आशीष सागर दीक्षित
![उत्तरप्रदेश के मुख्य सचिव आलोक रंजन के बांदा दौरे की तस्वीर।](http://badalav.com/wp-content/uploads/2016/01/19-jan-banda-kissan1-300x200.jpg)
उत्तरप्रदेश सरकार के मुख्य सचिव अलोक रंजन बुंदेलखंड के दो दिन के दौरे से वापस अपने पंचम तल लौट गए। उनके दौरे के औपचारिक लफ़्ज़ों का शोरगुल थमा भी नहीं है कि राहुल गांधी ने बांदा की भूमि का रूख किया।
![](http://bundelkhand.in/portal/sites/default/files/Former-Achchelal-Raidas.jpg)
राहुल गाँधी से बुंदेलखंड के बेहाल किसानों का यक्ष प्रश्न है कि बाँदा में बुंदेलखंड पैकेज से बनी चौधरी चरण सिंह रसिन बांध परियोजना ( कुल लागत 7635.80 लाख रूपये ) के तहत किसान को आज तक पानी क्यों नहीं मिला?
बुंदेलखंड को रेगिस्तान बनाने वाली केन – बेतवा नदी गठजोड़ का आपने विपक्ष में रहकर डेढ़ साल से विरोध क्यों नही किया? तब जबकि आपके पर्यावरण मंत्री जयराम रमेश ने इस पर एनओसी नही दिया था ? बुंदेलखंड पैकेज से बने डैम, कुँओं में पानी क्यों नहीं है? साथ ही 31 मार्च 2015 को समाप्त बुन्देलखंड पैकेज का आवंटित हुआ बुंदेलखंड जल-प्रबंधन का 2940 करोड़ रुपया, जल स्रोत के लिए 1762 करोड़, कृषि के लिए 2050 करोड़,वन – पर्यावरण के लिए 314 करोड़ और पशुपालन – डेयरी के लिए आया 200 करोड़ रुपया बुंदेलखंड की तस्वीर क्यों नही बदल सका ? ये तमाम सवाल यहाँ का भूखा किसान पूछ रहा है।
राहुल गांधी के दौरे की तस्वीरों पर हम बाद में बात करेंगे। फिलहाल तो मुख्य सचिव के दौरे की तस्वीरें ही बार-बार जेहन में कौंध जाती हैं। बाँदा के लोहिया ग्राम पडुई के प्राथमिक स्कूल में बना वीआईपी स्विस काटेज ‘ मोबाइल सर्किट हाउस की तबियत उस दिन नासाज लगी ! उसकी नाड़ी देखने वाला न सरकारी अमला गाँव में था और न इस अवसर को कैश कराने वाले जनसेवक ! जिससे जो बन पड़ा उसने वो पैंतरा चला, मुख्य सचिव की चाटुकारिता में ! क्या स्थानीय नेता, क्या समाजसेवी, कॉलेज के प्राचार्य और क्या आला अधिकारी, सब एक चौपाल में बुन्देली बात कहने को तैयार लेकिन सच को दफ़न करते हुए !
मुख्य सचिव अलोक रंजन के सामने किसी जनसेवक ने नदी- पहाड़ों के खनन की बात न उगली ! किसी नेता ने खुद को रेत-पहाड़ का माफिया न कहा ! सूखा तो है, समाधान सब चाहते है मगर यह भूलकर कि बुंदेलखंड के तालाब स्थानीय भू-कब्जेदार की चपेट में कैसे आ चुके है ? एक जनसेवक मुख्य सचिव को गाँव में तिलक करके एक रुपया देता है, मगर यह बात नहीं कहता कि गरीबों के लिए आये शौचालय मैंने अपने परिवार को क्यों दिला दिए ? असहाय के लिए मिले इंदिरा आवास में इसी गाँव के प्रगतिशील किसान और लम्बरदार कैसे जम गए ? सब खामोश है अपनी लंगोट का मैला दिखलाने में, कहीं बदबू निकली तो पूरा क्रीमी तबका गंधा जायेगा !
मुख्य सचिव के ईर्द-गिर्द चाटुकारों का ऐसा मजबूत घेरा था कि जरुरतमंद उनसे मिल ही न पाए, अपना दुख कहने की बात तो दूर। नरैनी के मानपुर गाँव की बेलपतिया ( बेलपतिया के पति राजाराम ने पिछले साल अप्रैल में कर्जे के बोझ की वजह से खुदकुशी कर ली थी। ) अपने गाँव भाऊराम के पुरवा में काला दिवस मनाती रह गई। आरोप है कि बेलपतिया के पारिवारिक लाभ योजना के तीस हजार रूपये बैंक मैनेजर ने बिना उनकी सहमति के अपने खाते में जमा कर लिए। बेलपतिया ने 26 जनवरी से गाँव में सत्याग्रह करने की चेतावनी दे रखी है।
मुख्य सचिव पडुई से 14 जनवरी की सुबह जब विदा हुए तो पगडंडी में गाँव की बे-पहुँच वाली औरतें गुहार लगाती दिखीं कि ‘ साहेब तुमका पूर गाँव घूमबे का चाही ! ऐसी ही बेबसी राहुल गांधी के दौरे के बाद भी दिखाई दे तो कोई अचरज नहीं, ऐसी ही गुहार राहुल गांधी की विदाई के बाद भी सुनाई दे तो हैरानी नहीं। यही तो दस्तूर है, दौरे होते हैं… कैमरे चमकते हैं, उनमें नज़र आते हैं तो बस बाबुओं, अफ़सरों, नेताओं के चेहरे… इन कैमरों में कहां कैद हो पाता है, वो सच जिस पर पर्देदारी ही इस सारी कवायद का मानो अंतिम मकसद हो गया हो।
बाँदा से आरटीआई एक्टिविस्ट आशीष सागर की रिपोर्ट। फेसबुक पर ‘एकला चलो रे‘ के नारे के साथ आशीष अपने तरह की यायावरी रिपोर्टिंग कर रहे हैं। चित्रकूट ग्रामोदय यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। आप आशीष से [email protected] इस पते पर संवाद कर सकते हैं।
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