विमल कुमार
मुझे इतने दिनों तक मालूम ही नहीं था
मैं अपनी मरी हुई पत्नी से प्यार कर रहा हूं
मैं तो उसे वर्षों तक चूमता रहा
आलिंगनबद्ध होता रहा
निर्वस्त्र करता रहा उसे अंधेरे में
उसके साथ हंसी ठिठोली करता रहा
पर मुझे मालूम ही नहीं था
वह कब की मर चुकी है
मेरी मां भी ऐसी ही मरी थी
जिंदा रहकर
एक लाश की तरह
सोती रही मेरी पत्नी
बिस्तर पर मेरे संग
कई सालों तक
एक लाश की तरह
मुझे चूमती रही
टेलीफोन पर
उसकी आवाज
बीच में ही दम तोड़ देती थी
बेगूसराय
रिश्तेदारों की शादी में
गया दोस्तों के घर
एक बार शिमला
और एक बार भोपाल भी गया
तब भी वह मरी हुई ही थी
मुझे मालूम नहीं था
वह एक नरकंकाल में बदल चुकी है
शरीर पर मांस जरूर
पर वह तो ठठरी है
आंखें पत्थर हो चुकी हैं
हाथ टहनियां
पांव हो चुके बिजली के खंभे
किसी ने भी मुझसे नहीं कहा-
तुम्हारी पत्नी मर चुकी है
मेरे बच्चों ने भी नहीं कहा-
पापा, मम्मी तो मर गई है
दोस्तों ने भी कहा-
अरे भाभीजी जिंदा नहीं हैं क्या?
एक दिन मेरी पत्नी ने
मुझे भींचते हुए कहा-
जानते हो, मैं कब की मर चुकी हूं
मैं तो सिर्फ जिंदा हूं
अपने बच्चों के लिए
और तुम्हारे लिए
मैंने पत्नी से पूछा-
आखिर कौन है तुम्हारा हत्यारा?
तब से मैं हत्यारे को
खोज रहा हूं
पत्नी ने कहा-
कई हत्यारे हैं मेरे
उनमें से एक तुम भी हो
तब से मैं अपने घर में
गुनहगार की तरह खड़ा हूं
यह जानने की कोशिश कर रहा हूं
मैं तो उससे प्यार ही कर रहा था
आखिर कैसे बन गया
पति से एक हत्यारा
जबकि मुझे मालूम ही नहीं
मैं इतने दिनों तक
एक मरी हुई पत्नी से प्यार कर रहा हूं
लेकिन वह कौन सी मजबूरी है
कि मेरी पत्नी
अपने इस हत्यारे से प्रेम करती है
और उसके साथ अभी भी रहती है
अपने घर में एक दीवार की तरह
रोज थोड़ा-थोड़ा ढहती है,
फिर भी अपने पति पर मरती है
मैं भी अपनी मरी हुई पत्नी से
प्यार करता हूं
और उसे जिंदा करने के लिए
थोड़ा उजाला करता हूं
रोज न चाहते हुए भी दफ्तर निकलता हूं।
विमल कुमार। वरिष्ठ पत्रकार। कवि। आप से इस नंबर पर संपर्क किया जा सकता है- 09968400416)
Prem Singh- विमल सर की एक और बेहतरीन कविता। पत्नी का प्यार तो हम सभी अपना हक़ मानकर चलते हैं लेकिन कितवी बार ये सोचते हैं कि पत्नी की चाहत क्या है । कहीं न कहीं संवेदनशीलता की कमी ही पत्नी को जीते जी मार देती है।
पुरुष – प्रधान समाज़ में औरत को संपत्ति समझने की भूल को चुनौती देती यह कविता काफी उत्प्रेरक है। लेखनी से जनमानस को आईना दिखने के लिए धन्यवाद।
कोई जिस्म से निकट रहते हुए भी दिल से कितना दूर हो जाता है ,यह कविता उसी स्थिति को बता रही है। क्या यही प्रेम है?दूध और पानी की तरह आपस में एकाकार हो जाने वाला ?