इतनी शक्ति हमें देना दादा कि मन का विश्वास कमज़ोर हो ना!

इतनी शक्ति हमें देना दादा कि मन का विश्वास कमज़ोर हो ना!

पशुपति शर्मा के फेसबुक वॉल से साभार

2 अप्रैल 2022. नवरात्र, गुड़ी पड़वा, पाक माह रमज़ान की शुरुआत और इन उत्सवों के बीच एक और उत्सव.
भोपाल के बेरखड़ी में बंसी दा की स्मृतियों और उनके सपनों को ज़िंदा रखने के संकल्प का शिलान्यास. बंसी दा का जैसा मन था, उसी मन की तरह चिलचिलाती गर्मी के बीच रंग-विदूषक के नए पुराने साथी एक-एक कर जमा होते गए. भोपाल के कई बड़े संस्कृतिकर्मी, रंगकर्मी, साहित्यकार, स्वप्नदर्शी, रचनात्मक ऊर्जा से सराबोर लोगों के पाँव भी इस ज़मीन पर पड़े. देश के अलग-अलग शहरों से कुछ साथी भी इस बेहद आत्मीय आयोजन में शामिल होने पहुँचे. सामूहिकता और उत्सवधर्मिता दोनों इस आँगन में महसूस होती रही.

बंसी कौल फ़ाउंडेशन फ़ॉर थियेटर प्रैक्टिस, रिसर्च एंड एजुकेशन के निर्माण कार्य के लिए शिलान्यास किया गया. ये इत्तफाक ही रहा कि धरती से संस्थान के फलने-फूलने का आशीर्वाद माँगने के लिए अग्रिम पंक्ति पर नारी शक्ति ही मौजूद थीं. बंसी दा और भोपाल के रंगकर्मियों ने 1984 में रंग-विदूषक की शुरुआत की थी. क़रीब चार दशकों का रंगकर्म, संस्कृतिकर्म इस संस्था के साथ जुड़ा है. साल 2021 में बंसी दा की इस दुनिया से रुखसती ने संस्था के लोगों को भावनात्मक रूप से तोड़ दिया लेकिन 2 अप्रैल के इस जमावड़े के ज़रिए बंसी दा ने इस ऊर्जा को फिर से एकीकृत कर दिया, उम्मीदों से भर दिया, नई संभावनाओं और संकल्पों से सराबोर कर दिया.

रंग विदूषक का दारोमदार वरिष्ठता के क्रम में जिन मज़बूत कंधों पर है, वो अब आगे के सफ़र की तैयारियों में जुट गए हैं। योजनाएँ बनाने में जुट गए हैं। बंसी कौल फ़ाउंडेशन की इस छतरी के नीचे अब रंग विदूषक और BAZM Foundation (Bansi-Anjana Zoon Maal Foundation) ने मिलकर कई सारे सपनों का शिलान्यास कर दिया है. इस कैंपस में ही एक all inclusion school भी चल रहा है, जो बंसी दा के ऑल इन्क्लुज़न वाले विचारों की गवाही देता है. आने वाले दिनों में इस प्रांगण में एक रिसर्च सेंटर होगा, पुस्तकालय होगा, प्रदर्शन के लिए ऑडिटोरियम होगा, रिहर्सल के लिए स्पेस होगा, बंसी दा के रंग प्रयोगों की प्रदर्शनी होगी. एक तरह से कलाकारों का ये अपना आंगन होगा. लोक कलाकारों से लेकर आधुनिक रंगमंच तक, जैसे दादा ने एक सेतु तैयार किया था, उस सेतु को कायम रखने की कोशिश होगी. एक बरगद का पेड़ भी साथियों ने आंगन में लगाया है, ये बरगद विशालकाय बने, इसकी शाखाएं फैलें, जड़ें मजबूत हों, इसकी हरीतिमा हमें शीतलता दे, मजबूती दे, ऐसी दुआएं हर मौजूद साथी करता रहा.

इस आंगन को गुलजार करने के लिए सभी की दुआएं चाहिए, स्नेह चाहिए, मार्गदर्शन चाहिए. इस यज्ञ को संपन्न करने के लिए थोड़ी-थोड़ी आहुति चाहिए.संस्था के वरिष्ठ साथियों में कई चेहरे हैं, जिन पर सबकी निगाहें टिकी हैं. दादा ने फूलों की एक बगिया तो अलग-अलग दिलों में लगा दी है, अलग-अलग शहरों में लगा दी है, इन फूलों को एक सूत्र में पिरोए रखने का जिम्मा बड़ा है और ये एक बड़ा इम्तिहान भी है. ये इम्तिहान हम सबका है जो दादा से वाक़ई प्यार करते हैं, उनकी यादों को ज़िंदा रखना चाहते हैं, थोड़े-थोड़े बंसी दा जो हमारे हिस्से आए हैं, उन्हें सींचने का संकल्प थोड़ा मज़बूत करना है. हमारे आपके बीच जो स्नेह का पौधा है, विश्वास का पौधा है, प्यार का पौधा है, भाईचारे का पौधा है, रंगकर्म का पौधा है… उस पौधे को हर दिन सींचना है. इतनी शक्ति हमें देना दादा कि मन का विश्वास कमज़ोर हो ना… .

-पशुपति शर्मा, 4 अप्रैल, 2022