ब्रह्मानंद ठाकुर का जन्म बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में जनवरी 1952 में निम्न मध्यम वर्ग परिवार में हुआ । पढ़ने के साथ पत्र-पत्रिकाओं में लिखने का शौक बचपन से रहा है । नौकरी के साथ-साथ 1973 से मीडिया से जुड़े । जेपी आंदोलन के गवाह रहे ब्रह्मानंद ठाकुर की आंदोलन से जुड़ी तमाम रिपोर्ट कई अखबारों में प्रकाशित हुई । पाटलिपुत्र टाइम्स, नवभारत टाइम्स , आर्यावर्त और आज जैसे तत्कालीन प्रतिष्ठित अखबारों में भी अपनी कलम का लोहा मनवाया। लगातार 30 साल तक अखबारों में लेखन का काम किया हालांकि साल 2004 में जब स्कूल के प्रभारी प्रधानाध्यापक की जिम्मेदारी मिली तो पत्र पत्रिकाओं के लिए ज्यादा वक्त नहीं दे पाये ।
अप्रैल 2017 के अतिथि संपादक
मई 2012 में सेविनिवृत होने के बाद बाद- ‘रगड़ने दे वतन की रेत एंड़ियां मुझको, मुझे यकीन है पानी यहीं से निकलेगा’ उक्ति को अपने जीवन का आदर्श वाक्य मानते हुए एक बार फिर लेखन कार्य में सक्रिय हो गए । सेवानिवृत्ति के बाद पत्नी साथ छोड़ गईं। ब्रह्मानंद ठाकुर का पूरा जीवन संघर्ष भरा रहा है । महज तीन साल की उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया। ब्रह्मानंद ठाकुर के पिता रामचंद्र ठाकुर भर्नाकुलर से मिडल पास थे। पिता के निधन के एक हफ्ते के भीतर ही मां भी साथ छोड़ गईं। चाचा ने ब्रह्मानंद का पालन-पोषण किया । दादी ने कभी मां की कमी नहीं खलने दी। साहित्य के प्रति रुझान मां की कविता, कहानी और पौराणिक गाथा से पैदा हुआ ।
प्रारम्भिक शिक्षा अपने गांव के बेसिक स्कूल से हासिल की और मैट्रिक गांव के ही हाई स्कूल से पास किया। मैट्रिक की पढ़ाई के दौरान शादी के बंधन में बंधे तो बूढ़ी दादी का हाथ बंटाने के लिए घर में एक और महिला का साथ हो गय । पारिवारिक जिम्मेदारियों की वजह से आगे की पढ़ाई कर पाना मुश्किल हो रहा था लिहाजा मैट्रिक के बाद पढ़ाई बीच में छोड़नी पड़ी। उस समय कुशवाहा कांत, गुलशन नंदा और प्यारेलाल आवारा जैसे लेखकों के उपन्यासों का बड़ा क्रेज था। पढ़ाई छोड़ दी लेकिन पढ़ाना कभी बंद नहीं किया। 1970-72 में शिक्षक प्रशिक्षण हासिल किया और 1973 में औराई के एक स्कूल में नौकरी लग गई । हालांकि पढ़ने की ललक बरकरार रही यही वजह रही कि शिक्षक बनने के बाद इंटर, बीए और एमए की डिग्री हासिल की । ब्रह्मानंदजी को किताबों का काफी शौक है। उन्होंने अपनी खुद की लाइब्रेरी बना रखी है और उनके पास साढ सात सौ से ज्यादा पुस्तकों का निजी संग्रह है।
आपने कभी हार नहीं मानी और समाजसेवा के कार्य में अनवरत जुड़े हुए हैं । 65 साल की उम्र में युवाओं जैसा जोश । बदलाव की टीम का हिस्सा बनकर आपने हमारा मान बढ़ाया । लिखना ही अापका सम्बल है। कभी कभी बीते दिनों , बिछुड़े मित्रों की याद में खो जाते हैं ब्रह्मानंद ठाकुर। फिर यही सोच कर संतोष कर लेते हैं कि बीता न बहुर कर आता है।