पशुपति शर्मा
आज दीवाली है। आज के दिन हम हमेशा मां से रिद्धि-सिद्धि के किस्से सुनते आए हैं। लेकिन आज बात उस मां की, जो अपने घर जीती-जागती रिद्धि-सिद्धि लेकर आई हैं। आप रिद्धि-सिद्धि की पूजा की तैयारी कर रही हैं और ये चौबीसों घंटे इनकी सेवा करती रहती हैं। आप रिद्धि-सिद्धि से अपने बंधु-बांधवों के लिए कुछ मांग रही हैं, और ये रिद्धि-सिद्धि पर सब कुछ लुटाने का सुख बटोर रही हैं। हम बात कर रहे हैं कोमल हृदय की मालकिन डॉक्टर कोमल यादव की, जिन्होंने हाल ही में दो नन्ही बच्चियों को गोद लिया है।
डॉ कोमल के बारे में जब पहली बार मैंने जेएनयू के अपने वरिष्ठ साथी निशांत यादव से सुना तो हैरान रह गया। इसके बाद कई दिनों तक उनसे बात करने की कोशिश करता रहा। पता चला वो फर्रुखाबाद से हमीरपुर शिफ़्ट कर गईं हैं। यही वजह थी कि वो मेरे व्हाट्स एप, मोबाइल मैसेज और यहां तक कि कॉल का भी जवाब नहीं दे पा रहीं थीं। लेकिन मुझे लगा कहीं वो दो बच्चियों को गोद लेने के बाद ‘एकांत’ की तलाश में तो नहीं। ऐसे तमाम सवालों के जवाब मुझे तब मिले जब एक दिन बड़े इत्मीनान से उनके साथ बातें हुईं।
मैं कुछ पूछता, इससे पहले वो खुद ही काफी कुछ बयां कर गईं। उन्होंने बताया कि 18 अक्टूबर की सुबह 6 बजे के करीब फर्रुखाबाद में एक अकेली गर्भवती महिला अस्पताल पहुंची। स्टाफ ने डॉक्टर कोमल को बताया कि महिला दर्द से तड़प रही है और बच्चा फंसा हुआ है। बच्चे दो थे, एक का सिर और एक का पैर उलझ गए थे। ऑपरेशन करना जरूरी था लेकिन महिला इसके लिए तैयार नहीं हो पाई। बड़ी मुश्किल से डिलीवरी हुई। दोनों बच्चियां थीं। एक बच्ची तो ठीक थी, लेकिन दूसरी की हालत खराब। यहीं से डॉक्टर कोमल का मन इन बच्चियों से जुड़ने लगा।
कोमल डिलीवरी के बाद 10-15 मिनट के लिए किसी और काम में उलझीं और इधर मां ने बच्ची को पॉलीथीन में रेप कर दिया। सांसें कम थी लेकिन वो चल रहीं थीं। कोमल ने मां को डांट लगाई। बच्ची को चाइल्ड केयर यूनिट में भर्ती करवाया। वो महिला मजबूर थी। पहले से ही घर में कई बच्चियां थीं। पति के हाल ही में देहांत के बाद और टूट चुकी थी। जब वो बच्चियों को साथ ले जाने को तैयार नहीं हुई तो डॉक्टर कोमल ने ही उन्हें अस्पताल में अपने नाम से भर्ती कराया और देखरेख की।
अब समस्या थी-आगे क्या किया जाए। दो ही विकल्प थे-पहला, मां को बच्चियों को साथ ले जाने के लिए मनाया जाए, उसमें अस्पताल को कामयाबी नहीं मिली। दूसरा विकल्प था बच्चियों को किसी अनाथालय में भेजा जाए। इसी सब के बीच डॉक्टर कोमल के मन में तीसरे विकल्प को लेकर उधेड़बुन चल रही थी। वो इन बच्चियों को गोद लेना चाह रही थी। एक अनब्याही युवती के लिए ये फ़ैसला आसान नहीं था। ऊपर से कोमल को पता था कि परिवार से इसके लिए हामी भरवाना आसान नहीं। अस्पताल में बच्चियों को छह-सात दिन गुजर चुके थे। डॉक्टर कोमल को बच्चियों से ऐसा लगाव हो गया कि बिना अंजाम की परवाह किए उन्होंने बच्चियों को गोद लेने का फ़ैसला कर लिया।
पेशे से गायनकोलॉजिस्ट डॉक्टर कोमल ने कई महिलाओं को मातृत्व का सुख दिया है लेकिन उनकी खुद की ज़िंदगी में ये सुख इस प्रकार आएगा, इस बारे में बस खयालों में ही सोचा था। वो बताती हैं कि उन्होंने बच्चा गोद लेने का सपना पाल रखा था, लेकिन वो सब अचानक और इस तरह होगा, ये कौन जानता था? मम्मी-पापा ने ख़बर मिलते ही इंकार कर दिया। रिश्ता तोड़ लेने की धमकी दी। ऐसे में कोमल का साथ दिया तो उसकी छोटी बहन करिश्मा ने। दोनों बहनों ने मिलकर दो नन्हीं बच्चियों को नई ज़िंदगी देने का इरादा ठान लिया।
दरअसल, खुद कोमल का बचपन काफी अभावों में गुजरा है। उन्होंने खेत भी काटा है, दूध भी निकाला है और गोबर भी पाथा है। बचपन में छोटी-छोटी जरुरतें पूरी नहीं हो पाईं, इसका मलाल मन में रहा। पिता पर काफी कर्ज है, सो जब से नौकरी में आईं घर-परिवार के खर्च में मददगार बन गईं। ऐसे में अचानक दो बच्चियों का खर्च आ जाने से, घरवालों की नाराजगी भी स्वाभाविक ही कही जाएगी। ऊपर से अविवाहित बेटी ‘मां’ बनने की जिम्मेदारी उठा ले, तो शादी ब्याह की चिंता पुराने लोगों के जेहन में शुरू हो ही जाती है। वो हमारे-आपके जैसे लोगों के कहने मात्र से ख़त्म हो जाए, ये कैसे मुमकिन है। यही वजह है गांव में रहने वाले मम्मी-पापा और नाते-रिश्तेदारों का काफी विरोध झेलकर कोमल को बच्चियों को अपने घर लाना पड़ा।
इसी बीच फर्रुखाबाद से हमीरपुर के अस्पताल में जाने की नौबत आ गई। हालांकि इसी दौरान कुछ लोगों को बच्चियों के गोद लेने की ख़बर लग गई। अख़बारों के कुछ पत्रकार पहुंच गए। उन्होंने रिपोर्ट छापी तो सराहना के सुर चारों तरफ सुनाई देने लगे। पुराने दोस्तों ने वाह-वाह के अंदाज में तारीफों के पुल बांधे। समाज के लोगों ने भी कोमल के पिता को समझाया। पिता की नाराज़गी कम हुई और मां को बेटियों को घर बुलाने का हौसला मिल गया। कोमल हमीरपुर जाने से पहले दोनों बच्चियों के साथ गांव पहुंची। बच्चियों को देखा तो नाना-नानी का मन भी पिघल गया। हां, नहीं पिघला तो उन गांववालों का दिल, जो पता नहीं ऐसे मौकों पर कहां से अकड़ का ना ख़त्म होने वाला ख़जाना हासिल कर लेते हैं।
बातचीत के क्रम में मेरे एक दो सवालों पर कोमल खीझ उठीं। पहला सवाल तो ये कि आपका कोमल मन और गायनोकॉलजिस्ट का पेशा ऐसा है कि आपको कहीं एक संस्था न बनानी पड़ जाए और दूसरा सवाल ये सब आपके लिए बड़ा मुश्किल रहा होगा। टका सा जवाब- क्या मुश्किल है? क्यों आपके लिए मुश्किल है। ऐसे लोगों से मुझे बहुत कुढ़न होती है। मैं नहीं चाहती की कोई मेरी तारीफ़ करे। मैं नहीं चाहती की कि कोई मेरी रिपोर्ट अखबारों में लिखे। मुझे तो खुशी तब होगी जब एक साल के अंदर मुझे ये ख़बर मिले कि इतने और लोगों ने बच्चों को गोद ले लिया। आप समझ नहीं सकते कि अनाथालय में किसी के पलने और एक घर में किसी को पूरा हक़ दिए जाने का फ़ासला क्या होता है। मेरी ये दोनों बच्चियां अब मेरे ऊपर पूरा हक़ रखती हैं, मेरी संपत्ति पर उनका हक़ है-चाहे वो चार पैसे ही क्यों न हो? क्या अनाथालय में पलने वाले बच्चों के पास ये हक़ है?
मुझे उनके इस ग़ुस्से में उम्मीदों का गुबार नज़र आ रहा था। चलते-चलते कोमल ने बताया कि हमलोगों का एक भाई भी था। उसका 16-17 साल की उम्र में निधन हो गया। उसे डॉग्गी पालने का बहुत शौक था। पिता के डर से वो कभी एक डॉगी घर नहीं ला सका। उसके जाने के बाद पिताजी उदास रहने लगे। एक दिन पापा डॉग्गी उठाकर घर ले आये। मैंने देखा तो पापा से बहुत झगड़ा किया-अगर ये करना था तो उसके रहते करते… अब क्यों? मैं अपनी ज़िंदगी में कोई ‘काश’ नहीं छोड़ना चाहती। मैं बाद में अफ़सोस करने की बजाय आज और इस पल को जी लेना चाहती हूं। अपनी शर्तों पर, अपनी मर्जी के मुताबिक, चाहे मुझे इसकी जो भी क़ीमत चुकानी पड़े। रिपोर्ट के अंत में डॉक्टर कोमल के कवि मन से निकली कुछ पंक्तियां-
कभी किसी बात का फ़साना न बनाना
आगाज को अंजाम का कभी दीवाना न बनाना
हमने तो पहले ही आगाह किया था आपको
हमारी पलकों पर अक्सर बाढ़ आती है
इन पलकों पर कोई आशियाना न बनाना।
पशुपति शर्मा बिहार के पूर्णिया जिले के निवासी हैं। नवोदय विद्यालय से स्कूली शिक्षा। माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से संचार की पढ़ाई। जेएनयू दिल्ली से हिंदी में एमए और एमफिल। पिछले डेढ़ दशक से पत्रकारिता में सक्रिय। उनसे 8826972867 पर संपर्क किया जा सकता है।
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बहुत सुन्दर लिखा है पशुपति जी।डॉ.कोमल का प्रयास और आपका शब्दांकन दोनों ही काबिल ए तारीफ़ हैं
hi,very inspiring story ,your mobile number sir
Very nice and motivational article sir….Shandar Jabardast Zindabad
Sraddha Shukla –A big salute to this young lady. May God bless her .
Rekha Anish Mishra -Well done!
मानवता की ऐसी मिसाल को सादर नमन