नीलू अखिलेश कुमार
तुम थे, तुम हो ,तुम ही रहोगे ।
अच्छा किया तुमने
जो बीमारी की तरह
पटे आ रहे अपने शहरों में
इन बेसब्रों का
काम रोका ।
गरीबी में भी इठलाते
इन बेशर्मों का
घर बार रोका ।
बहुत ही अच्छा किया तुमने
जो इन भुख्खड़ों का
बेढब निकलता पेट रोका ।
कर्मठ बनते फिरते
इन कंगालों ने
डंडों का जोर देखा ।
मस्ती में जीने वालों को भी
रुलाकर तुमने
अपना रोब देखा ।
एक और काम कर लेना भगवन
बहला-फुसलाकर या जबरन
चुनावों से पहले
इन ड्रामेबाजों की
जुबान भी खींच लेना ।
फिर देखते हैं
कौन रोक लेगा तुम्हें ।
तुम थे ,तुम हो ,तुम ही रहोगे।
डॉ. नीलू ने हिंदी साहित्य से एमए और एमफिल की पढ़ाई की है। वो पटना यूनिवर्सिटी से ‘हिंदी के स्वातंत्र्योत्तर महिला उपन्यासकारों में मैत्रेयी पुष्पा का योगदान’ विषय पर शोध किया है।
बहुत अच्छा नीलू। इसी तरह साहित्य में रचो बसो।