तुम निडर डरो नहीं, तुम निडर डटो वहीं

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झगरी गांव, मध्य प्रदेश

अरुण प्रकाश

डीएम साहब सुनते नहीं, सचिव महोदय के पास फुरसत नहीं, सीईओ (मुख्य कार्यपालन अधिकारी ) को परवाह नहीं। अब मैं किसके सामने अपने गांव का दुखड़ा रोऊं कि मेरे गांव में विकास की बयार आ सके। ये दर्द है एक सरपंच का, जिसने गांव में बदलाव की लालसा लिए दिल्ली की चकाचौंध और अच्छी खासी नौकरी को तिलांजलि दे दी और निकल पड़े गांव की पगडंडी पर। जिस गांव की गलियों में बचपन बीता वहां की समस्याएं जेहन में रची बसी थीं। फिर क्या था फैसला किया कि बदलाव लाना है तो सिस्टम का हिस्सा बनना पड़ेगा। लिहाजा ग्राम संसद के चुनाव मैदान में कूद पड़े । इरादा नेक था और हौसला बुलंद, चुनाव में जीत मिली और पत्रकार से सरपंच बन गए। दिल्ली में बतौर पत्रकार सरकारी सिस्टम की हर पल पड़ताल करते रहने वाले शैलेश निगम को ‘रूरल सिस्टम’ की खामियां समझते देर नहीं लगी।

सही समझ के साथ बदलाव की डगर पर चले तो गांव वालों का भी साथ मिला। मध्य प्रदेश के सीधी जिले की झागरी ग्राम सभा के लोग उनके हर फैसले में साथ हैं। शैलेश ने विकास की नींव रखने की शुरुआत ग्रामIMG_20150911_163919 (1) पंचायत भवन का नाम बदलने से की। डॉक्टर कलाम के आदर्शों पर चलने वाले शैलेश ने उनके निधन के बाद पंचायत भवन का नाम डॉक्टर अब्दुल कलाम पंचायत भवन कर दिया । इसके साथ ही शैलेश ने गांव को स्वच्छ बनाने की ठानी और गांव में टॉयलेट का निर्माण शुरू कराया। देखते ही देखते गांव में जगह-जगह टॉयलेट नजर आने लगे। कल तक खुले में शौच को मजबूर गांव की बहू-बेटियों को अब बाहर जाने की जरूरत नहीं है । शैलेश ने पिछले कुछ महीने में गांव में तकरीबन 30 टॉयलेट बनवाए हैं, गांव वाले खुश हैं।

एक तरफ शैलेश ने गांववालों के साथ नई पहल की तो वहीं हुक्मरानों तक अपनी बात पहुंचाने की कवायद भी शुरू कर दी। सीएम को संबोधित एक पत्र के माध्यम अपना दर्द साझा किया। शिकवे-शिकायत भरे इस पत्र का मजमून कुछ इस तरह है –

 shivraj singhसीएम साहब अपने सरपंचों पर तनिक तो यकीन करिए

सरपंच को आपने ताकत तो दी नहीं अलबत्ता जिम्मेदारियों का पहाड़ लाद दिया। गांव के विकास के लिए ईमानदारी से काम करने में हमें कोई गुरेज नहीं, लेकिन उन कामों को कैसे पूरा करें, जिनमें लाखों रुपये खर्च होने हैं लेकिन पैसा धेला भर भी नहीं आता। ऐसे में इतना पैसा हम कहां से जुटायें? नजीर के लिये स्वच्छ भारत अभियान को देखिये। केंद्र से लेकर राज्य सरकार तक टेंपल से पहले टॉयलेट की बात कर रही है। इसको आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी हम सरपंचों पर है, हमें भी इसे करने में खुशी होती है। फिर भी इस महात्वाकांक्षी प्रोजेक्ट को आगे बढ़ाने में वित्तीय अड़चन मुंह बाये खड़ी है । एक शौचालय के निर्माण के लिए सरकार ने 12 हज़ार रुपये निर्धारित किए हैं हालांकि ये पैसा सरकारी दफ्तरों में लगने वाले टॉयलट के फ्लश जितना भी होगा, इसमें मुझे संदेह है।

 सबसे ज्यादा दिक्कत इस बात की है कि टॉयलेट सरपंच को अपने पैसे से बनवाने पड़ते हैं जब काम पूरा हो जाता है तो उसका फोटो खींचकर सरकारी दफ्तर में जमा कराना पड़ता है। फिर शुरू होता है सरकारी दफ्तरों के चक्कर पे चक्कर का सिलसिला। हम सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटते हैं, मटेरियल सप्लाई करने वाले हमारे घर के। ऐसे में हमें खासी जिल्लत उठानी पड़ती है। मैंने अपने गांव में पिछले दो महीने में 30 टॉयलेट बनवाये हैं लेकिन उसका पैसा सरकारी बाबू लोग अभी तक नहीं पास किए हैं । इस सिस्टम को देखकर इतनी झल्लाहट होती है कि क्यों न सबकुछ छोड़कर वापस अपनी दुनिया में मगन हो जाऊं। लेकिन फिर ख्याल आता है कि क्या इसी दिन के लिए दिल्ली से सबकुछ छोड़छाड़ कर आया था। सरकार हमपर यकीन भले ना करे लेकिन हम गांव वालों का यकीन कैसे तोड़ सकते हैं? यही सोचकर तगादा करने वालों की चार बातें हर दिन सुन लेता हूं और काम पर लग जाता हूं । आलम ये है कि नीयत अच्छी होने के बाद भी तमाम सरपंच भ्रष्टाचार के अजीब से चक्रव्यूह में फंसने को मजबूर होने लगे हैं जिससे उनकी अपनी साख दांव पर लगी हुई है। आखिर क्यों नहीं ऐसी व्यवस्था की जाती जिससे सरपंचों को काम कराने में ज्यादा दिक्कत न आए और समय पे काम भी पूरा किया जा सके ?

एक शौचालय बनवाने के लिए मिलने वाली सामग्री और रकम

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नोट- पानी की टंकी और वाश बेसिन का खर्च सरकार नहीं देती
गांव वालों से घिरे नायक- शैलेश निगम।
गांव वालों से घिरे नायक- शैलेश निगम।

झगरी गांव के सरपंच शैलेश की कहानी काफी संघर्ष भरी रही है । सरपंच चुने जाने के बाद भी शैलेश को अपना अधिकार पाने के लिए इस भ्रष्ट तंत्र से लड़ाई लड़नी पड़ी। नौबत यहां तक आ गई थी कि उन्हे भूख हड़ताल पर भी बैठना पड़ा। करीब हफ्ते भर तक अनशन पर बैठने के बाद जाकर कहीं अफसरों की नींद खुली और उन्हें कार्यभार सौंपा गया। हालांकि इस दौरान शैलेश ने भ्रष्ट अफसरों और बाबुओं के खिलाफ मुहिम चलाई जिसकी जांच भी चल रही है। नतीजा, अधिकारी सरकारी योजनाओं को झगरी गांव में समय पर लागू करने में बाधा उत्पन्न कर रहे हैं। अच्छी बात ये कि पूरा गांव शैलेश के साथ पूरी मजबूती से खड़ा है।

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अरुण प्रकाश। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय। आप उनसे 9971645155 पर संपर्क कर सकते हैं।


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