कीर्ति दीक्षित
इस साल हमने गर्मी में तापमान का उच्चतम् स्तर देखा, सूखे की भयावहता देखी, बूँद बूँद पानी के लिए संघर्ष देखा और हाल ही में दिवाली के बाद प्रदूषण का वह रूप भी हमने देखा जिसके विषय में हम केवल बातें करते शोध करते दिखाई पड़ते थे। हम विनाश की ओर अग्रसर हैं । अब भी यदि हम प्रकृति से प्रेम करना नहीं सीखते तो भविष्य के भयावह दृश्यों के लिए सज्ज रहें । शहरी लोग सोशल मीडिया आदि पर प्रकृति और समाज के लिए चिंताएं व्यक्त करते दिखाई पड़ते हैं, लेकिन वास्तविकता में प्रकृति को बचने के नाम पर चंद क़दमों का पैदल फासला बिना अपनी मोटर करों के पार करना मंजूर नहीं कर पाते । लेकिन ये धरती ना तो सोशल मीडिया से चलती है, ना ही बातों से, ये समाज, ये प्रकृति उन चंद लोगों की बदौलत चल रही है जो इस सबसे इतर अपनी इस धरती, पर्यावरण और समाज के प्रति कर्तव्यों का निर्वहन करने में अपना सर्वस्व न्योछावर करके लगे हैं । ग्लोबल वार्मिंग से निपटने के लिये दुनिया के सभी देश पेरिस समझौता लागू करने पर जोर दे रहे हैं, लेकिन एक इंसान अकेला ही इस समस्या से निपटने के लिये इस वर्ष 10 फरवरी से पेड़ लगाने में जुटा है।
राजस्थान के जयपुर शहर के विराटनगर इलाके में रहने वाले राकेश मिश्रा अब तक करीब 45 हजार पेड़ लगा चुके हैं। राकेश मिश्र का कहना है कि जब तक वे सवा लाख पेड़ नहीं लगा लेते तब तक वे अपने घर नहीं जायेंगे ,नंगे पैर रहेंगे , एक वक्त का भोजन करेंगे । राकेश मिश्रा ने केवल सवा लाख पेड़ लगाने का ही लक्ष्य नहीं रखा है बल्कि उन पेड़ों की देखभाल का भी जिम्मा भी उठाया है। साथ ही वे अपने इस लक्ष्य की पूर्ति के बाद डेढ़ करोड़ वृक्षारोपण की शपथ के साथ आगे बढ़ेंगे। राकेश अपनी व्यक्तिगत वस्तुएं बेचकर पर्यावरण को हरा भरा बनाने के प्रयासों में जी जान से लगे हैं साथ ही उनका मानना है कि यदि उनके प्रयासों से लोग पर्यावरण के प्रति जागरूक हों तो उनकी तपस्या सफल हो सकेगी । पेड़ लगाने के अलावा राकेश मिश्रा ‘पर्यावरण के लिये युद्ध’ नाम से एक मुहिम शुरू करने जा रहे हैं। उनकी इस मुहिम को विभिन्न संस्थाओं द्वारा पुरुस्कृत भी किया गया है ।
जहां एक ओर राकेश पर्यावरण की रक्षा के साथ पेड़ लगाने की मुहिम में जुटे हैं वहीं उनकी संस्था ‘नया सवेरा संस्था’ महिलाओं और बच्चों के विकास के लिये कई काम कर रही है। साल 2002 में उन्होने ‘नया सवेरा संस्था’ नाम से एक स्वंय सेवी संस्था की स्थापना की थी । ‘नया सवेरा’ स्लम और गांवों में रहने वाली महिलाओं को सेनिटेशन कार्यक्रम के तहत सेनेटरी पैड्स बांटती है। इस तरह ये संस्था अब तक करीब 80 हजार सेनेटरी पेड्स बांट चुकी है।इसके अलावा ये संस्था महिलाओं को अचार और पापड़ बनाने की भी ट्रेनिंग देकर उन्हें आत्मनिर्भर बनाने का काम कर रही है।अब तक ‘नया सवेरा’ करीब 7 सौ महिलाओं को ट्रेनिंग दे चुकी है। इस वजह से ये महिलाएं आज 4 से 5 हजार रुपये महीने की कमाई कर रही हैं। महिलाओं के उत्थान के साथ साथ ‘नया सवेरा’ गरीबों को कपड़े बांटने का काम भी करता है। साल 2015 तक ये संस्था 27 हजार से ज्यादा कपड़े बांट चुकी है।जबकि इस साल संस्था ने 1 लाख कपड़े बांटने का लक्ष्य तय किया है।‘नया सवेरा’ के काम को देखते हुए संस्था की निदेशिका प्रियंका गुप्ता को ‘राजस्थान वुमन अचिवमेंट अवार्ड’ से भी नवाजा जा चुका है।
‘नया सवेरा’ संस्था जयपुर के स्लम और गांवों में रहने वाले बच्चों के लिए पिछले 3 महिनों से ‘नाइट स्कूल’ चला रही है। इस स्कूल में दिन भर काम करने वाले बच्चों को पढ़ाया जाता है। फिलहाल उनके इस स्कूल में करीब 80 बच्चे पढ़ाई कर रहे हैं। इसके अलावा ये संस्था स्लम में रहने वाले बच्चों के लिए ‘नया सवेरा पाठशाला’ भी चला रही हैं। जहां पर बच्चों को किताबें,स्टेशनरी और वर्दी मुफ्त में दी जाती है। फिलहाल ‘नया सवेरा संस्था’ विराटनगर में एक वृद्धाश्रम एवं बाल आश्रम बना रहा है। जहां पर ऐसे बुजुर्ग लोग रह सकेंगे जिनको उनके परिजनों ने ठुकरा दिया है ऐसे बच्चे रहेंगे जिनका कोई अस्तित्व नहीं है इस आश्रम में अस्पताल की भी व्यवस्था होगी।साथ ही ऐसी महिलाओं का भी इलाज होगा जो गरीब,विधवा असहाय होंगी!
कीर्ति दीक्षित। उत्तरप्रदेश के हमीरपुर जिले के राठ की निवासी। इंदिरा गांधी नेशनल ओपन यूनिवर्सिटी की स्टूडेंट रहीं। पांच साल तक इलेक्ट्रॉनिक मीडिया संस्थानों में नौकरी की। वर्तमान में स्वतंत्र पत्रकारिता। जीवन को कामयाब बनाने से ज़्यादा उसकी सार्थकता की संभावनाएं तलाशने में यकीन रखती हैं कीर्ति।
सराहनीय प्रयास कहूं तो वह केवल औपचारिकता होगी ।यह संदेशहम सबो के लिए पर्यावरण और प्रकृति की.सुरक्षा और संरक्षण के प्रति हमाररी जिम्मेवारी तो तय करती ही है ,मानवता भी सिखाता है।हमे अपन होने की सार्थकता इसी में है कि हम दूसरों के भी काम आएं ।