चित्रांगदा, उलुपि और अर्जुन की प्रणय कथा

चित्रांगदा, उलुपि और अर्जुन की प्रणय कथा

पुष्यमित्र

arjun-loveपूरा महाभारत जितना दिलचस्प है, उससे अधिक दिलचस्प है अर्जुन की इन दो पत्नियों की कथा। मुझे लगता है ज्यादातर लोग इस मिथकीय कथा से अवगत नहीं होंगे। खुद मुझे भी दो-तीन दिन पहले इस कथा की गंध से सुवासित होने का मौका मिला है। तमिलनाडु में एक देव हैं, जिन्हें इरावण या अरावण कह कर पुकारा जाता है। कथा है कि महाभारत युद्ध से पहले जीत की आकांक्षा से इरावण की बलि दी गयी थी। यह बलि पांडवों की तरफ से दी गयी थी, हालांकि दुर्योधन ने भी इरावण से संपर्क किया था कि वह उनकी जीत के लिए देवी काली के आगे आत्मोत्सर्ग करे। मगर कृष्ण की चतुराई की वजह से इरावण पांडवों के लिए खुद का बलिदान देने के लिए तैयार हो गया। यह इरावण नाग कन्या उलुपि और अर्जुन का पुत्र था।

अपने बड़े भाई युधिष्ठिर और द्रोपदी के शयनकक्ष में प्रवेश करने की सजा के तौर पर जब अर्जुन वनवास के लिए निकले थे तो एक रोज गंगा स्नान के दौरान उनकी मुलाकात उलुपि से हुई थी। इसे मुलाकात कहना ठीक नहीं होगा। दरअसल अर्जुन के रूप पर मोहित होकर नाग कन्या ने उसे पाश में बांध लिया था और गंगा के नीचे स्थित नागलोक में ले गयी थी। वहां उन्होंने अर्जुन से प्रणय निवेदन किया। पहले तो अर्जुन ने इनकार कर दिया, मगर बाद में वे मान गये। वहीं दोनों का विवाह हुआ, संबंध बने और अर्जुन फिर आगे निकल गये।

तो जब महाभारत का युद्ध होने वाला था अर्जुन की अपने पुत्र इरावण से मुलाकात हुई जो उलुपि के साथ संभोग से पैदा हुआ था। दरअसल युद्ध से पूर्व दोनों पक्षों को ज्ञात हो गया था कि एक खास मुहूर्त में शल्य, अर्जुन, कृष्ण या इरावण में से किसी की भी बलि चढ़ाई जाये तो संबंधित पक्ष को युद्ध में जीत मिलेगी। पहले तीनों लोग तो युद्ध में ही शामिल थे, इसलिए दोनों पक्ष इरावण को आत्मोत्सर्ग के लिए मनाने में जुट गये। जब इरावण को पता चला कि अर्जुन उसके पिता हैं तो स्वाभाविक रूप से वह पांडवों के लिए बलिदान देने को तैयार हो गया।

मगर उसकी कुछ शर्तें थी, पहली यह कि उसका विवाह कराया जाये। दूसरी यह कि वह महाभारत युद्ध को देखना चाहता है। उसके विवाह के बारे में दो बातें हैं, एक तो यह कि कृष्ण ने मोहिनी का रूप धारण कर उससे विवाह किया, दूसरी यह कि उसका विवाह कृष्ण की पुत्री तितिसारी से हुआ। दरअसल तमिलनाडु के किन्नर इरावण और मोहिनी के विवाह की याद में 18 दिनों का जश्न मनाते हैं, क्योंकि मोहिनी रूपी कृष्ण को वे किन्नर देव मानते हैं।

बहरहाल, विवाह के बाद उसने खुद को मां काली के आगे बलिदान दे दिया। फिर उसके सिर को ऐसी जगह पर रखा गया जहां से वह पूरी महाभारत की कथा देख सके। इस बीच इस प्रसंग की जानकारी जब उलुपि को हुई तो वह काफी नाराज हुई और कहते हैं कि उसने तय कर लिया कि वह अर्जुन से अपने पुत्र की मौत का बदला लेगी। इसके बाद वह अर्जुन की दूसरी पत्नी चित्रांगदा के पास पहुंची और उससे उसका पुत्र बब्रुवाहन मांग लिया।

अब चित्रांगदा की कथा सुनिये। चित्रांगदा मणिपुर की राजकुमारी थी, जिसका लालन-पालन पुरुष के रूप में हुआ था। उसी वनवास के दौरान जब अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो चित्रांगदा उन्हें देख कर मोहित हो गयीं। मगर किसी ने उनसे कह दिया कि तुम्हारे अंदर स्त्रैण गुण नहीं है, इसलिए अर्जुन तुम्हें स्वीकार नहीं करेंगे। ऐसे में खुद को स्त्रैण गुण से परिपूर्ण बनाने के लिए चित्रांगदा ने मदन के आगे तपस्या की और स्त्रियोचित रूप और गुण हासिल किया।

uloopi-and-arjunaइस बीच अर्जुन को चित्रांगदा के बारे में पता चल गया था कि मणिपुर की राजकुमारी पुरुषों जैसी है, वह तीर-तलवार चलाने में निपुण है और घुड़सवारी भी करती है। ऐसी स्त्री की कल्पना से ही वह उस पर मोहित हो गया था। जब स्त्रियोचित गुणों के साथ अर्जुन से प्रणय निवेदन करने चित्रांगदा उसके पास पहुंची तो अर्जुन ने उसे बताया कि वह तो तीर-तलवार चलाने और घुड़सवारी करने वाली मणिपुर की राजकुमारी पर मोहित है। ऐसे में चित्रांगदा फिर से मदन के पास गयी और अपना पुराना रूप हासिल किया। फिर दोनों का विवाह हुआ। उन्हें एक पुत्र हुआ, जिसका नाम बब्रुवाहन रखा गया। अपने प्रतिशोध को पूरा करने के लिए उलुपि इसी बब्रुवाहन को चित्रांगदा से मांग करने अपने साथ ले आयी थी। वह उसे अर्जुन के खिलाफ भड़काया करती थी। महाभारत के बाद जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया तो उलुपि के कहने पर बब्रुवाहन ने यज्ञ का घोड़ा रोक लिया। फिर जबरदस्त युद्ध हुआ और बब्रुवाहन ने अपने पिता अर्जुन को मार दिया।

इस बात की सूचना जब चित्रांगदा को मिली तो वह भागी-भागी आयी और उसने उलुपि को भला बुरा कहना शुरू कर दिया। वह कहने लगी कि इसी काम के लिए उसने मेरा बेटा लिया था। बेटे के हाथों पिता की हत्या करवा दी। यह सब सुन कर उलुपि गंगा के अंदर चली गयी और नागलोक से मणि लेकर आयी। उसने मणि अर्जुन के छाती पर रख दिया और अर्जुन फिर से जीवित हो गया। उलुपि ने कहा कि उसका मकसद सिर्फ अर्जुन को मृत्यु का अहसास दिलाना था।

इस बारे में एक और कथा है। कहा जाता है कि जब अर्जुन ने भीष्म पितामह को शरशैय्या पर सोने के लिए विवश कर दिया तो भीष्म के भाइयों बसुओं ने अर्जुन को शाप दिया था कि उनकी हत्या उनके ही पुत्र के हाथों होगी और फिर उसे मणि के जरिये ही जीवन मिलेगा। कहते हैं यह जानकारी उलुपि को भी थी, इसलिए उसने ऐसा किया। बहरहाल सच जो भी हो, ये दोनों कथाएं काफी भावोद्वेग वाली हैं। महाकवि रविंद्रनाथ ठाकुर ने चित्रांगदा के जीवन पर एक काव्य रचना की है। उलुपि और इरावत की कथा तमिल महाभारत में विस्तार से है।

PUSHYA PROFILE-1


पुष्यमित्र। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। गांवों में बदलाव और उनसे जुड़े मुद्दों पर आपकी पैनी नज़र रहती है। जवाहर नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय, भोपाल से पत्रकारिता का अध्ययन। व्यावहारिक अनुभव कई पत्र-पत्रिकाओं के साथ जुड़ कर बटोरा। संप्रति- प्रभात खबर में वरिष्ठ संपादकीय सहयोगी। आप इनसे 09771927097 पर संपर्क कर सकते हैं।

One thought on “चित्रांगदा, उलुपि और अर्जुन की प्रणय कथा

  1. ग्यान के अथाह सागर से एक और मोती निकाल कर प्रस्तुत करने के लिए बधाई पुष्यमित्र जी को ।

Comments are closed.