स्कूल में समाजवाद… अइयो ज़रा-ज़रा हौले-हौले

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राधे कृष्ण

समान शिक्षा को लेकर देश की आज़ादी के बाद से ही मांग उठती रही है। सरकारें- वो केंद्र की हों या राज्यों की- कम से कम सैद्धांतिक तौर पर सभी को बेहतर और समान शिक्षा को लेकर एक सी राय रखती हैं। लेकिन सवाल ये है कि आख़िर चूक कहां हुई कि अदालतों को इसमें दखल देने की ज़रूरत आन पड़ी। इलाहाबाद हाईकोर्ट के फ़ैसले के पीछे सरकारी स्कूली शिक्षा के पतन का वो पूरा दौर झांक रहा है, जिसे मानो भगवान भरोसे छोड़ दिया गया हो।

शिक्षा में ‘समाजवाद’-4

क्या शिक्षा जैसे जन-सरोकारों के मुद्दों पर सरकारें तमाशबीन बनी रहेंगी और अदालतों को सुधारों के लिए सख़्त फ़ैसले करने होंगे? ये कौन तय करेगा कि लोग अपने बच्चों को कैसे और कहां पढ़ाएं? बहरहाल, फ़ैसले के बाद से ही ये सवाल उठते रहे कि वो समाजवादी सरकार क्या सोचती है, जिसके सूबे में अदालत ने एक बड़ा समाजवादी फ़ैसला सुनाया है।

जिस दिन राष्ट्रपति का बेटा और चपरासी का बेटा एक प्राइमरी स्कूल में पढ़ेगा, उस दिन इस देश में सामाजिक और शैक्षणिक क्रांति की शुरुआत हो जाएगी। राम मनोहर लोहिया

ramgopal yadavइलाहाबाद हाईकोर्ट के जिस फैसले पर समाज के कुछ तबके के लोग हायतौबा मचा रहे हैं, उसकी हिमायत बरसों पहले समाजवादी पुरोधा रहे लोहिया जी कर चुके हैं। इस बात को खुद देश के सबसे बड़े सूबे की सत्ताधारी समाजवादी पार्टी के महासचिव रामगोपाल यादव भी मानते हैं। उनके मुताबिक लोहिया जी समाज में समान शिक्षा के पक्षधर थे, वो हमेशा कहा करते थे कि समाज के हर तबके के लोगों को एक समान शिक्षा की व्यवस्था होनी चाहिए, बिना समान शिक्षा के समाजवाद की बात करना बेमानी हैअजीब विडंबना है कि उन्हीं लोहियाजी के विचारों पर चलने वाली समाजवादी पार्टी सरकार के राज में ही अदालत को ‘शिक्षा में समाजवाद’ लाने का आदेश देना पड़ रहा है।

जब हमने प्रोफेसर रामगोपाल यादव से बात की तो उन्होंने कोर्ट के फ़ैसले का स्वागत करते हुए कहा कि ‘समाज में समान शिक्षा होनी चाहिए। अफ़सरों, मंत्रियों, सांसदों, विधायकों के बच्चे अगर सरकारी स्कूलों में पढ़ेंगे तो निश्चित रूप से सरकारी स्कूलों की शिक्षा व्यवस्था में सुधार होगा, लेकिन कौन अपने बच्चे को कहां पढ़ाए, ये अदालत कैसे तय कर सकती है?’

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राधे कृष्ण पिछले दो दशक से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय हैं। कई बड़े मीडिया संस्थानों में नौकरी के बाद इन दिनों स्वतंत्र लेखन में मशगूल। हाल ही में आपकी नई पुस्तक संघर्ष के प्रयोग प्रकाशित हुई है।


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