विपिन कुमार दास की रिपोर्ट
दरभंगा जिला मुख्यालय से 26 किलोमीटर दूर बेनीपुर अनुमंडल और वहां से आठ किलोमीटर उत्तर में बहेरा–सकरी मार्ग। इसी के किनारे है हरीपुर गाँव। इस गाँव का लाडला दिलीप झा सीमा पर आतंकवादियों को मार कर शहीद हो गया।
शहीदों को सलाम
शहीद फौजी को याद करने की भी अपनी-अपनी वजहें होती है। राजनेता ऐसे मौकों पर भी सियासत से बाज नहीं आते। ऐसे नेताओं की फेहरिस्त बहुत लम्बी है, जो शहीदों को नमन भी इस ख़याल से करते हैं कि उनका वोटबैंक पर कितना असर होगा। कुछ ऐसा ही शहीद दिलीप झा के परिवार के साथ हो रहा है। परिवार को 10 लाख आर्थिक मदद, परिवार में किसी एक को नौकरी, पेट्रोल पम्प, 5 एकड़ खेती लायक ज़मीन। राजनेताओं ने घोषणाओं में कोई कसर नहीं छोड़ी।
दिलीप झा ने 24 बसंत देखे और अपनी जिंदगी का हर रंग देश के लिए कुर्बान कर दिया। उनका जन्म 2 जनवरी 1977 को हरिपुर में हुआ था। तीन वर्ष की उम्र में माँ उदकार देवी चल बसीं। दिलीप के पिता ने ही माँ–बाप दोनों का प्यार दिया। वर्ष 1995 में दिलीप ने नेशनल डिफेन्स अकादमी खड़गवास पुणे से ट्रेनिंग ली। 31 दिसंबर 1999 को सेवन जाट रेजीमेंट में लेफ्टिनेंट का पदभार मिला। दिसंबर 2001 में कर्नाटक के बेलगाम में कमांडो ट्रेनिंग मिली। 7 जाट बटालियन में कैप्टन दिलीप कुमार झा ने जम्मू कश्मीर के अतिसंवेदनशील भारत–पाक पुंछ बॉर्डर पर कमांडो दस्ते का नेतृत्व करते हुए सर्वोच्च क़ुर्बानी दी।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार शहीद कैप्टन दिलीप झा के गाँव आए। शहीद का स्मारक लगाने का वादा, NH–61 का नाम शहीद के नाम से करने का वादा, धरोड़ा चौक पर शहीद की प्रतिमा लगाने का वादा… वादों में अपनी भावना उड़ेल डाली। शहादत को 13 साल हो गए, लेकिन ये वादे हकीकत में तब्दील होने की राह ही तकते हैं।
शहीद के पिता ने पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल जे कलाम और वर्तमान राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी से मिलकर अपना दुख-दर्द साझा किया था। शहीद दिलीप झा की पहली बरसी पर हरिपुर में शहीद के पिता की ओर से बनवाई गई प्रतिमा का उद्घाटन करने तत्कालीन रक्षा मंत्री जॉर्ज फर्नांडिस खुद आये थे। सरकारी वादों को सरकारों ने भले पूरा न किया हो लेकिन खुद शहीद के रिटायर पिता नथुनी झा ने हिम्मत नहीं हारी।
नथुनी झा ने अपने जीवन की जमा पूँजी लगा अपने कलेजे के टुकड़े शहीद पुत्र की याद में स्मारक से लेकर संग्राहलय तक बनाया है। हर वो चीज जो दिलीप झा इस्तेमाल किया करते थे, वो आज भी उनके संग्रहालय में मौजूद है। मेडल, वर्दी, मोबाईल और तस्वीरें… हर यादगार लम्हा संग्रहालय में महफूज है| दिन भर उसे निहारते रहते हैं। संग्रहालय की साफ-सफाई में जुटे रहते हैं।
शहीद दिलीप झा के पिता के हौसले और जज़्बे को हमारा सलाम।
विपिन कुमार दास, पिछले एक दशक से ज्यादा वक्त से पत्रकारिता में सक्रिय हैं। दरभंगा के वासी बिपिन महज पत्रकारिता तक सीमित नहीं है। वो समाज से जुड़े बदलाव की पूरी प्रकिया के गवाह ही नहीं, साझीदार बनने में यकीन रखते हैं। आप उनसे 09431415324 पर संपर्क कर सकते हैं।
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