क्या हमारे गांव के खेत को भी पानी मिलेगा? क्या अब कभी सूखे की मार नहीं पड़ेगी? क्या पानी के लिए अब ट्यूबवेल पर मार नहीं करनी पड़ेगी? क्या ट्यूबवेल ऑपरेटर के आगे-पीछे घूमने से अब छुटकारा मिल जाएगा? क्या रात में जग कर ट्यूबवेल चलाने के लिए बिजली आने का इंतजार नहीं करना होगा? ये सवाल 2 जुलाई 2015 को पीएम के इस ट्वीट के बाद मेरे मन में उठने लगे है
Narendra Modi @narendramodi
PM Krishi Sinchai Yojana will fulfil the dream of ‘हर खेत को पानी’ by enhancing irrigation facilities for farmers.
7:04 PM – 2 Jul 2015
इस ट्वीट के 2 घंटे पहले भारत सरकार की कैबिनेट ने प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना को मंजूरी दे दी थी। भारत सरकार के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने कहा कि ‘प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना पर अगले पांच साल में पचास हजार करोड़ रुपए खर्च होंगे’। अब सरकार ये पैसे कैसे खर्च करेगी ये तो वही जाने लेकिन हमारे मन में एक उम्मीद की किरण तो जरूर जगी है। मैं अब अपने गांव में बदलाव की कल्पना करने लगा हूं। ऐसी कल्पना जो आज से पहले मैंने तो कभी नहीं की थी। दिल्ली में बैठकर अपने गांव के बारे में सोच रहा हूं। मेरी कल्पना में अब लहलहाती फसलें दिख रही हैं। सूखे की मार से बचने की उम्मीदें दिख रही हैं। डेहरी में अनाज होने की कल्पना कर रहा हूं। पानी के लिए माथे पर पसीना ठंडा होने की उम्मीद कर रहा हूं, लेकिन ये तो अभी कल्पना है, हकीकत में ऐसा हो जाए तो मजा ही आ जाए।
मैं उत्तर प्रदेश के देवरिया जिले के ग्राम पिंडी का निवासी हूं। मेरा गांव घाघरा नदी के किनारे बसा है। गांव की सुरक्षा के लिए घाघरा नदी के किनारे बांध बनाया गया है ताकि उफनाती नदी का पानी गांव में ना घुसे और लोग सुरक्षित रहें। हालात ये हैं कि बांध के पूरब में घाघरा नदी के पानी से हर साल फसलें नष्ट हो जाती हैं और बांध के पश्चिम में बिन पानी सब सूख जाता है। जिनके पास थोड़े-बहुत साधन हैं वो जमीन के अंदर से पानी निकालकर फसलों की सिंचाई कर लेते हैं। लेकिन ऐसी सिंचाई से पैदावार प्रभावित होती है। रही बात सरकारी ट्यूबवेल की तो फिलहाल वो बंद हैं। पहले जब अच्छी स्थिति में थे तो पानी के लिए रोजाना मारपीट होती थी। अगर ट्यूबवेल ऑपरेटर की दया दृष्टि बनी रही तो बिजली आने पर पानी मिलने की संभावना बढ़ जाती थी। यूपी में बिजली की उपलब्धता कितनी है वो सब जानते हैं।
अब तक घाघरा नदी सिर्फ नहाने, गाय-भैंस धोने और मछली मारने के काम आती रही है। इसके अलावा नदी के किनारे उगने वाले खर पतवारों से गरीबों का घर और अमीरों की गौशाला बन जाती है। अगर ये किसानों के काम आ जाए तो गांव का नक्शा बदल जाए। सिर्फ मेरे गांव के नहीं पूरे जिले के किसानों के चेहरों पर रौनक आ जाएगी।
नदी के किनारे होने के बावजूद हमारे गांव समेत पूरे जिले के किसानों को कभी-कभी सूखे की मार झेलनी पड़ती है। गेहूं की पैदावार अच्छी होती है लेकिन धान की फसल सिंचाई के अभाव में खराब हो जाती है। नदी के किनारे होने का फायदा किसानों को नहीं मिलता है। अगर नदी पर नहर बनी होती तो शायद हालात कुछ और होते। खेतों में सिंचाई के लिए कम पैसे खर्च होते, फसल भी अच्छी होती और किसान भी खुश रहते। यही नहीं भूगर्भ से जल निकालने के नौबत भी नहीं आती।
घाघरा नदी देवरिया और बलिया जिले के बीच से होकर गुजरती है। बलिया में घाघरा नदी पर नहर बनी है लेकिन देवरिया में ये सुविधा नहीं है। नतीजा दोनों जिलों की खेती में अंतर साफ दिखता है। बलिया में जहां तक नहर गई है, उसके किनारे बसे गांव खुशहाल हैं। उन्हें समय पर पानी मिला जाता है। हालांकि बलिया जिले के बेल्थरा रोड की नहर अच्छी स्थिति में नहीं है लेकिन ना होने से बढ़िया कुछ तो है।
देवरिया जिला घाघरा नदी से घिरा है फिर भी यहां के किसानों की फसलें प्यासी रह जाती हैं। घाघरा नदी से अगर एक नहर निकाल दी जाए तो पूरे जिले में ‘हर खेत को पानी’ मिल सकता है। नहर होने से ना सिर्फ पानी मिलेगा बल्कि पानी की बचत भी होगी और भूगर्भ का जलस्तर भी बढ़ेगा।
आशा करता हूं कि प्रधानमंत्री मोदी जी ने जो उम्मीद -‘हर खेत को पानी’- किसानों को दी है उसे पूरा करेंगे, कत्ल नहीं। अगर ऐसा हो गया तो दूसरी हरित क्रांति को शायद कोई रोक नहीं पाएगा।
सत्येंद्र कुमार यादव फिलहाल इंडिया टीवी में कार्यरत हैं और गांव अब भी उनके दिल में धड़कता है।