ही आपदा विसरा दी जाती है । ये सबकुछ हर साल होता है और उससे निपटने के लिए हर बार नए तटबंध खड़े कर दिए जाते हैं । लेकिन शायद ही किसी ने सोचा होगा कि बाढ़ से निपटने के लिए जो उपाय किए गए वे ही बर्बादी का कारण बन रहे हैं । आज़ादी के बाद के आंकड़ों पर गौर करे तो पता चलता है कि कि तटबंधों के निर्माण से बाढ़ की समस्या घटने की बजाय उसी अनुपात में बढ़ी है ।

जैसे-जैसे तटबंध बढ़े, बाढ़ का प्रकोप भी बढ़ता गया

bihar-river-data-1इसको समझने के लिए हम आपको करीब 6 दशक पहले ले चलते हैं यानी ये बात 1954 की है । 50 के दशक में जब बिहार में तटबंधों की लंबाई महज 160 किमी थी तब सूबे का एक चौथाई इलाका ही बाढ़ के प्रभावित होता था । आज की तारीख में राज्य की सभी प्रमुख नदियों पर उनकी लंबाई से ज्यादा बांध बन चुके हैं फिर भी राज्य का तीन चौथाई इलाका बाढ़ की आगोश में समा जाता है । 1954 में बिहार के कुल भू-क्षेत्र 94.16 लाख हेक्टेयर में सिर्फ 25 लाख हेक्टेयर जमीन ही बाढ़ से प्रभावित होती थी । उस समय कोसी नदी के किनारे तटबंध बनाकर पहली दफा इस तरीके से बाढ़ की आपदा को रोकने का विचार किया गया। कोसी के बाद राज्य की दूसरी नदियों पर भी तटबंध बने । हालात ये हो गये कि 1994 तक राज्य की नदियों पर 3454 किमी तटबंध का निर्माण हो गया। इस लिहाज से 90 के दशक में बिहार को बाढ़ मुक्त घोषित कर देना चाहिए था लेकिन ऐसा हुआ नहीं क्योंकि 50 के दशक में जो 25 लाख हेक्टेयर 68.8 लाख हेक्टेयर पहुंच गया । जानकारों के मुताबिक ये आंकड़ा आज की तारीख में 73 लाख हेक्टेयर तक पहुंच गया है, जो राज्य की कुल जमीन का तीन चौथाई हिस्सा है। इस आंकड़े में 2008 में आयी कोसी की बाढ़ की वजह से 4.153 लाख हेक्टेयर के नये इलाके को भी जोड़ा गया है ।

नदी बेसिन के स्तर पर तटबंध और बाढ़ का प्रकोप

नोट- 2008 की कोसी बाढ़ के प्रभावित 4.153 लाख हेक्टेयर के आंकड़े शामिल नहीं हैं । सभी आंकड़े जल संसाधन विभाग की वेबसाइट से लिए गए हैं ।
नोट- 2008 की कोसी बाढ़ के प्रभावित 4.153 लाख हेक्टेयर के आंकड़े शामिल नहीं हैं । सभी आंकड़े जल संसाधन विभाग की वेबसाइट से लिए गए हैं ।

तटबंधों से नुकसान के कारण ?

सरहसा के सलखुआ अंचल की तस्वीर। फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार।
सरहसा के सलखुआ अंचल की तस्वीर। फोटो- अजय कुमार कोसी बिहार।

आखिर तटबंध कैसे बिहार की बर्बादी का कारण बन रहे हैं इस सवाल का जवाब तलाशने के लिए जब हमने नदियों के विशेषज्ञ दिनेश कुमार मिश्र से बात की उन्होंने बताया कि तटबंधों की वजह से तिहरा नुकसान हुआ।

  • पहला नुकसान ये हुआ कि धारा अवरुद्ध होने की वजह से नदियां आक्रमक हो गयीं और वे तटबंध तोड़ कर न सिर्फ नये इलाकों में फैलने लगीं बल्कि ज्यादा नुकसान करने लगीं।
  • दूसरा नुकसान यह हुआ कि सिल्ट को फैलने की जगह नहीं मिली और नदियां गाद से भर गयीं।
  • तीसरा नुकसान आर्थिक नुकसान हुआ। आज की तारीख में हर साल जल संसाधन विभाग इन तटबंधों के रखरखाव पर सैकड़ों करोड़ की राशि खर्च करता है। एक आंकड़े के मुताबिक तटबंधों की सुरक्षा और मरम्मत के नाम पर हर साल 600 करोड़ से अधिक की राशि खर्च भी की जाती है।

महानंदा समेत कई नदियों में बनने जा रहे तटबंध

आंकड़ों की समीक्षा की बजाय राज्य का जल संसाधन विभाग तटबंधों को ही बाढ़ का एकमात्र इलाज मानता है। विभाग की वेबसाइट पर मौजूद जानकारी के मुताबिक 2017 तक 1550 किमी नये तटबंध का निर्माण किया जाएगा । जिसके बनने से 19.99 लाख हेक्टेयर क्षेत्र को बाढ़ से सुरक्षित करने का दावा किया जा रहा है । योजना के मुताबिक महानंदा नदी पर 1196 किमी तटबंध बनना है जबकि बागमती, अवधारा, चंदन और सिकरहना नदियों के किनारे भी तटबंध बनना है ।

 ध्यान देने वाली बात ये है कि राज्य में बहने वाली नदियों की कुल लंबाई 2943 किमी है, जबकि 3731 किमी लंबे तटबंध का निर्माण हो चुका है। अगर विभाग 2017 तक अपने लक्ष्य को रहता है तो तटबंधों की लंबाई बढ़कर 5287.7 किमी हो जायेगी, जो नदियों की कुल लंबाई की लगभग दोगुनी होगी । अगर हम विभाग के दावे पर भरोसा करें तो भी बिहार की आधी जमीन को बाढ़ की त्रासदी झेलनी पड़ेगी । फिर सरकार क्या करेगी ।

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2016 में मेंटेनेंस पर हो चुका है 636 करोड़ खर्च

राज्य जल संसाधन विभाग ने इस साल अब तक तटबंधों के रख रखाव पर 636 करोड़ रुपये खर्च किए हैं जो पिछले साल के मुकाबले 200 करोड़ अधिक है फिर भी इस साल राज्य को बाढ़ की भीषण तबाही को झेलना पड़ा । हैरानी की बात ये है कि तटबंध की सुरक्षा के नाम पर सैकड़ों करोड़ खर्च करने के बावजूद 1987 से लेकर 2014 तक ये तटबंध 378 बार टूट चुके हैं बावजूद इसके विभाग न सिर्फ रखरखाव पर बल्कि निर्माण पर भी हर साल अरबों का खर्च करने में नहीं हिचकता है ।

PUSHYA PROFILE-1


पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।