अरुण प्रकाश
दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की विडंबना कुछ ऐसी कि एक सूबे के चुनाव में सब कुछ भूल सा गया है । एक राज्य के चुनाव के आगे देश की बड़ी आबादी का संकट जैसे बौना सा हो गया हो । हर तरफ सिर्फ चुनाव की चिल-पों मची है, सूखे के संकट से जूझते लोगों की आवाज़ इस शोर में मानो दब सी गयी है । कर्नाटक से लेकर केरल तक या फिर महाराष्ट्र से लेकर उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलों में सामान्य से कम बारिश हुई है । यही नहीं केंद्रीय पूल में सबसे ज्यादा अनाज देने वाला पंजाब और हरियाणा भी सूखे की दहलीज पर खड़ा है, लेकिन केंद्र सरकार के ‘खेवनहार’ फिलहाल बिहार में चुनावी नाव खेने में लगे हैं।
एक आंकड़े के मुताबिक देश के 641 जिलों में से करीब 300 जिलों में 20 फीसदी से 50 फीसदी तक बारिश रिकॉर्ड की गई है । मसलन देश का तकरीबन आधा हिस्सा सूखे की कगार पर खड़ा है । बिहार में आधे से ज्यादा जिलों में मॉनसून की भारी की कमी रही, लेकिन चुनावी शोर में सूखे की चर्चा कम ओवैसी और मांझी की चर्चा ज्यादा हो रही है ।
आंकड़ों पर एक नज़र
राज्य कुल जिले सूखे के हालात महाराष्ट्र 35 27 कर्नाटक 30 12 केरल 14 13 पंजाब 20 15 हरियाणा 21 19 उत्तर प्रदेश 75 62 बिहार 38 20 नोट- इन जिलों में मॉनसून में भारी कमी दर्ज की गई है
महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा असर मराठवाड़ा में देखा जा रहा है जहां सामान्य से 52 फ़ीसदी कम बारिश हुई है। वहीं उत्तर भारत के पंजाब में पिछले 11 साल में पांचवी बार और हरियाणा में छठीं बार सूखे की नौबत आने वाली है । पंजाब गेहूं का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक राज्य है जबकि देश की 11 फ़ीसदी सरसों की खेती हरियाणा में होती है, जिसकी बुआई अगले महीने से शुरू होनी है लिहाजा किसानों की चिंता बढ़ गई है।
कर्नाटक का हाल पूछिए मत, पिछले दिन गुलबर्गा से जो तस्वीर आई उसे देख हर किसी की जुबां पर बहस एक ही शब्द था, क्या देश में पानी का ऐसा संकट आन पड़ा है कि लोगों को अपनी जान जोखिम में डालनी पड़ रही है । तालाब सूख चुके हैं, हैंडपंप से पानी निकले जैसे अरसा हो गया है। अगर थोड़ा बहुत पानी बचा है तो कुएं में, और उसी के लिए ये लोग जान जोखिम में डालने को मजबूर हैं। पड़ोसी देशों में हवाई जहाज से पानी पहुंचाने का ढिंढोरा पीटने वाली मोदी और उनकी सरकार को जैसे इनकी फिक्र नहीं। कृषि मंत्रालय सूखा प्रभावित इलाकों की रिपोर्ट मंगाने की कागजी कार्रवाई तो कर रहा है, लेकिन जमीन पर जो एक्शन दिखना चाहिए, वो नहीं है।
मौसम वैज्ञानिक इसे अलनीनो का असर बता रहे हैं । पूरे देश की बात करें तो अभी तक मॉनसून में 12 से 15 फीसदी की कमी दर्ज की गई है । इस महीने इसके और कमजोर पड़ने की आशंका है । मतलब साफ है आने वाले दिनों में किसानों की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं।
अरुण प्रकाश। उत्तरप्रदेश के जौनपुर के निवासी। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्र। इन दिनों इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में सक्रिय। आप उनसे 9971645155 पर संपर्क कर सकते हैं।
Gopaljee Shahi-बहुत खूब…वैसे जिस बिहार में इस समय नेता जी वोट मांगने के लिए घूम रहे हैं वहां की हालत भी अच्छी नहीं है… बिहार का भी आधा हिस्सा सूखे की चपेट में है…लेकिन चुनावी बयार में सूखा मुद्दा नहीं बन पाता…यहां तो जातिगत और तोड़फोड़ की राजनीति चलती है…